Monday, January 16, 2012

परिवार में एक अति परम मित्र है श्री सतीश मुद्गल जी./ कल उन्होंने एक फरमाइश रख दी मेरे सामने / अब परिवार में एक दूसरे का ख्याल रखना, उनके मनोभाव का आदर करना तो हमारा कर्तव्य है ही/ उन्ही मित्र मुद्गल जी के नाम समर्पित है आज की मेरी रचना, जो मेरी पुरानी रचनाओं से हट कर है अर्थात पेरोडी नहीं है /

सहनशीलता से न परहेज , पर कायरता हमें मंजूर नहीं 
चाटुकारिता के एवज में , भण्डार कुवेर का भी मंजूर नहीं -------
स्वाभिमान है पूंजी हमारी, स्वाभिमान ही जीवन है 
स्वाभिमान को बेच मिले जो, सम्पदा वह नगण्य है
अपने भगवन् ऊपर रहते, धरती का खुदा हमें मंजूर नहीं,-----
न्याय धर्म ही सत्य धर्म है और न पथ कोई है दूजा
जीवन आदर्श तज कर कहो करें क्यों धन की पूजा
मेहनत की रोटी भाती है हमें , कोई भीख हमें मंजूर नहीं ,-----
माता , माटी अपनी भाषा प्राणों से भी हमें अधिक है
मोहताज हो जो ग़ैरों का, वह जो जीवन तो भीख है
देश पे न्योछावर कर देंगे शीश, मुकुट हमें मंजूर नहीं ------
समाज के विभिन्न प्रसंगों पर लिखना कवि का धर्म है , हो सकता है कुछ लोग उन रचनाओं को पसंद करें तो कुछ को वह कडवी लगे/ पिछले २० / ३० सालों में शहर हो या गाँव हर जगह सौंदर्य प्रसाधन का बोलबाला बहुत जोरशोर से होने लगा है / लोग आत्मा, मन, विचार को सुन्दर और आकर्षक करने की जगह चेहरे सँवारने में अधिक समय, ध्यान और धन देने लगे है / युवा पीढी में तो सौंदर्य का भारतीय स्वरू कहीं खो गया है / लम्बे केश, घनी भौवें, दही हल्दी बेसन का उबटन यह सब अजायब घर की सामग्री बन गयी हैं / एक प्रेम दीवाना की टिप्पणी सुन कर ट्रेन में यात्रा के दौरान मुझ में यह कविता लिखने का विचार आया / अगर किसीको पसंद आया तो ठीक है / और अगर किसीको अगर यह दकियानूसी ख्याल लगे तो कृपया बहस न कर इसे नज़रंदाज़ कर देने की कृपा करें तो अत्यन्य प्रसन्नता होगी मुझे /

रेशमी जुल्फें हसीनों के, अब तो मेरे यार ख्व्वाब सब हो गए
ब्यूटी पार्लर के ज़ुल्म से सारे आशिक देखो तो तबाह हो गए //
पान-चूना और कत्थे के असर से लाल उनके लब हुआ करते थे
नकली लिपस्टिक के फेर में होंठ उनके कैसे बदरंग अब हो गए //
हल्दी बेसन के उबटन से जिस चेहरे पर चमक ग़जब की थी
ब्लीचिंग कर कर चेहरे को देखो चुड़ैल जैसी कैसे वह बन गए //
चूल्हा चौके में हो मशरूफ, तंदरुस्ती उनकी कभी कायम थी
जिम,एरोबिक के चक्कर यह माशूक अब पहलवान बन गए //
शायरों को फ़िक्र होने लगी , अब हुस्न में रही न वह कशिश
मौजू खोजते खोजते आज कल शायर परेशान सब हो गए //
आशिकी अब भूल जा बन्दे, चल रब का जा तू तलाश कर
हुस्न के फेर में लाखों"कुंदन" इस ज़माने में दीवाने हो गए //

Sunday, January 15, 2012

मैंने यह पाया कि न सिर्फ अपने इस ग्रुप में बल्कि हर ग्रुप में तो क्या अलग अलग पत्र-पत्रिकाओं में अधिकतर उदासी और दुःख के गीत गाये जाते हैं / ठीक है दुःख, उदासी जीवन का एक हिस्सा है , मैं यह मानता हूँ, लेकिन ठोकर लगने पर भी जिस तरह सफ़र जारी रखना ज़रूरी है , यह भी ज़रूरी है कि दुःख होने पर भी हम हँसी बाँटें / इसी विषय को ले कर एक कविता प्रस्तुत है , जो आज से १४ साल पहले हमारे बैंक के गृह पत्रिका में छपी थी - शीर्षक है "आत्म संतोष"

पूछा एक दिन, किसीने, गुलाब के एक खिलते हुए फूलसे ,
काँटों से घिर कर भी, बता मुस्कराता है तू , किस तरह ? 
हल्की सी मुस्कान ला कर , होंठों पे अपने, 
कहा गुलाब ने, छूपा के दिल में ग़म बे-हिसाब /
ज़िन्दगी तो बितानी है ऐ दोस्त , किसी भी तरह ,
न फिर क्यों गुजारें इसे, खुशियों के काफिले के साथ ?
यह सच है कि काँटों में ही बीत जाती है ज़िन्दगी मेरी ,
कड़कती धूप में झुलस जाती है कोमल काया यह मेरी /
सूनी रात के साये में जब , जग में सारे सो जाते हैं
ओस के सर्द कतरे , मेरे जिस्म को झिंझोड़ जाते हैं /
बड़ी ही कम उम्र है ज़िन्दगी, इस बात को मैं जानता हूँ
इसी अहसास से ही, ग़म बिसरा कर मैं मुस्कराता हूँ/
ग़म सुनाके अपने ,भला औरों को मैं दुखी क्यों करूँ?
पराई आग में जलाने का पाप भला मैं क्यों करूँ ?
मुझसा ग़म न पाए कोई बस यही दुआ मैं रब से करता हूँ
हंसके गुजरता हूँ दिन अपने, औरों को भी मैं खुश करता हूँ
आज फिर मन में पेरोडी लिखने का जोश उमड़ आया है मन्नू मामा पर/ मूल गीत है फिल्म "पत्थर के सनम " का "तौबा यह मतवाली चाल" / पढ़िए मज़ा लीजिये और अगर गा सकते हैं तो गाईये 

तौबा तेरी यह कमीनी चाल, उड़ गए सब के सर के बाल 
राहू केतु की क्या है ज़रुरत , जब तक तू है बहाल
कुर्सी पे , करेगा हमें तू कंगाल , तौबा तेरे यह कमीनी चाल ----
माना था दिल तू बड़ा अकलमन्द है
लेकिन किसीकी मुट्ठी में तू बंद है
जो रहबर तेरे जैसा कोई हो जाए
तो देश की खाट खड़ी हो जाए
किसी को इसका ख्याल कहाँ, तौबा तेरी यह कमीनी चाल ----
बत्तीस में तू ले के आया अमीरी
ग़रीबों से सदा रखी है तूने दूरी
करोड़ों से तो खेलता तू खुद है
हमको मिटा देगा तेरी यह जिद है
खुद से पूछा सवाल तू कहाँ , तौबा तेरी यह कमीनी चाल ----
मित्रों इस पोस्ट पर ज़रा ध्यान दें / इसे ग़ौर से पढ़ कर इस पर अपनी टिप्पणी ज़रूर दें / यह एक कहानी नहीं बल्कि एक सच्ची घटना है /

