Monday, November 11, 2013



किसी सत्संग में मैंने एक कथा सुनी थी, बहुत साल पहले / आज वह मुझे याद आ गया फिर से/ सोचा कि आप सभी से उसे सांझा कर लूं /
हुआ यूँ कि एक व्यक्ति था अत्यंत सम्पन्न/ घर में सभी सुख सुविधाएं उपलब्ध थी/ कमाई अच्छी थी / घर में काम करने के लिए नौकर चाकर थे / वह घर के सामने बरामदे में दिन भर बैठा रहता और सामने एक सुन्दर बगिया, जिसमें तरह तरह के फूल खिले रहते थे वर्ष भर, ऋतुओं के अनुसार , उसे देख कर आनंदित होता / घर के सामने कोई जान पहचान का व्यक्ति गुज़रे, तो उसे बुला कर , अपनी बगिया और सुन्दर सुन्दर फूलों के सौन्दर्य का बखान कर, आत्म प्रशंसा में मगन रहना ही उसका एक मात्र काम था/ वैसे बगिया का काम करने के लिए एक माली था , पर घर और बगिया का मालिक होने के कारण वह सारा श्रेय अपने आपको देना पसंद करता था /
एक दिन अचानक उसने देखा कि बगीचे में एक गाय घुस आयी है और पौधों को खाने के साथ साथ उन्हें रौंद भी रही है / संजोग से माली उस समय कहीं गया हुआ था / इसने आव देखा न ताव और गुस्से से भर कर एक मोटी सी लाठी उठा कर गाय को दे मारा / गाय बेचारी वहीं लुढ़क गयी / धन के मद में उन्मत्त हो कर उसने कोई पश्चाताप तो किया नहीं , गाय के मालिक को कुछ रुपये दे कर सोचा कि उसका दायित्व संपन्न हो गया /
मरने के बाद जब वह यमलोक पहुंचा तो चित्रगुप्त ने उसे गो ह्त्या का अपराधी कह कर उसके लिए दंड विधान करने की संस्तुति की / इसने आपत्ति करते हुए कहा, महाराज गाय को मैंने थोड़ी न मारा , वह तो मेरे हाथों का दोष है / यमराज ने तब उसे पूछा पौधों के लगाने में तुम्हारा कोई श्रम न होते हुए भी तुम उसका सारा श्रेय अपने को देते थे और गोहत्या के लिए दोषी तुम्हारा हाथ ?
तो मित्रों यह कथा मैंने इस लिए कही कि देश में अगर कोई अच्छा काम हो तो सरकार उसका सारा श्रेय अपने आपको देती है परन्तु हर बुराई का जिम्मेदार , विरोधी दल या जनता को बताती है , यह कैसा न्याय है / क्या सरकार की मनोवृत्ति इस व्यक्ति जैसा ही नहीं है ?



एक पीड़ादायक हास्य कथा

वार्षिक परीक्षा का परिणाम आ गया था - रिपोर्ट कार्ड ले कर बेटा जब घर पहुँचा तो पिता का दिमाग़ के पारा चढ़ गया . कहने लगे - नालयक शर्म नहीं आती तुझे हिन्दी में मात्र 12 अंक लिया है तूने . क्या करेगा बड़ा होने पर ?

बेटे ने कहा कंधे उचका कर - ओह डैड- कायकू हंगामा करेला है - तुम बस देखो हम जब बड़ा होएंगा न तो करोड़ों कमाएगा - नई कमाया तो अपुन के नाम का कुत्ता रख लेंगा तुम

पिता ने कहा - हे प्रभु - मैं हिन्दी साहित्य में शोध पत्र प्रस्तुत करके हिन्दी विद्वान कहलाता हू और मेरे घर में यह नालयक कैसे जन्म ले लिया. उन्होने बेटे से कहा - बता तो कैसे कमाएगा करोड़ों ?

बेटे ने कहा फिलम और सीरियल में डायलॉग लिखने का काम करेंगा ना अपुन . उधर ऐसा इच हिन्दी चलता जानता नहें क्या ?

क्या यह सच नहें है ?


