Sunday, December 25, 2011

वह एक पढ़ा लिखा युवक था / नौकरी मिली नहीँ तो कुछ अपने पैसे और कुछ इधर उधर के उधारी के पैसे से उसने एक गाडी खरीद ली और उसे टेक्सी करके चलने लगा / दिलमें लगन और इमानदारी, मेहनत और सर्वोपरि ईश्वर में अखंड आस्था से उसके जीवन की गाडी भी ठीक ठाक चलने लगी / एक दिन किसी मुसाफिर को शहर से दूर हवाई अड्डे पर पहुंचा कर लौट रहा था तो रास्ते में २ आदमियोंने हाथ का इशारा करके गाडी रुकवाई और उसे शहर तक लिफ्ट देने का अनुरोध किया / इसने उन्हें बिठा लिया गाडी में/
वास्तव में वह दोनों बदमाश थे जो अकेले जा रहे गाडीवालों को मार कर गाडी ले भागते थे /अचानक जाने क्या हुआ , एक ने इसे पूछा एक बात बताओ, तुम ने हम पर कैसे भरोसा कर लिया और गाडी रोक दी , हम बदमाश भी तो हो सकते हैं/ इसने हँस कर कहा तो क्या , अगर आप बदमाश होंगे तो होंगे मुझे क्या ? मैंने अपना काम किया / मुझे हर मुसाफिर में भगवान दिखता है और मैंने भगवान पे भरोसा कर गाडी रोक दी थी / दूसरे ने कहा अगर हम तुमको मारकर गाडी ले भागें तो ? इसने कहा अगर यही लिखा है तो होगा ही / दूसरे ने फिर पूछा तुम्हे मरने से डर नहीं लगता ? / इसने कहा अगर डरूँ तो मौत नहीं आयेगी क्या ? जो तय है उससे डरना क्या ?
कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे दिल में बैठे डर के ही कारण हम जीवन भर कमज़ोर बने रहते हैं और एक दिन कायर की तरह मर जाते हैं / काश यह युवक हमारा आदर्श बन पाता तो समांज की तस्वीर कुछ और होती / है न ?

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