वह एक पढालिखा युवक था/ सेहत ठीक ठाक थी और देखने में भी सुन्दर था/ सरकारी कार्यालय में अवस्थापित था और अच्छा खासा कमाता भी था / परन्तु अच्छे संस्कार में पले बढे होने के साथ साथ आदर्शवादी होने के कारण हर बात में मातापिता की राय को ही मानता था / एक दिन माँ ने कहा बेटा अब घर में बहू ले आ / बेटे ने कहा माँ यह जिम्मेदारी तो तुम्हारी है तुम जैसा कहोगी मुझे मंज़ूर है / पिता के एक पुराने मित्र की एक बेटी थी / उसकी बात छेड़ी माता पिता ने / बेटे ने कहा अगर आपलोगों की इच्छा है तो मुझे भला क्या आपत्ति हो सकती है / पर एक बात का ध्यान रखें / माता पिता घबरा गए / पूछा क्या है बेटे / बेटे ने कहा अपने ५ बेटियों की शादी में आपने दहेज़ का इंतेजाम करते करते क्या क्या भुगता है वह मैं आज तक नहीं भुला / इसलिए मैं नहीं चाहता कि मेरे मातापिता ने जो परेशानी झेली है वह कोई और भी झेले /
आप लडकी वालों से कह दीजिये कि हमें दहेज़ में कुछ भी नहीं चाहिए / माँ खुश हुयी बेटे की इस उदारता पर/ फिर बेटे से पूछा तो लडकी देखने कब चलें / बेटे ने कहा माँ, वह एक लडकी है कोई ढोर-डंगर नहीं जो उसे हम देखने जाएँ/ और मान लो हम देख भी लिए तो हम सिर्फ उसका बाहरी चेहरा ही देखेंगे न , अन्दर क्या है यह कौन बताएगा हमें./ लड़कीवालों को उसी हिसाब से खबर भेजी गयी /

अब देखिये घटना ने क्या मोड़ लिया / लडकी ने अपने घर के लोगों से कहा , लड़का पढ़ा लिखा है, अच्छी नौकरी भी करता है , देखने में सुन्दर है ,फिर भी न तो वह मुझे देखना चाहता है न ही दहेज़ की कोई माँग है उसकी / मुझे पक्का यकीन है कि लड़के में कोई न कोई खोट ज़रूर है / उन्हें कह दो मुझे उस लड़के से शादी नहीं करनी /

अब मित्रों आप का क्या कहना है इस बारे में / क्या दहेज़ के लिए सिर्फ लड़के वाले जिम्मेदार हैं ? एक उदार और योग्य वर पर शक करने के लिए लडकी की यह मनोवृत्ति के बारे में आपका क्या कहना है ? मैं दोबारा कहता हूँ कि यह कहानी नहीं , हकीकत है , जिसका मैं स्वयं प्रत्यक्ष गवाह हूँ
मित्रों आप सभी का ध्यान चाहूँगा / सबसे पहले तो मैं श्री सुरेन्द्र होता जी का धन्यवाद करता हूँ जिन्होंने इस कार्यक्रम का इतना सारा सुन्दर फोटो खींचा और हमें देखने का स्वर्णिम अवसर प्रदान किया / यह सारे फोटो बरगढ़ में हर वर्ष आयोजित धनु यात्रा महोत्सव का है / श्री कृष्ण को जब अक्रूर के हाथों कंस मथुरा बुलवाता है यात्रा देखने और उन्हें मारने का षड़यंत्र करता है उसी को अभिनीत किया जाता है इस अवसर पर / अब इस यात्रा की विशेषता मैं आपको बताता हूं/
१) इस अवसर पर सारा शहर में इस यात्रा का मंच होता है 
२) बरगढ़ शहर मथुरा माना जाता है , पास बहने वाली जीरा नदी यमुना और नदी के उस पार का गाँव वृन्दावन आदि क्षेत्र 
३) इसे संसार का सबसे बड़ा खुला रंग मंच OPENAIR THEATER की मान्यता दी जा चुकी है 
४) इस यात्रा में शामिल होने वाले कलाकार सभी शौकिया काम करते है और इसके लिए उन्हें कोई पारिश्रमिक नहीं दिया जाता 
५) कंस की भूमिका में अभिनय करने के लिए आवेदन पत्र आमंत्रित किये जाते है और इसके लिए इंटरव्यू भी लिया जाता है
६) देश के विभिन्न हिस्सों से लोक कलाकार यहाँ अपने कला का प्रदर्शन करने के लिए भी आते है
७) देवकी- वासुदेव के विवाह से ले कर कंस वध तक की घटना का नाट्य रूप कलाकार यहाँ प्रस्तुत करते है
८) पौष शुक्ल पक्ष की पंचमी से शुरू हो कर यह यात्रा ११ दिन तक चलती है और इसका समापन पौष पूर्णिमा के दिन होता है
९) कंस जब शहर परिक्रमा के लिए निकलता है तो उसे अखंड क्षमता का अधिकारी माना जाता है और वह राज्य के मुख्यमंत्री या राज्यपाल तक को भी दंड देने का आदेश दे सकता है
१०) यात्रा के ११ दिनों में बरगढ़ शहर मानो सचमुच श्री कृष्ण बलराम की लीला भूमि बन जाता है

परन्तु खेद का विषय है के इसे आज तक उतना प्रचार नहीं मिल पाया जितना मिलना चाहिए /आशा है सभी सदस्यों को इस नयी जानकारी से खुशी हुयी होगी
देश की हालत पर कुछ कहना चाहता हूँ, कृपया ध्यान दें 

क्या होगा इस देश का यारों कोई मुझे यह बताओ 
घर का चिराग जो घर को फूंके क्या होगा बताओ //
बन्दर खुला घूम रहा है हाथ में उस्तरा ले के यहाँ
कैसे रखें सलामत गर्दन , कोई मुझे यह समझाओ //
माना यह के भेड़ - चाल में जनता यहाँ पर मस्त है
नेता यहाँ कसाई है , भेड़ को कहीं कोई ले जाओ //
मजबूरी का रोना रोये यहाँ नेता हो या जनता हो
बिन लगाम के घोड़े को कहो कब तक यूँ दौडाओ //
ज़ुल्म के मारे वक़्त गुजारे हर कोई तो रो रो कर
किसके आँसूं कौन पियेगा , यह तो कोई बताओ //
नारी को जो कहता था देवी, आज वोह देश कहाँ है
नारी शरीर के सब विज्ञापन को तुरंत बंद करवाओ //
तरस रही पानी को जनता,बहती मदिरा की नदियाँ
जब सरकारी ही भट्टी खोले, जनताको क्या समझाओ //
ईश्वर के इच्छा कह कर, हर कोई साध लेता है चुप्पी
जाने क्या अब होगा है, चली इशार को ही बचाओ //
नेता जो देते हैं नसीहत , खुद पाप- पंक में हैं डूबे
"कुंदन" का इतना कहना है , इन्हें सबक सीखलाओ //
इस देश में अक्सर देखा गया है के जब भी कोई जघन्य अपराध के दोषी को मृत्युदंड सुनाया जाता है तो "मानव अधिकार" की ध्वजा उठा कर घूमनेवाले उसी अपराधी की जान बचाने के लिए आवाज़ उठाते हैं , जो निश्चित रूप से ग़लत और निंदनीय प्रयास है/ इसी सन्दर्भ में एक घटना मुझे याद आती है , अपने इसी ओडिशा राज्य के कोरापुट जिले में कई साल पहले एक घटना घटी थी / एक मित्र ने, जो बेकारी और भूखमरी से तंग आ चुका था अपने एक घनिष्ठ मित्र के यहाँ पनाह ली./ दूसरे मित्र ने उसे आश्वासन दिया के वह उसे कहीं न कहीं रोजगार दिला देगा और उसे बड़े प्यार से अपने यहाँ रखा / परन्तु इस आदमी के नीयत में खोट आ गयी और एक दिन रात को सोते हुए मित्र,उसकी पत्नी और उसके दोनों बच्चों का गला रेत कर घर का सारा कीमती सामान ले कर भाग गया/ बाद में वह पकड़ा गया और उसे फांसी के सजा सुनायी गयी / तब आगे आ गए मानव अधिकार के बातें करनेवाले./ जिस मित्र ने मानवीयता दिखाई मित्र के मदद करके क्या उसका कोई अधिकार नहीं था ? इसी घटना पर मैंने एक छोटी सी कविता तब लिखी थी, जो आज आप सब के लिए यहाँ डाल रहा हूँ