समाज के 2 रंग 2 चेहरे 

पहला दृश्य

दरवाज़े पर घंटी बजती है - पत्नी जा कर दरवाज़ा खोलती है - पड़ोसी की पत्नी खड़ी है- कहती है बहन इन्हे तेज़ बुखार है ज़रा भाई साहब से कहना इन्हे डॉक्टर के पास ले जाएँ, बड़ी मेहरबानी होगी 
जवाब मिलता है क्या करें बहन इन्हे भी तेज़ सर दर्द है- बिस्तर से उतना मुश्किल है -वरना ज़रूर जाते यह - पड़ोसी के काम आना तो पहला धर्म है - फिर और कुछ कहे बिना दरवाज़ा बंद कर देती ह
भीतर आने पर पति पूछता है - कौन था भाई . पत्नी ने सारी बात बता दी- पति ने राहत की साँस ली - कहा अच्छा किया आज क्रिकेट का मेच जो देखना था - दोनों खुश ..

दूसरा दृश्य

दरवाज़े पर फिर घंटी बजती है - पत्नी जा कर दरवाज़ा खोलती है- सामने कामवाली बाई खड़ी है- कहती है मालकिन पता है सामने एक ट्रक पलट गया है साबून से लदा हुआ है . मालकिन कहती है एक मिनट रुक - भागती हुई अंदर आती है - पति से कहती है बंद करो यह क्रिकेट मेच - 2 - 4 खाली बोरियाँ लो और जाओ सामने ट्रक पलट गया है साबून का जितना ला सको ले आओ पुलिस आने से पहले - मैंने कामवाली बाई को रोक रखा है तुम्हारी मदद के लिए - इस बार भी दोनों खुश

समाज आजकल ऐसी ही खुशियाँ में मगन है - और फ़ुर्सत कहाँ है किसको


समाज के 2 रंग 2 चेहरे 

पहला दृश्य

दरवाज़े पर घंटी बजती है - पत्नी जा कर दरवाज़ा खोलती है - पड़ोसी की पत्नी खड़ी है- कहती है बहन इन्हे तेज़ बुखार है ज़रा भाई साहब से कहना इन्हे डॉक्टर के पास ले जाएँ, बड़ी मेहरबानी होगी 
जवाब मिलता है क्या करें बहन इन्हे भी तेज़ सर दर्द है- बिस्तर से उतना मुश्किल है -वरना ज़रूर जाते यह - पड़ोसी के काम आना तो पहला धर्म है - फिर और कुछ कहे बिना दरवाज़ा बंद कर देती ह
भीतर आने पर पति पूछता है - कौन था भाई . पत्नी ने सारी बात बता दी- पति ने राहत की साँस ली - कहा अच्छा किया आज क्रिकेट का मेच जो देखना था - दोनों खुश ..

दूसरा दृश्य

दरवाज़े पर फिर घंटी बजती है - पत्नी जा कर दरवाज़ा खोलती है- सामने कामवाली बाई खड़ी है- कहती है मालकिन पता है सामने एक ट्रक पलट गया है साबून से लदा हुआ है . मालकिन कहती है एक मिनट रुक - भागती हुई अंदर आती है - पति से कहती है बंद करो यह क्रिकेट मेच - 2 - 4 खाली बोरियाँ लो और जाओ सामने ट्रक पलट गया है साबून का जितना ला सको ले आओ पुलिस आने से पहले - मैंने कामवाली बाई को रोक रखा है तुम्हारी मदद के लिए - इस बार भी दोनों खुश

समाज आजकल ऐसी ही खुशियाँ में मगन है - और फ़ुर्सत कहाँ है किसको



पिता - बेटा तुझे पता है न - हमने जिसदेश में जन्म लिया है उसे हम अपनी मातृभूमि कहते है
बेटा - हाँ पिता जी 
पिता - जिस प्रकार तुम अपनी माँ की इज़्ज़त करते हो- उन्हे प्यार करते हो- मातृभूमि से भी तुम्हे प्यार करना चाहिए - उसकी इज़्ज़त करनी चाहिए 
बेटा - हाँ पिता जी 
पिता - तो बताओ तुम इस के लिए क्या कर सकते हो 
बेटा - क्रिकेट मेच के समय सर मुंडा कर और चेहरे पर रंगा लगा कर तिरंगा का डिजाइन बना सकता हूँ और चौका छक्का लगने पर तिरंगा लहरा सकता हूँ 

