Friday, December 30, 2011

Aaj ka post kuchh hat kar hai, group ke hit men jis par sabhee ka dhyaan chahoonga

हर इंसान में एक बड़ी कमजोरी रहती है कि वह अपनी बात , अपने काम को ही सही साबित करने की कोशिश में इतना अधिक व्यस्त रहता है कि वह किसी और बात पर ध्यान देने के लिए फुर्सत ही नहीं पता / और वह इस तरह बहुत ऐसे मौके खो देता है जो उसके ज्ञान, समझ और व्यक्तित्व के विकास में काम आ सकते थे / इस कमजोरी की मात्र किसी में १ % हो सकती है तो किसी में १०% और किसी में ९०% / जिस दिन किसीको यह बात समझ में आ जाती है उस दिन उसके जीवन में एक नया मोड़ आता है / इसी पर एक लघु कथा सुनिए /
एक कार्यालय में किसीने एक पत्र का प्रारूप भेजा कार्यालय प्रमुख के पास / प्रमुख ने उसमें कुछ शब्दों के फेर बदल कर उसे वापस भेज दिया सम्बद्ध कार्मिक के पास टंकण के लिए / कार्मिक को बड़ा बुरा लगा , और उसने बडबडाना शुरू किया प्रमुख की नासमझी पर / किसीने जा कर कान भर दिए कार्यालय प्रमुख के / कुछ देर बाद चपरासी ने आ कर उस कार्मिक से कहा आपको साहब बुला रहे हैं , साथ में वह पत्र भी लेते जाइए /साहब ने पूछा सुना है आप पत्र के प्रारूप में मैंने जो संशोधन किये उसे ले कर असंतुष्ट हैं/ बेचारा कोई जवाब दे नहीं पाया /साहबने कहा अच्छा ज़रा गिनके बताइए पूरे पत्र में कुल कितने शब्द हैं / इसने कहा जी २८८ / साहब ने पूछा फिर से, मैंने कितने शब्द बदले हैं वह भी गिन कर बताइए ? / इसने कहा जी ३६ / साहब ने कहा तो सोचिये मैंने पत्र का आठवां हिस्सा अर्थात १२.५% शब्द ही बदले हैं, जिन्हें मैंने ठीक नहीं समझा / परन्तु मैंने ८७.५% उन शब्दों को स्वीकार भी किया जो आपने लिखे और जो मुझे अच्छे लगे / मैं अगर ८७.५% आपकी बातों को पसंद कर सकता हूँ तो क्या आप का ह्रदय इतना उदार नहीं है कि आप मेरे १२.५% प्रतिशत बात को प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार करें ?कहना अनावश्यक है कि दोनों के मन में कोई खटास नहीं रही इस वार्तालाप के बाद /
निष्कर्ष यह है कि हम अगर इस तरह के विचार को अपने मन में स्थान दें तो क्या मित्रों से टकराव नहीं टाल सकते, अपने संपर्क को बेहतर नहीं बना सकते ?

No comments:

Post a Comment