पेट के आग बुझाने को,करते हुए चोरी रोटी की
आदमी एक जब पकड़ा गया /
दार्शनिक जैसे अंदाज़ में , तब
हवलदार ने उसे कुछ ऐसा कहा /
अजीब बेवकूफ हो मेरे भाई, भूख के मारे जो चोरी की
करना ही था अगर कुछ कोई बड़ा कारनामा कर देते
अपने किसी मित्र के सारे परिवार का गला काट देते
उसकी जमा पूंजी लेकर वहां से तुम चम्पत हो जाते
और जीवन के चन्द रोज़ आराम से गुजार तो देते
और मान लो कहीं अगर दुर्भाग्य से पकडे भी जाते,
तो ठेंगे से ------
"मानव अधिकार" का घिसापिटा जंगलगे नाम से
राजक्षमा तो ज़रूर पा ही जाते ---------------
एक ग़ज़ल (पेरोडी) उन पर , जिनका और कमीनापन का चोली-दामन का साथ होता है 
, और जिन्हें ग़लती से हम नेता कह कर सम्मान देते है 

खुदा भी आसमान से जब ज़मीन पर देखता होगा 
कमीने नेता को किसने बनाया सोचता होगा ,------
बनाके आदमी मैंने भेजा था इसको धरती पर
कैसे हैवान गया बन,कोई तो बतला दे आ कर
क्या है हालत हमारी वह यही तो सोचता होगा -----
होता अच्छा अगर इसको मैं कुत्ता ही बना देता
ट्रकोंके पहियेके नीचे आकर यह मर गया होता
तसल्ली सबको होती जो, यही तो सोचता होगा --
खुदा ने खाई है कसमें नेता न अब बनाऊंगा
दुनिया की हुकूमतको मैं अब खुद ही संभालूँगा
खुशी कितनी होगी हमको यही तो सोचता होगा -------
एक और ग़ज़ल आज के लिए 

ग़ैरों के ग़म में कभी, परेशान होता यहाँ कोई नहीं 
दर्द तब होता है, जब कोई आफ़त खुद पर आती है ------
किसको फुर्सत है ज़माने में सोचे किसी और के लिए 
आंसू छलकते हैं, जब चोट अपने जिगर पर लगती है ----
देख कर किसी बेआसरे को, निगाहें फेर लेता हर कोई
आहें निकल आती हैं, जब खुद के घरको आग लगती है -----
औरों को गिरते देख, बरबस आ जाती है होंठों पे हंसी
तुम गिरो, ज़माना हँसे, दिल में बिजली सी कौंध जाती है ---
पराये दर्द में बनके देख हमदर्द एक बार तो "कुंदन"
अपने से भरी यह दुनिया कितनी हसीन तब लगती है -----
एक कविता प्रस्तुत है "ट्रेन की औकात "

एक बहुत ही पुरानी उक्ति 
अक्ल बड़ी या भैंस के तर्ज़ पर
किशोर पुत्रने अपने पिता से पूछा 
कहिये देश बड़ा है या ट्रेन
उत्तर सुझा न जब पिता को, बेटे ने कहा
देखा ही होगा आपने आन्दोलन होने पर कहीं
जब ट्रेन को रोक देती है जनता की भीड़
पुलिस आती है तुरंत और ले जाती हैं उन्हें पकड़
पर सदन में गला फाड़ कर, आसमान सर पे उठा कर
जब जब नेता रोक देते हैं सदन के सारे काम
असर जिसका पड़ता है इस देश की प्रगति पर
कोई भी तो उन्हें कुछ कहता ही नहीं
अंधे धृतराष्ट्र ,विवश भीष्म और अनुगत विदुर की तरह
सब चुप चाप बैठ तमाशा ही तो देखते हैं
यही साबित करता है कि इतने बड़े देश से भी
लोहे के बने ट्रेन को बड़ा हम सब मानते हैं
देश स्वतंत्र होने के उपरांत हम पैदा हुए / शैशव,किशोरावस्था,यौवन,प्रौढ़ काल सब लांघ कर अब जीवन के सायान्ह में हम आ पहुँच चुके हैं/ देश में बड़ी प्रगति हुई है ऐसा कहते हुए हमने बहुतों को सुना है पर धर्म,न्याय, सत्य और सर्वोपरि मानविकता तथा जीवन में नैतिक आचरण का जिस तीव्रता से स्खलन या यूँ कहिये कि विनाश हुआ है उस पर कदाचित उनकी दृष्टि गयी नहीं / सार्वजनिक जीवन में विशेष रूप से जो राजनीति (नीति विहीन) से सम्बंधित है एक छोटी से रचना प्रस्तुत है / आनेवाले दिनों में ५ राज्यों के चुनाव के सन्दर्भ में जिस प्रकार काले धन का लाना - ले जाना और ग़लत बातें कह कर मतदाताओं को बरगलाने का प्रयास जो चल रहा है, उसी स्थिति ने मुझे प्रेरित किया यह पंक्तियाँ लिखने को 

काबिलियत 

गधा अगर हो कुर्सी पर तो, हर कोई सर को झुकाता है /
गधे की जेब में नोट हो तो, हर कोई आदाब बजाता है //
इल्म-हुनर या काबिलियत, इनको कहाँ कोई पूछता है /
गधा अगर करे हुकूमत तो, इंसान भी गधा बन जाता है //
उम्र भर घिस घिस के कलम, होता क्या हासिल भला /
करता रहे जो बस नसीहत तो, गधा नेता बन जाता है //
वादों के फूल खिलाते हैं यह, खुशबू जिसकी हम लेते हैं /
अपने गरज के लिए गधा, चमन को बेच खा जाता है //
करते रहो खिदमत सब की ,तो कोई भी न परवाह करे /
नेता बन जो चल बसों ,कुंदन कहे सारा मुल्क रोता है //
बात आज से ४० वर्ष पहले की है, जब मैं बैंक सेवा में प्रविष्ट हुआ था / बैंकों का राष्ट्रियकरण हुए मात्र ३ वर्ष हुए थे /अपने मन में बड़ा जोश था और उत्साह था कि चलो हम भी भारत की तस्वीर को बदल के रख देंगे / गरीब अब गरीब न रहेंगे / पर मुझे तब पता ही नहीं था कि कागज़ का फूल दूर से तो बड़े आकर्षक लगते हैं लेकिन उसमें खुशबू नहीं होती, भौंरे उस पर नहीं मंडराते / बैंकों का राष्ट्रीयकरण भी एक चुनावी धमाका था और आज हम देख रहे हैं कि सारे सरकारी बैंकों की स्थिति क्या है / हर सरकार अपने वोट बैंक के लिए बैंकों का भरपूर इस्तेमाल किया और इसमें बैंक के साहब लोग और यूनियन वाले भी हाथ बटाते रहे / इसी प्रसंग को ले कर यह कविता प्रस्तुत है, पढ़िए 

कविता का शीर्षक है बैंक ऋण 

आओ आओ यार मेरे बाँट रहे हम यहाँ रुपय्या/
ले जाओ और मौज करो नाचो ता ता ता थैय्या //
जिन शर्तों पर चाहें आप, हम से आ कर ले जाएँ /
फ़िक्र कोई न होगी हमको चाहे आप न लौटाएं //
कहने को तो है जनतंत्र, देशपे अपना लेकिन राज/
जो चाहें करलेंगे हम, दबा सकते सबकी आवाज़ //
भूखे नंगे जितने देश में उनके ही हम तो हैं नेता /
मारें जीयें बाकी सारे , इसकी क्यों हम करें चिंता //
बैंक का सारा जमा धन, बाप का माल तो है अपना/
उसी माल को न्योछावर कर दिखलाते हम हैं सपना//
ऋण मेला और क़र्ज़ माफी, करिश्मा हमने है किया /
अपने नाम चमकाने को लुटिया बैंक का डुबो दिया //
बैंकवाले भी सब है उल्लू, गुण हमारे हैं सब गाते /
इनकी पीठ पे हो सवार राजा देश के हम कहलाते //
मैंने पहले भी कई बार कहा है , कि कोई माने या न माने, देश को इस अवस्था से उबारने के लिए कोई देवी शक्ति या अलौकिक कांड का होना अनिवार्य है , यह मानता हूँ / कोई मुझे पोंगापंथी कहे या अन्धविश्वासी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता / अपनी उसी आस्था का वर्णन एक भजन में कर रहा हूँ/ अगर आप को विश्वास है तो पढियेगा वर्ना नहीं 