पिता मन ही मन सोचता है शायद देश प्रेम की परिभाषा बदल गयी है आज के युग में


सोचनेवाली बात

जीतेंगे तो 1 रुपये का अनाज - कैसा सुनो है बहाना
नमक मिले 20 रुपये का जो पहले सेर का था बस 2 आना-----

देस कभी था सोने की चिड़िया - दादा परदादा कहा यह करते थे 
बिन ताले के जनता देश में चैन से नींद लिया करते थे 
चोर तो अब साहूकार बना है यहाँ पर कैसा आया ज़माना
नमक मिले 20 रुपये का जो पहले सेर का था बस 2 आना-----

लूट के देशको खाया यवन क़ौम ने - अँग्रेज़ों ने भी कुछ न छोड़ा
उनके जो पुछल्ले रह गये - शासन के नाम किया सैकड़ों बखेड़ा
जो चमचे हैं उनको मस्ती - और शरीफ भरते हैं भाई जुर्माना
नमक मिले 20 रुपये का जो पहले सेर का था बस 2 आना-----

बंधक न बनो 5 साल तक - हरे हरे नोट की तुम लालच में
देश बचेगा जो तुम भी बचोगे - देश बचाओगे हर हालत में
60 सालों से जो रुलाए हैं तुमको- उनको सबक है सीखलाना
नमक मिले 20 रुपये का जो पहले सेर का था बस 2 आना-----

यू पी ए का यह मूल मन्त्र है उत्पात - पाजिपन-और अन्याय
इनके झाँसे में जो आ जाओगे छाती पीट कहना बस हाय हाय
एक ही थैली के चट्‍टे बट्‍टे जो ठीक से उनको है पहचानना
नमक मिले 20 रुपये का जो पहले सेर का था बस 2 आना-----


"राहु" ग्रसित एक है यहाँ "राहुल"
"शनि" के असर में है "सोनिया" 
"साढ़े साती " अब हो गयी है शुरू
काम न आएगा कोई कीमिया//

नाम से बतलाए जीत लूँ हर दिशा
पर सिर्फ़ उपर देख के भौंकता है
सर पर सफेद बाल का बोझ ले के
काली बिल्ली एक छींकता ही है //

कोई "मनहूस" तो कोई " ज़रायाम "
किस किस पे कहो मैं रखूं नज़र
बाप दादाओं ने किए पाप जो थे
अब वक़्त है उसका होगा असर //

बैल की जोड़ी थी कभी निशानी
खेती का तो सर्वनाश कर दिया
गाय बछड़ा फिर नया चिन्ह हुआ
गौ माता को काट व्यापार किया //

कटा हाथ अब हैं दिखाते यह
भीख माँगे बन कर दर दर
ऐसे कमीने हैं लोग यह सारे
पीछा न छोड़ेंगे भी मर कर //

अब तुमको ही कुछ करना है
गाँठ बाँध लो बात यह भाई
बकरा बनो न अब शेर बनो
सामने खड़ा देखो क्रूर कसाई //


एक पेरोडी " कौन है जो सपने में आया" फिल्म झुक गया आसमान के गीत पर , देखिए 

यह है समस्या 

किसने प्याज को महँगा किया 
किसने हमें है रुलाया 
घर का बजट डगमगाया
छट्टी का दूध याद आया
सोनिया--- $$$$$$$$$$$ सोनिया -----

वेतन जितना भी मिलता था मुझको
मैं हँसी खुशी जी तो रहा था
मनहूसों का साया पड़ा जो
बाग में पतझड़ तो आ गया था
किसने प्याज को महँगा किया
किसने हमें है रुलाया
घर का बजट डगमगाया
छट्टी का दूध याद आया
सोनिया--- $$$$$$$$$$$ सोनिया -----

और यह है समाधान

बैठ के रोने से फायदा क्या अब
तूने "हाथ" पे भरोसा किया था
हाथ से तो पड़ते हैं थप्पड़
तुझको होशियार हमने किया था
खुद तूने है धोखा खाया
खुद का गले को फँसाया
"दलदल" को पक्की ज़मीन जान
क्यों तूने आफ़त बुलाया -
तू है घंटिया $$$$$$$$$ घटिया ----

