भारत रत्न किसे दिया जाए किसे नहीं इस पर सभी अपना अपना पक्ष म, अपने अपने विचार रख रहे हैं और अपने ढंग से खूब रख रहे हैं , पर इस सन्दर्भ में मुझे एक बात याद आ रही है सदियों पुरानी बात है जब अकबर दिल्ली का बादशाह हुआ करता था / सभी जानते हैं अकबर के दरबार में विभिन्न कलाओं में निष्णात कई गुनी जन थे जिन्हें न"नवरत्न" कहा जाता था / इन्ही में एक थे श्री तनु मिश्र, जिन्हें बाद में मियाँ तानसेन भी कहा गया / उसी ज़माने में संगीत के क्षेत्र में एक और बहुत बड़े विद्वान स्वामी हरिदास ,वृन्दावन में हुआ करते थे जो अपने संगीत के माध्यम से श्री कृष्ण की आराधना किया करते थे /
एक बार अकबर ने तानसेन से कहा कि वह स्वामी हरिदास से मिलना चाहता है और उन्हें दिल्ली बुलाया जाए / तानसेन ने कहा ऐसा संभव नहीं है , आपको ही उनके पास जाना पड़ेगा / अकबर ने एक काफीला तैयार करने का हुक्म दे दिया / तानसेन ने कहा, आप बादशाह हैं अपने राज्य के पर स्वामी जी तो ज्ञान के अखंड साम्राज्य के अधिपति हैं / आप अगर उनसे मिलना चाहते हैं तो आपको एक साधारण व्यक्ति बन कर जाना होगा वहाँ / और ऐसा ही हुआ / लेकिन स्वामी जी ने अपने अंतर्मन के नेत्र से बादशाह को पहचान लिया /
ज्ञान की गरिमा यही है/ आजकल लोग सरकारी पुरस्कार और सम्मान पाने के लिए क्यों इतने लालायित रहते हैं पता नहीं ...
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