सुन लो अब तो हे गिरधारी - इतनी सी यह बिनती मेरी 
किसे पुकारें तुम्हे छोड़ कर, संकट देश पे है बड़ी भारी ;------
जब जब भी जो दिया है तुमने , हँस हँस गले लगाया 
फूल-शूल में फर्क किया न, माथे से सब को लगाया
फिर भी तडपाते क्यों हो तुम, बोलो कृष्ण मुरारि, किसे पुकारूं------
दया के सागर नाथ तुम्ही हो, तुम हो पालनहारे
जो बन जाओ तुम खिवैय्या, नाव लगेगी किनारे
किस संकट में भक्त तुम्हारे, अब तो समझो बनवारी , किसे पुकारूं---
कहाँ है बोलो अब वह सुदर्शन नाश करे जो पापी का
शेष नाग की शैय्या छोडो , हाल देखो इस धरती का
दिखला दो तुम हमको मोहन , अपनी सूरत प्यारी , किसे पुकारूँ---
आज का पोस्ट डाल रहा हूँ आप सभी को हंसाने की कोशिश करने के साथ / एक लड़का अपने परिवार के साथ लडकी देखने गया / वहां क्या बात हुयी सुनिए

लडकी का पिता - अच्छा लड़का क्या करता है ?
लड़के के पिता - अरे आप को पता नहीं टी वी धारावाहिक में काम करता है / बहुत व्यस्त रहता है/ आज भी बड़ी मुश्किल से वक़्त निकला है यहाँ आने के लिए
लडकी के पिता - अच्छा कौन से धारावाहिक में काम करते है ?
लड़के के पिता - सी. आई . डी में - हर कड़ी में इसका रोल रहता है
लडकी के पिता - पर हमने तो कभी इन्हें देखा नहीं
लड़के के पिता - बात यह है उस धारावाहिक में जो खून के केस की जांच करते हैं सब लोग , यह उस में मुर्दे का अभिनय करता है / सालुंके के दफ्तर में लेता रहता है यह
लडकी के पिता - कमाल है अप इसे अभिनय कहते है, करना क्या होता है उसमें , कुछ भी तो नहीं
लड़का - आप तो और ज्यादा कमाल करते हैं, कुछ न करनेवाले मन्नू मामा को देश का नेता मानने में आपको कोई आपत्ति नहीं और मुझे अभिनेता मानने पर इतना नखरा ?

* बताइए - लड़के ने ठीक कहा या नहीं ?
जहाँ तक मेरी जानकारी है, देश में जितने भी अपराध होते हैं उनके पीछे सबसे बड़ा कारण होता है आर्थिक फायदा / ज़मीन जायदाद के बंटवारे को ले कर रिश्तेदारों में झगडा और खून की घटनाएं , पुरुष द्वारा अपने ही परिवार की महिलाओं या अन्य महिलाओं को देह व्यापार में घसीटना आदि से ले कर सरकारी कार्यालयों में अपने पद का दुरुपयोग कर रिश्वत खाना और देश की सुरक्षा से सम्बंधित दस्तावेज देश के दुश्मनों को बेच देने तक , सब के पीछे आर्थिक लाभ ही एक मात्र उद्देश्य रहता है / पर इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि पकडे जाने पर और वह भी रंगे हाथों यही लोग मजबूरी का राग अलापते हैं और अपने को मासूम और बेगुनाह प्रमाणित करने का ढोंग शुरू कर देते हैं / कहीं कहीं पर यह सफल भी हो जाते हैं / ऐसा ही एक काल्पनिक किस्सा प्रस्तुत है / 

एक आदमी था जिसे हराम की खाने की आदत पड़ गयी थी / दिन भर सारे शहर में घूमता था और जहाँ भी मौका लगे हाथ साफ़ कर देता था / एक दिन कहीं कुछ न मिला/ दिन के ३ बजने वाले थे , देखा एक दूकान दार का खाने का डिब्बा रखा हुआ है और वह हाथ धोने गया हुआ है / उसने डिब्बा उठा लिया और भागा, पर पकड़ा गया/ अदालत में केस चलते वक़्त उसके वकील ने सफाई दी , हुज़ूर मेरा मुवक्किल भूखा था इस लिए उसने सिर्फ खाना ही चुराया वर्ना वहीं पर नोटों से भरा एक ब्रीफकेस भी रखा था जिसमें लाखों रुपये थे/ अगर यह चोर होता तो उसे न ले भागता ? जज ने देखा की वह आदमी जोर जोर से रो रहा है , दया दिखा कर उन्होंने उसे रिहा कर दिया / अदालत से बाहर आ कर वकील ने आदमी से पूछा तुम रो क्यों रहे थे ? क्या तुम्हें पश्चाताप हो रहा था ? / इसने जवाब दिया अजी साहब पश्चाताप तो हो रहा था ज़रूर पर अपनी करनी पर नहीं बल्कि इस बात को ले कर कि मैं वह ब्रीफकेस देख कैसे नहीं पाया ? / हमारे देश के बेईमान नेता और इस चोर में कोई फर्क नज़र आता है क्या आपको ? / और हम भी उस जज की तरह दया दिखाते रहते हैं न हर बार चुनाव में / ग़लत कहा क्या मैंने ?
गुण- दोष , सफलता - असफलता इन का चोली दामन का साथ है , यह हम सभी जानते हैं / पर आश्चर्य होता है हमें हमारे टीम इंडिया कहलाने वाली क्रिकेट टीम पर जब यह लगातार लड़खड़ाते रहते हैं / कोई एक को दोष देता है तो कोई दूसरे को / कप्तान कहता है बोलर चले नहीं तो कभी बल्लेबाज नाकाम रहे / पर सुधरने का नाम शायद ही कोई लेता है / क्यों सुधरे भाई / हारने पर भी माल तो उतना ही मिलता है न ? इसी बात की समीक्षा करने के लिए मैंने एक छोटी सी कविता लिखी है / ज़रा उस पर ध्यान दें / किसी एक खिलाड़ी पर मैंने इलज़ाम नहीं लगाया इस बात पर ध्यान दें / कविता का शीर्षक है "मिसाल"

तुलना अगर की जाए साइकल स्टैंड और टीम इंडिया की पायेंगे आप एक बड़ी समानता /
हैरान न हों भाई , देता हूँ बता इनकी औकात, अगर आप सोचते हैं कि आपको नहीं है पता //
बात अपनी समझाने का आपको यह विनम्र प्रयास , आओ चलो फिर मैं अब कर ही देता हूँ /
कितने काबिल और धुरंधर यह शेर हमारे, मैं अब महिमा इनकी खुल के सुना ही देता हूँ //
हल्का सा जब लगे झटका एक साइकल को , स्टैंड पर वह साइकल झट से तो गिर जाए /
साथ में उसके बाकी सब साइकल ,क्या देखा नहीं है आपने एक के बाद एक लुढ़कते ही जाए //
इस बात को याद करो और लौटो क्रिकेट के क्षेत्र को, जैसे ही कोई बल्लेबाज आउट हो जाए /
दिग्गज ,धुरंधर व बहादुर कहलानेवाले सभी एक एक कर के पविलियनपे लौट आये //
खेल यह खेले या न खेलें फिक्र नहीं, पर देखो भाई कैसी अद्भुत है इनकी यह अनुपम एकता /
पिट कर जब एक खिलाड़ी लौट आया सर झुकाए , संगी साथी एक एक उसके पीछे हो लेता //