जो गुज़र गया उसे भूल जा अब
अब तो कस के तू कमर को बाँध ले
खुद को कमज़ोर ना जानना रे
गद्दारों है लेना लोहा रे
क़िस्मत का रोना न रो रे
खुद की ताक़त जान भैया
मिलके जो आएँगे हम सब
दूर होगा "मनहूस " का साया
हम है बढ़िया--$$$$$$$$$ बढ़िया ----



जागरण 

अपने चमचे साथ ले कर तू बेधड़क मेरे घर में घुस आया 
मेरे परिवार के वोट के खातिर, कदमोंपे मेरे तू बैठ गया //
ज़मींदार हूँ मैं मुझे लगा ऐसा और मेरा रय्यत है रे तू 
पता नहीं मुझे तब चला कौन सी नीयत से है आया तू //
आँख मूंद कर किया यकीन तेरी बातों की उन जालों पे
मैं मूरख अंजान रहा रे तेरी हर एक गहरी चालों से//
चिड़िया जब खेत चुग गयी - होश कहीं तब जा के आया
अपना माथा पीट के बोला- हाय मैंने यह क्या कर दिया//
दूध का जला हुआ हूँ मैं- फूँक फूँक छाछ अब पीऊंगा
दोहरी ज़ुबान के नेता को मैं तो अब अपना वोट नहीं दूँगा//


मित्रों ध्यान दीजिए - मनुष्य चाहे कोई भी हो सारी अच्छाई का श्रेय खुद लेना चाहता है और बुराई के लिए दूसरों को ज़िम्मेदार ठहराता है- अभी हाल की बात देखिए सरकारी दल ने अपनी पीठ थपथपाते हुए कहा हुँने "खाद्य सुरक्षा बिल" पारित करवाया- पर बाज़ार से आलू और प्याज गायब होने की ज़िम्मेदारी उसकी नहीं है- आइए कुछ और ऐसे दावों पर नज़र डालें इस कविता में शीर्षक है "हाथी के दाँत"

"स्वाधीनता" दिलवाई हमने - सबके "स्व" को अपने "अधीन" किया
"आज़ादी" ले आए हम पर - सबके "आना" "जाना" हमने बंद कर दिया //
'नेता" की जमात ऐसी बना दी- कि सारा देश "नेस्तनाबूद " हो गया
"जनता" की हालत यूँ कर दी - की अब " जन्नत" ही सपना हो गया //
"क़ानून" देश के ऐसे बनाए कि हर " कान" मे है " ऊन" भरवा दिया
"अदा" की "लत" पड़ी "अदालत" को इंसाफ़ तो मज़लूम से दूर हुआ //
"धाराएँ" देश के संविधान की - देखो प्रगती की सब धारा रुक सा गया
गिने - चुनों ने खीर उड़ाई - और बहुतों ने तो कटोरा हाथों में लिया //
" संसद " में जो जो भी जा पहुँचे "संग संग" सारे सब "सड़" गये
" योजना " ऐसी चुस्त बनाई " योजन कोस" तक ना कोई आ पाए//
"विदेश नीति" बनी ऐसी लचीली- हर कोई हमको ही झुकाने लगा
धूल जिसे हम चटा सकें भाई - वही हमें तो आँखें अब दिखाने लगा //
"पंचशील" का कमाल तो देखो - "पाँच" "इंद्रियों को "सील" कर दिया
पीठ पे खंजर भोंक दिए "ज़हरलाल" ने जिन ठीगनों को भाई कहा//
देशप्रेम का करके रे बहाना जनता से सब सोना हथिया जो लिया
बस तभी से स्विस बैंक में खाता सब नेताओं का खुल ही गया //
एक पड़ोसी मुल्क है ऐसा , हर बार टकरा कर हम से बाज़ी हारा
मोर्चा तो हम थे जीत गये , टेबल है हमने हाय हर जंग हारा //
अपने जवानों का खून बहा कर- बांग्ला देश को था जो बनवाया
अपना कमीनापन दिखा रहा है - आज है हम पर वह भौंक रहा //
जब जब हुए हमले आतंकी - कड़े शब्दों में निंदा है ज़रूर किया
पर उन्ही को सगा मान कर हर बार तो हम ने है "बाप" कहा //
देश का भला जसने भी सोचा - दुश्मन हमने उसे हरदम जाना
देश को अगर डूबाना चाहो तो भाई " कांग्रेस" को ही तुम वोट देना //