बोलो साइकल स्टैंड की जय - टीम इंडिया की जय
कल दिन भर एक शूटिंग के सिलसिले में घर से बाहर रहा / भुबनेश्वर के पास ही एक गाँव में शूटिंग हो रही थी / दोपहर के भोजन के बाद थोडा सा टहलने के लिए निकला मैं./ एक जगह देखा , किसी घर के सामने एक चबूतरा सा बना हुआ है और वहां किसी स्वर्गीय व्यक्ति का नाम लिखा हुआ है एक मार्बल के पत्थर पर / निश्चित है , वह व्यक्ति गाँव का कोई सम्मानित व्यक्ति था या फिर जिस घर के आगे वह चबूतरा बना है उसी परिवार का कोई व्यक्ति था /मुझे खेद के साथ साथ आश्चर्य भी हुआ कि २ / ४ जवान लड़के उस चबूतरे पर आलथी- पालथी मार बैठे हुए थे और गप्पें लड़ा रहे थे / मैंने आगे जा कर देखा कि गाँव के कुछ बुजुर्ग व्यक्ति चौपाल पर बैठे हैं/ मैंने उनसे कहा कि लड़कों कि यह हरकत केवल अशोभनीय नहीं निंदनीय भी है / किसी दिवंगत व्यक्ति का ऐसा असम्मान क्या आपको बुरा नहीं लगता / आप उन लड़कों को टोकते क्यों नहीं ? / एक ने जवाब दिया भाई साहब वह अगर हमारी बेईज्ज़ती कर दें तो, हमें क्या पडी है बात बढाने की ? 
यह तो एक छोटे से गाँव के छोटी से घटना है ./हमारे संस्कृति,परंपरा और इतिहास को क़दम क़दम पर किस तरह रौंदा और कुचला जा रहा है ज़रा सोचिये / और इन लोगों की ही तरह, हमें क्या पडी है कह कर हम निष्क्रिय बन बैठे हैं?
व्यक्ति का व्यक्तित्व उसके आचरण, विचार और मानसिकता से ही निखरता है / हर व्यक्ति में गुण और अवगुण होते हैं इस में कोई दो राय नहीं/ यह बात और है कि किसी में गुण अधिक हों तो किसी में अवगुण अधिक/ परन्तु मनुष्य के रूप में जन्म ले कर कोई केवल गुण या अवगुण का भण्डार नहीं हो सकता / 
परन्तु समाज में एक दोष यह है कि जिसमें २ /४ अच्छाई नज़र आयी तो उसे वह भगवान का स्थान देने लग जाता है, जिससे सम्बद्ध व्यक्ति में अहंकार बढ़ जाता है और वह अपने आपको निरंकुश समझने लगता है / दूसरी तरफ किसी के अवगुण के झलक मात्र देख लेने से हम उसे दानव मानने लगता हैं जिससे उसके मन में समाज के प्रति विद्रोह भाव जन्म लेता है और वह समाज का दुश्मन बन जाता है /
इस प्रकार दोनों ही परिस्थितियों में समाज का अर्थात हमारा ही नुक्सान होता है आगे चल कर /अतः हमारा कर्तव्य है कि हम कभी भी पूर्वाग्रह से ग्रसित न हों किसी के बारे में बोलते हुए , अर्थात अच्छा तो सदैव अच्छा और बुरा तो हमेशा के लिए बुरा यह मानना और कहना ठीक नहीं है / शायद अनेक समस्याओं का समाधान इसी बहाने हो जाए /

Sunday, January 8, 2012

समाज में हर स्तर का व्यक्ति आज कल पैसा को ही सब कुछ मानने लगा है /
जिसके पास सौ हो वह हज़ार चाहता है , हज़ारवाले की तमन्ना लाख पाने की , 
लाखवाला करोड़ों का अरमान दिल में पालने लगता है / पर अब भी बहुत लोग 
यह जानने में असमर्थ हैं कि पैसा है तो "बहुत कुछ" पर "सब कुछ" नहीं है /
कुछ इसी बात पर एक कविता प्रस्तुत है शीर्षक है "पैसे की कीमत"

नौकरी की चाहत लिए दिल में
ट्रेन में सफ़र करता हुआ बेरोजगार बेटा
दुर्घटना में जब मारा गया //
बूढ़े लाचार मान- बाप को दिलाशा देने
सारा मोहल्ला उमड़ आया //
छाती अपनी पीट पीट कर रो रहे थे माता - पिता
किसके सहारे रहेंगे जिंदा, ऐ भगवन अब तू ही बता //
कितने अरमान थे इस दिल में, बेटे को पढाया था जब
कौन हमें सहारा देगा, अब इस बुढापे में ओ मेरे रब //
यही तो थी भगवान की मर्जी सब यही समझाते रहे
मातमपूर्सी का काम ख़तम कर एक एक खिसकते रहे //
कोने में एक आदमी बैठा, जब आया उन दोनों के पास
कहा रोना किस बात का, कहे को हो इतने उदास //
कर लेता क्या बेटा तुम्हारा, जिन्दा वह रहता भी अगर
दिला गया है कुछ धन तुमको, चाहे वह गया हो मर //
धक्के खा खा के दफ्तरों में वैसे ही तो जाता वह मर
मर कर कुछ तो दिलवा गया, छोडो अब अफ़सोस न कर //
मैंने कई बार पहले भी कहा है , देश में शासन की जो पद्धति प्रचलित है, उसके सहारे न तो देश का कोई भला होगा न ही समाज का . / दानवी शक्तियां प्रवल से प्रवलतर हो रही हैं और इन्हें प्रतिहत करने के लिए न तो प्रशासनिक उद्यम है न ही न्यायिक व्यवस्था आग्रही है / कुछ व्यक्ति जिन्हें प्रभु के न्याय पर सम्पूर्ण आस्था है कदाचित उन्ही के उसी विश्वास और आस्था के सहारे यह देश टिका है / इसी सन्दर्भ में एक भजन आप सभी को भेंट करता हूँ 

हे कृष्ण - हे कृष्ण - अब तुम ही तो एक सहारे हो 
भक्तोंकी सुनते नहीं अब, हो गए क्या तुम बहरे हो ------
साधू- सज्जनों के यहाँ तो हो रही सदा दुर्गति
अत्याचारी दानवों के हाथों में अब सब शक्ति
पाप-पथ पर जानेवालों पर, क्यों न लगते पहरे हो ------------
दुष्टों की मनमानी देखी, लांछित यहाँ विनयीजन है
उसकी पूजा करती दुनिया , हाथों में जिसके धन है
वही आदर्श कहलाता है, जिसके दो - दो चेहरे हो ,-----------------
चक्रसुदर्शन कहाँ खो गया, क्यों न उसको चलाते तुम
अन्यायी की भीड़ में देखो, न्याय धर्म हो रही है गुम
सत्य का सूरज उगेगा कहते , अन्धकार जब गहरे हो ,-----------
देश की हालत को ले कर महादेव शिव जी के चरणों में एक निवेदन / कृपया पढ़िए और अपने टिप्पणी देने की कृपा करें

देवाधिदेव हे महादेव कब तक रहोगे तप में मगन
भक्त तुम्हारे इस धरती पर करेंगे अत्याचार सहन //
जिसने तुमपर श्रद्धा रखी , उसीको सारे दुःख ही मिले 
जिसने तुम पर जल चढ़ाया,तपती रेत पर वह जले
कब तक परखोगे प्रियजन को ,सहा न जाए अब दहन
भक्त तुम्हारे इस धरती पर, करेंगे अत्याचार सहन // --------------
पीड़ित जनों की करुण कहानी अब तो गंगाधर सुनो
दुष्ट जनों के अपकर्मों की गाथा अब तुम ही सुनो
भस्म करो पापियोंको , खोल के अपना तृतीय नयन
भक्त तुम्हारे इस धरती पर करेंगे अत्याचार सहन // -----------
डम डम डम डमरू बजा कर त्रिशूल ले लो हाथ में
नराधमों को हे जटाधर अब सौंपो यम के हाथ में
धरा पे आओ हे शिवशंकर , सुनकर भक्तों के क्रंदन
भक्त तुम्हारे इस धरती पर करेंगे अत्याचार सहन // -------------
मित्रों कुछ ही दिनों में ५ राज्यों में चुनाव होंगे / व्यक्ति चाहे जैसा भी हो एक बार चुनाव जीत गया तो वह "मान्यवर" बन जाता है, चाहे उसे खुद मान-सम्मान के अर्थ का पता ही न हो / जीतने पर सबसे पहला रस्म जो अदा करते हैं वह है "शपथ ग्रहण" का / ईश्वर,सत्य- निष्ठां, भय, अनुराग,द्वेष ,पक्षपात,संविधान, श्रद्धा इन ९ शब्दों को ले कर जाने कबसे यह जन प्रतिनिधि शपथ पाठ करते आ रहे हैं और "चुनाव" को "चूनाव" बनाते आ रहे हैं , अर्थात लोगों को छूना लगाने के साथ साथ देश नामक नाव कैसे चूने लगे इसकी भी व्यवस्था करते आ रहे हैं / देश का हाल सुधरेगा क्या, दिनोदिन बाद से बदतर होती जा रही है / सोचा की उल्लिखित इन्ही ९ शब्द जो हम जैसे आम आदमी के लिए ९ ग्रहों के प्रकोप से कम नहीं उन पर एक रचना लिख ही डालूँ, पढ़िए, और अपनी टिप्पणी देना याद रखिये / 

शपथ ग्रहण की ख़ास नौटंकी आज भी देश में जारी है 
झेलना पड़ता है पर हम को, रस्म जो यह सरकारी है //
नाम ले कर उस ईश्वर का , शपथ जो यह लोग लेते है
अपने स्वार्थ के खातिर तो ईश्वर की भी बेच देते हैं //
सत्यका नाम जाने क्यों लेते,सच कभी तो नहीं कहा
निष्ठां क्या है न जानें, ह्रदय में कभी रही निष्ठां क्या //
भय तुम्हे कब किससे हुआ,भीत सबको तुमने किया
अनुराग का ज़िक्र करो न, लंका में लगे हरिशब्द जैसा //
द्वेष की आगको भड़काते क्यों परहेज है इससे फिर
पक्षपात जो न करो, जाओगे तुम तो सत्ता से गिर //
संविधान को ताक पे रखके, मनमानी तुम करते हो
श्रद्धा रही न ह्रदय में, श्राद्ध समिविधान का करते हो //
शपथ ग्रहण करके ए नेता- देश को ग्रहण लगाते हो
ग्रहण से फिर भी सूरज उबरे, हमको तुम डुबाते हो //
शपथ बेवजह लेते हो क्यों बंद कर के जनता का पथ
"शपथ" खोले "सौ पथ " तुम्हारे अपने लिए कोई न पथ //

मैंने यह पाया कि न सिर्फ अपने इस ग्रुप में बल्कि हर ग्रुप में तो क्या अलग अलग पत्र-पत्रिकाओं में अधिकतर उदासी और दुःख के गीत गाये जाते हैं / ठीक है दुःख, उदासी जीवन का एक हिस्सा है , मैं यह मानता हूँ, लेकिन ठोकर लगने पर भी जिस तरह सफ़र जारी रखना ज़रूरी है , यह भी ज़रूरी है कि दुःख होने पर भी हम हँसी बाँटें / इसी विषय को ले कर एक कविता प्रस्तुत है , जो आज से १४ साल पहले हमारे बैंक के गृह पत्रिका में छपी थी - शीर्षक है "आत्म संतोष"

पूछा एक दिन, किसीने, गुलाब के एक खिलते हुए फूलसे ,
काँटों से घिर कर भी, बता मुस्कराता है तू , किस तरह ? 
हल्की सी मुस्कान ला कर , होंठों पे अपने, 
कहा गुलाब ने, छूपा के दिल में ग़म बे-हिसाब /
ज़िन्दगी तो बितानी है ऐ दोस्त , किसी भी तरह ,
न फिर क्यों गुजारें इसे, खुशियों के काफिले के साथ ?
यह सच है कि काँटों में ही बीत जाती है ज़िन्दगी मेरी ,
कड़कती धूप में झुलस जाती है कोमल काया यह मेरी /
सूनी रात के साये में जब , जग में सारे सो जाते हैं
ओस के सर्द कतरे , मेरे जिस्म को झिंझोड़ जाते हैं /
बड़ी ही कम उम्र है ज़िन्दगी, इस बात को मैं जानता हूँ
इसी अहसास से ही, ग़म बिसरा कर मैं मुस्कराता हूँ/
ग़म सुनाके अपने ,भला औरों को मैं दुखी क्यों करूँ?
पराई आग में जलाने का पाप भला मैं क्यों करूँ ?
मुझसा ग़म न पाए कोई बस यही दुआ मैं रब से करता हूँ
हंसके गुजरता हूँ दिन अपने, औरों को भी मैं खुश करता हूँ
Hansna chahte hain, to lijiye padhiye ise, aur hansen;

आज फिर मन में पेरोडी लिखने का जोश उमड़ आया है मन्नू मामा पर/ मूल गीत है फिल्म "पत्थर के सनम " का "तौबा यह मतवाली चाल" / पढ़िए मज़ा लीजिये और अगर गा सकते हैं तो गाईये 

तौबा तेरी यह कमीनी चाल, उड़ गए सब के सर के बाल 
राहू केतु की क्या है ज़रुरत , जब तक तू है बहाल
कुर्सी पे , करेगा हमें तू कंगाल , तौबा तेरे यह कमीनी चाल ----
माना था दिल तू बड़ा अकलमन्द है
लेकिन किसीकी मुट्ठी में तू बंद है
जो रहबर तेरे जैसा कोई हो जाए
तो देश की खाट खड़ी हो जाए
किसी को इसका ख्याल कहाँ, तौबा तेरी यह कमीनी चाल ----
बत्तीस में तू ले के आया अमीरी
ग़रीबों से सदा रखी है तूने दूरी
करोड़ों से तो खेलता तू खुद है
हमको मिटा देगा तेरी यह जिद है
खुद से पूछा सवाल तू कहाँ , तौबा तेरी यह कमीनी चाल ----
मित्रों इस पोस्ट पर ज़रा ध्यान दें / इसे ग़ौर से पढ़ कर इस पर अपनी टिप्पणी ज़रूर दें / यह एक कहानी नहीं बल्कि एक सच्ची घटना है /

वह एक पढालिखा युवक था/ सेहत ठीक ठाक थी और देखने में भी सुन्दर था/ सरकारी कार्यालय में अवस्थापित था और अच्छा खासा कमाता भी था / परन्तु अच्छे संस्कार में पले बढे होने के साथ साथ आदर्शवादी होने के कारण हर बात में मातापिता की राय को ही मानता था / एक दिन माँ ने कहा बेटा अब घर में बहू ले आ / बेटे ने कहा माँ यह जिम्मेदारी तो तुम्हारी है तुम जैसा कहोगी मुझे मंज़ूर है / पिता के एक पुराने मित्र की एक बेटी थी / उसकी बात छेड़ी माता पिता ने / बेटे ने कहा अगर आपलोगों की इच्छा है तो मुझे भला क्या आपत्ति हो सकती है / पर एक बात का ध्यान रखें / माता पिता घबरा गए / पूछा क्या है बेटे / बेटे ने कहा अपने ५ बेटियों की शादी में आपने दहेज़ का इंतेजाम करते करते क्या क्या भुगता है वह मैं आज तक नहीं भुला / इसलिए मैं नहीं चाहता कि मेरे मातापिता ने जो परेशानी झेली है वह कोई और भी झेले /
आप लडकी वालों से कह दीजिये कि हमें दहेज़ में कुछ भी नहीं चाहिए / माँ खुश हुयी बेटे की इस उदारता पर/ फिर बेटे से पूछा तो लडकी देखने कब चलें / बेटे ने कहा माँ, वह एक लडकी है कोई ढोर-डंगर नहीं जो उसे हम देखने जाएँ/ और मान लो हम देख भी लिए तो हम सिर्फ उसका बाहरी चेहरा ही देखेंगे न , अन्दर क्या है यह कौन बताएगा हमें./ लड़कीवालों को उसी हिसाब से खबर भेजी गयी /