क्रमश: -------
एक संगीतकार थे ओंकार प्रसाद नय्यर- एक से बढ़ कर एक गीत बनाए उन्होने . एक गीत था उनका " हमको तुम्हारे इश्क़ ने क्या क्या बना दिया " आइए उसकी पेरोडी सुनें

तेरी निकम्मी राज ने यह क्या ग़ज़ब किया 
जो न देखा न सुना कभी वह काम कर दिया ---

डिंगें तू मारता रहा किया मुल्क़ का है काम 
पर सच है यह कि काम तमाम मुल्क़का किया---

टी वी पे बोलता है कि अनाज मिलता टके सेर 
पर कांधा - बताता बाज़ार से तो गायब हो गया ---

शर्मो लिहाज सारे बेच कर खाए है जो तूने
जाने क्यों तुझको पैदा तेरे माँ बाप ने किया ---

तहज़ीब सिखाने चले है तेरे चाटुकारों की फ़ौज़
औरों को कहा "दानव" यह क्या याद न रहा ----

इस देश को दुश्मनों से कोई ख़ौफ़ न "कुंदन"
दुश्मन भी न कर सकेंगे जो तूने है किया ----

यह किसके लिए लिखा है बताना ज़रूरी है क्या ?
एक संगीतकार थे ओंकार प्रसाद नय्यर- एक से बढ़ कर एक गीत बनाए उन्होने . एक गीत था उनका " हमको तुम्हारे इश्क़ ने क्या क्या बना दिया " आइए उसकी पेरोडी सुनें

तेरी निकम्मी राज ने यह क्या ग़ज़ब किया 
जो न देखा न सुना कभी वह काम कर दिया ---

डिंगें तू मारता रहा किया मुल्क़ का है काम 
पर सच है यह कि काम तमाम मुल्क़का किया---

टी वी पे बोलता है कि अनाज मिलता टके सेर 
पर कांधा - बताता बाज़ार से तो गायब हो गया ---

शर्मो लिहाज सारे बेच कर खाए है जो तूने
जाने क्यों तुझको पैदा तेरे माँ बाप ने किया ---

तहज़ीब सिखाने चले है तेरे चाटुकारों की फ़ौज़
औरों को कहा "दानव" यह क्या याद न रहा ----

इस देश को दुश्मनों से कोई ख़ौफ़ न "कुंदन"
दुश्मन भी न कर सकेंगे जो तूने है किया ----

यह किसके लिए लिखा है बताना ज़रूरी है क्या ?
चुनावी चुटकी

ओ बाबू ओ बाबू झोपड़ पट्टी वाले बाबू
अपना वोट तू दे दे - मुझे वोट तू दे--

मेरी जेब रहे न खाली ओ ओ ओ ओ 
मेरी रोज़ माने दीवाली दीवाली--
मैं हर घड़ी मौज उड़ाऊँ
सदा सुख पाऊँ
अपना वोट तू दे दे - मुझे वोट तू दे--

मेरा बेटा दुआएँ देगा
तेरा बसेरा जब रे हटेगा
तुझे कैसे यहाँ से हटाए
अपार्टमेंट बनवाए
अपना वोट तू दे दे - मुझे वोट तू दे--
कुछ कड़वा सच है यह

बाई जी के कोठे और नेता की कोठी
में अब कोई फ़र्क बिल्कुल ही न रहा //
कोठे में पहले जिस्म बिकता था पर
कोठी में जिस्म ईमान दोनों बिक रहा //

हवस के अंधे लोगों के वास्ते तो 
कोठे के दर सदा खुलते रहते थे //
कुर्सी के अंधे बेईमानों के तो 
मिलता है अब हर दर खुला हुआ //

बाई जी कलंक कहलाती थे भाई
निगाहे नफ़रत की होती थी शिकार
पर यह सफेद पोश कर हर जुर्म
कहलाते हैं क्यों भला ख़ान तीस मार //