अब देखिये घटना ने क्या मोड़ लिया / लडकी ने अपने घर के लोगों से कहा , लड़का पढ़ा लिखा है, अच्छी नौकरी भी करता है , देखने में सुन्दर है ,फिर भी न तो वह मुझे देखना चाहता है न ही दहेज़ की कोई माँग है उसकी / मुझे पक्का यकीन है कि लड़के में कोई न कोई खोट ज़रूर है / उन्हें कह दो मुझे उस लड़के से शादी नहीं करनी /

अब मित्रों आप का क्या कहना है इस बारे में / क्या दहेज़ के लिए सिर्फ लड़के वाले जिम्मेदार हैं ? एक उदार और योग्य वर पर शक करने के लिए लडकी की यह मनोवृत्ति के बारे में आपका क्या कहना है ? मैं दोबारा कहता हूँ कि यह कहानी नहीं , हकीकत है , जिसका मैं स्वयं प्रत्यक्ष गवाह हूँ
इस देश में अक्सर देखा गया है के जब भी कोई जघन्य अपराध के दोषी को मृत्युदंड सुनाया जाता है तो "मानव अधिकार" की ध्वजा उठा कर घूमनेवाले उसी अपराधी की जान बचाने के लिए आवाज़ उठाते हैं , जो निश्चित रूप से ग़लत और निंदनीय प्रयास है/ इसी सन्दर्भ में एक घटना मुझे याद आती है , अपने इसी ओडिशा राज्य के कोरापुट जिले में कई साल पहले एक घटना घटी थी / एक मित्र ने, जो बेकारी और भूखमरी से तंग आ चुका था अपने एक घनिष्ठ मित्र के यहाँ पनाह ली./ दूसरे मित्र ने उसे आश्वासन दिया के वह उसे कहीं न कहीं रोजगार दिला देगा और उसे बड़े प्यार से अपने यहाँ रखा / परन्तु इस आदमी के नीयत में खोट आ गयी और एक दिन रात को सोते हुए मित्र,उसकी पत्नी और उसके दोनों बच्चों का गला रेत कर घर का सारा कीमती सामान ले कर भाग गया/ बाद में वह पकड़ा गया और उसे फांसी के सजा सुनायी गयी / तब आगे आ गए मानव अधिकार के बातें करनेवाले./ जिस मित्र ने मानवीयता दिखाई मित्र के मदद करके क्या उसका कोई अधिकार नहीं था ? इसी घटना पर मैंने एक छोटी सी कविता तब लिखी थी, जो आज आप सब के लिए यहाँ डाल रहा हूँ

पेट के आग बुझाने को,करते हुए चोरी रोटी की
आदमी एक जब पकड़ा गया /
दार्शनिक जैसे अंदाज़ में , तब
हवलदार ने उसे कुछ ऐसा कहा /
अजीब बेवकूफ हो मेरे भाई, भूख के मारे जो चोरी की
करना ही था अगर कुछ कोई बड़ा कारनामा कर देते
अपने किसी मित्र के सारे परिवार का गला काट देते
उसकी जमा पूंजी लेकर वहां से तुम चम्पत हो जाते
और जीवन के चन्द रोज़ आराम से गुजार तो देते
और मान लो कहीं अगर दुर्भाग्य से पकडे भी जाते,
तो ठेंगे से ------
"मानव अधिकार" का घिसापिटा जंगलगे नाम से
राजक्षमा तो ज़रूर पा ही जाते ---------------
देश की हालत पर कुछ कहना चाहता हूँ, कृपया ध्यान दें 

क्या होगा इस देश का यारों कोई मुझे यह बताओ 
घर का चिराग जो घर को फूंके क्या होगा बताओ //
बन्दर खुला घूम रहा है हाथ में उस्तरा ले के यहाँ
कैसे रखें सलामत गर्दन , कोई मुझे यह समझाओ //
माना यह के भेड़ - चाल में जनता यहाँ पर मस्त है
नेता यहाँ कसाई है , भेड़ को कहीं कोई ले जाओ //
मजबूरी का रोना रोये यहाँ नेता हो या जनता हो
बिन लगाम के घोड़े को कहो कब तक यूँ दौडाओ //
ज़ुल्म के मारे वक़्त गुजारे हर कोई तो रो रो कर
किसके आँसूं कौन पियेगा , यह तो कोई बताओ //
नारी को जो कहता था देवी, आज वोह देश कहाँ है
नारी शरीर के सब विज्ञापन को तुरंत बंद करवाओ //
तरस रही पानी को जनता,बहती मदिरा की नदियाँ
जब सरकारी ही भट्टी खोले, जनताको क्या समझाओ //
ईश्वर के इच्छा कह कर, हर कोई साध लेता है चुप्पी
जाने क्या अब होगा है, चली इशार को ही बचाओ //
नेता जो देते हैं नसीहत , खुद पाप- पंक में हैं डूबे
"कुंदन" का इतना कहना है , इन्हें सबक सीखलाओ //

Wednesday, January 4, 2012

राजनीती पर कुछ पंक्तियाँ लिखी है मैंने, आप सभी का ध्यान चाहूंगा और इस टिप्पणी भी 

बेकारी का रोना मत रो यार, राजनीति में कूद पड़ो
कोई न काम जो आता हो तो, राजनीति में कूद पड़ो//
न हिंग लगे न फिटकरी , और रंग भी चोखा आवे है 
रंगवा लो जो भी चाहो तुम , राजनीति में कूद पड़ो //
जेब से न लगे एक पैसा, और मुनाफ़ा भी है खूब
ऐसा अनोखा धंधा है यह, राजनीति में कूद पड़ो //
नौकरी में क्या रखा है ,सर को क्यों झूकाओगे
हर शै को झुकाना हो जो , राजनीति में कूद पड़ो//
बी ए , एम्.ए,पी एच डी, इन सब का क्या मोल है
सबसे ऊंची डिग्री जो चाहो राजनीति में कूद पड़ो//
हुनर की न कोई पूछ है, अपने इस देश में ए भाई
हुनर सीखके क्या करना है, राजनीति में कूद पड़ो//
जाए देश यह भाड़ में, और साथ में जनता सारी
खुद की सोच लो भाई मेरे, राजनीति में कूद पड़ो//
देश की हालत को ले कर महादेव शिव जी के चरणों में एक निवेदन / कृपया पढ़िए और अपने टिप्पणी देने की कृपा करें

देवाधिदेव हे महादेव कब तक रहोगे तप में मगन
भक्त तुम्हारे इस धरती पर करेंगे अत्याचार सहन //
जिसने तुमपर श्रद्धा रखी , उसीको सारे दुःख ही मिले 
जिसने तुम पर जल चढ़ाया,तपती रेत पर वह जले
कब तक परखोगे प्रियजन को ,सहा न जाए अब दहन
भक्त तुम्हारे इस धरती पर, करेंगे अत्याचार सहन // --------------
पीड़ित जनों की करुण कहानी अब तो गंगाधर सुनो
दुष्ट जनों के अपकर्मों की गाथा अब तुम ही सुनो
भस्म करो पापियोंको , खोल के अपना तृतीय नयन
भक्त तुम्हारे इस धरती पर करेंगे अत्याचार सहन // -----------
डम डम डम डमरू बजा कर त्रिशूल ले लो हाथ में
नराधमों को हे जटाधर अब सौंपो यम के हाथ में
धरा पे आओ हे शिवशंकर , सुनकर भक्तों के क्रंदन
भक्त तुम्हारे इस धरती पर करेंगे अत्याचार सहन // -------------
मित्रों कुछ ही दिनों में ५ राज्यों में चुनाव होंगे / व्यक्ति चाहे जैसा भी हो एक बार चुनाव जीत गया तो वह "मान्यवर" बन जाता है, चाहे उसे खुद मान-सम्मान के अर्थ का पता ही न हो / जीतने पर सबसे पहला रस्म जो अदा करते हैं वह है "शपथ ग्रहण" का / ईश्वर,सत्य- निष्ठां, भय, अनुराग,द्वेष ,पक्षपात,संविधान, श्रद्धा इन ९ शब्दों को ले कर जाने कबसे यह जन प्रतिनिधि शपथ पाठ करते आ रहे हैं और "चुनाव" को "चूनाव" बनाते आ रहे हैं , अर्थात लोगों को छूना लगाने के साथ साथ देश नामक नाव कैसे चूने लगे इसकी भी व्यवस्था करते आ रहे हैं / देश का हाल सुधरेगा क्या, दिनोदिन बाद से बदतर होती जा रही है / सोचा की उल्लिखित इन्ही ९ शब्द जो हम जैसे आम आदमी के लिए ९ ग्रहों के प्रकोप से कम नहीं उन पर एक रचना लिख ही डालूँ, पढ़िए, और अपनी टिप्पणी देना याद रखिये /