किसी की मजबूरी कहलाए पाप
और किसे सब अययाशी है माफ़ //
कोई कहलाए नाली का यहाँ कीड़ा
कोई पापी कहलाए पाक साफ़//
मित्रों आज सुबह सुबह एक विचार आया मन में- कार्तिक का महीना है - आज सोमवार है शिव जी का दिन है आज - क्यों न देश की बिगड़ते हालत को ले कर एक भजन उन्हिके नाम लिख डालूं- कहा जाता है जब मनुष्य से कुछ होता नहीं तब उसे अलौकिकता पर भरोसा करना पड़ता है- शायद कुछ अनोहोनी हो जाए ध्यान दीजिए 

हे उमापति- महादेव शिव; नयन तीसरा तो खोलो ;
अन्याय का नग्न नर्तन सहें कहाँ तक हम बोलो,---------

शिशुओका छिन गया है शैशव - फूलों में अब रहा न सौरभ
माँ बहनों की दशा बिगड़ी- कुचली जाती है मान ओ गौरव
धर्म भूमि अब नर्क बन गया - अब तो हे शंकर डोलो
अन्याय का नग्न नर्तन सहें कहाँ तक हम बोलो,---------

नीति-आदर्श सब हो गये विस्मृत साधु हैं पग पग पर लांछित
अपकर्मों का भार प्रबल है - कार्य जो हो रहे हैं इतने सब गर्हित
विष का पी लो हे नीलकंठ- अमृत जग में तुम ही तो घोलो
अन्याय का नग्न नर्तन सहें कहाँ तक हम बोलो,---------

अहंकारी अब बने "महाजन" - चाटुकार करें उनके नाम कीर्तन
आशुतोष हे अब तुष्ट हो जाओ - प्रारंभ कर दो तांडव का नर्तन
कलंक हटा दो मेरी मातृभूमि से - पापियों का तुम जीवन ले लो
अन्याय का नग्न नर्तन सहें कहाँ तक हम बोलो,---------

अगर मेरी प्रार्थना आपको पसंद है तो इसे आप भी दोहरायें मेरे साथ
कृपया ध्यान दीजिए;

"चा" से "चाणक्य" और "चा" से "चार्वाक"
दो यह नाम सुने थे तो बचपन से हमने //
एक का जीवन था बस "भोगवाद" से भरा 
दूजे ने त्याग को माना सब कुछ जीवन में //
स्वाभिमान ही पूंजी है खोना कभी न इसे
आचार्य "चाणक्य" का यही परामर्श रहा //
"ऋणम क्रित्वा घृतम पीवेत " का मंत्र
चार्वाक पंथियों का यही तो आदर्श ही रहा //
"चाणक्य" नाम के माणीक्य को हाय
इस देश ने अब तक किसीने न पहचाना //
चार्वाक के वाक जालों का सुंदर का ही
सब बुनते रहे अब तक ताना ओ बाना //
इसलिए तो भाई "चाणक्य" नीतियाँ
देश के लिए अब बीसरी कोई बात रही //
चार्वाक के बुने ऋण के जाल में फँस
जनता की बर्बादी आराम से हो रही //

** जागो देशवासियों काँच और हीरा में फ़र्क करना सीखो अब
ज़रा इस पर भी ध्यान दें- है तो काल्पनिक पर सच भी हो सकता है .......

अध्यापक उसी दिन कुछ उदास थे घरेलू समस्या के कारण - पढ़ाने में मन नहीं लग रहा था- सो उन्होने बच्चों से एक निवन्ध लिखने को कहा. विषय था
" मेरा प्रिय भोजन और उसे मैं क्यों पसंद करता हूँ "

एक लड़के ने 2 मिनट में लिख कर ख़ाता दिखाया अध्यापक को- पढ़ कर अध्यापक की आँखें भर आई और उन्होने बच्चे को गले लगाते हुए कहा , बेटा तू एक महान इंसान बनेगा ज़रूर . पता है बच्चे ने क्या लिखा था 

मेरी माता जी मेरे लिए जो भी परोसती हैं, वही मेरा सबसे प्रिय भोजन होता है / क्यों कि उसमें उसमें मेरे पिताजी की मेहनत के पसीने की खुश्बू और माता जी की ममता का स्वाद रहता है, जो और कहीं मिलना असंभव है .

आप सहमत हैं क्या इस बात से ?