शपथ ग्रहण की ख़ास नौटंकी आज भी देश में जारी है
झेलना पड़ता है पर हम को, रस्म जो यह सरकारी है //
नाम ले कर उस ईश्वर का , शपथ जो यह लोग लेते है
अपने स्वार्थ के खातिर तो ईश्वर की भी बेच देते हैं //
सत्यका नाम जाने क्यों लेते,सच कभी तो नहीं कहा
निष्ठां क्या है न जानें, ह्रदय में कभी रही निष्ठां क्या //
भय तुम्हे कब किससे हुआ,भीत सबको तुमने किया
अनुराग का ज़िक्र करो न, लंका में लगे हरिशब्द जैसा //
द्वेष की आगको भड़काते क्यों परहेज है इससे फिर
पक्षपात जो न करो, जाओगे तुम तो सत्ता से गिर //
संविधान को ताक पे रखके, मनमानी तुम करते हो
श्रद्धा रही न ह्रदय में, श्राद्ध समिविधान का करते हो //
शपथ ग्रहण करके ए नेता- देश को ग्रहण लगाते हो
ग्रहण से फिर भी सूरज उबरे, हमको तुम डुबाते हो //
शपथ बेवजह लेते हो क्यों बंद कर के जनता का पथ
"शपथ" खोले "सौ पथ " तुम्हारे अपने लिए कोई न पथ //

Tuesday, January 3, 2012

भजन लिखा नहीं जाता, अपने आप कागज़ पर लिख लेता है लिखनेवाला जब "वह" उससे लिखवाना चाहे. / मेरी बहन उषा के अनुरोध पर आज मातारानी का यह भजन प्रस्तुत किया जा रहा है आप सभी के लिए / आशा है आप इसे पसंद करेंगे और इस पर अपनी टिप्पणी दे कर मुझे अनुग्रहित करने की कृपा करेंगे 

सारे दुखों का अंत हो जाए , लहरें खुशी की मन को भिगोये 
अनहोनी यह करके दिखाए कौन--- बोलो बोलो कौन 
वह माता रानी है-- मेरी माता रानी है -- जय माता दी -----------
सुख है चंचल हिरनी सरीखा, उसके पीछे भागे जो
पग में छाले पड़ जाते और मन का चैन गंवाए वह
पथ की सब बाधा हट जाए , ह्रदय कमल भी खिल खिल जाए
अनहोनी यह करके दिखाए कौन--- बोलो बोलो कौन
वह माता रानी है-- मेरी माता रानी है -- जय माता दी -----------
जिसने माता को है पहचाना, सारे जग को उसने जाना
धुप-छाँव और सुख-दुःख का, फर्क कोई न उसने माना
माता चरण में सर जो झुकाए, संकट आये तो टल जाए
अनहोनी यह करके दिखाए कौन--- बोलो बोलो कौन
वह माता रानी है-- मेरी माता रानी है -- जय माता दी -----------
बाबा के नाम पर एक और भजन प्रस्तुत कर रहा हूँ / आप की टिप्पणी की प्रतीक्षा रहेगी /

शिव का भजन तू कर ले रे मनवा, शिव का भजन तू कर ले 
मानव जीवन ऐसे न गँवा तू, नाम सुमिरण कर ले रे ,-----
तनोए भभूत और सर पे जटायें, रूप यह कितना मनोहर है 
धारा गंगा जी की निकले सरे से, गले पर साजे विषधर है
इनकी प्यारी और मनोरम छबि तू मन में बसा ले रे , शिव का भजन तू कर ले --
शैल शिखर पर प्रभु विराजे , घर की चिंता न है उनको
धन दौलत के पीछे तू फिर, क्यों भटकाए इस मन को
जोड़ा जो भी तुने यहाँ पर, संग न जाएगा जान ले रे , शिव का भजन तू कर ले रे --
महादेव भी कहलाते हैं शिव, मेरे शंकर हैं भोले
चाहे जो कृपा इनकी, मनको तू निर्मल कर ले
आशुतोष मेरे उमापति हैं, इनके शरण तू अब हो ले रे , शिव का भजन तू कर ले रे --

किसी सत्संग में मैंने एक कथा सुनी थी, बहुत साल पहले / आज वह मुझे याद आ गया फिर से/ सोचा कि आप सभी से उसे सांझा कर लूं /
हुआ यूँ कि एक व्यक्ति था अत्यंत सम्पन्न/ घर में सभी सुख सुविधाएं उपलब्ध थी/ कमाई अच्छी थी / घर में काम करने के लिए नौकर चाकर थे / वह घर के सामने बरामदे में दिन भर बैठा रहता और सामने एक सुन्दर बगिया, जिसमें तरह तरह के फूल खिले रहते थे वर्ष भर, ऋतुओं के अनुसार , उसे देख कर आनंदित होता / घर के सामने कोई जान पहचान का व्यक्ति गुज़रे, तो उसे बुला कर , अपनी बगिया और सुन्दर सुन्दर फूलों के सौन्दर्य का बखान कर, आत्म प्रशंसा में मगन रहना ही उसका एक मात्र काम था/ वैसे बगिया का काम करने के लिए एक माली था , पर घर और बगिया का मालिक होने के कारण वह सारा श्रेय अपने आपको देना पसंद करता था /
एक दिन अचानक उसने देखा कि बगीचे में एक गाय घुस आयी है और पौधों को खाने के साथ साथ उन्हें रौंद भी रही है / संजोग से माली उस समय कहीं गया हुआ था / इसने आव देखा न ताव और गुस्से से भर कर एक मोटी सी लाठी उठा कर गाय को दे मारा / गाय बेचारी वहीं लुढ़क गयी / धन के मद में उन्मत्त हो कर उसने कोई पश्चाताप तो किया नहीं , गाय के मालिक को कुछ रुपये दे कर सोचा कि उसका दायित्व संपन्न हो गया /
मरने के बाद जब वह यमलोक पहुंचा तो चित्रगुप्त ने उसे गो ह्त्या का अपराधी कह कर उसके लिए दंड विधान करने की संस्तुति की / इसने आपत्ति करते हुए कहा, महाराज गाय को मैंने थोड़ी न मारा , वह तो मेरे हाथों का दोष है / यमराज ने तब उसे पूछा पौधों के लगाने में तुम्हारा कोई श्रम न होते हुए भी तुम उसका सारा श्रेय अपने को देते थे और गोहत्या के लिए दोषी तुम्हारा हाथ ?
तो मित्रों यह कथा मैंने इस लिए कही कि देश में अगर कोई अच्छा काम हो तो सरकार उसका सारा श्रेय अपने आपको देती है परन्तु हर बुराई का जिम्मेदार , विरोधी दल या जनता को बताती है , यह कैसा न्याय है / क्या सरकार की मनोवृत्ति इस व्यक्ति जैसा ही नहीं है ?
सुबह सुबह, यदि माता रानी का स्मरण कर लिया जाए तो कैसा रहे मित्रों ? / आनंद लीजिये एक वंदना का , आज का पहला पोस्ट 

हे शैलपुत्री माता, हे शैलपुत्री माता 
सारा जग तो निशदिन मैय्या तेरी महिमा गाता 
हे शैलपुत्री माता, हे शैलपुत्री माता 
खोल के मुख क्यों कहूं मैं, मन की बातें तुझे पता
हे शैलपुत्री माता, हे शैलपुत्री माता -------------------
तूने जनम दिया मानव का और भेजा इस धाम में
लौट के जाऊंगा एक दिन तो, पूरा कर सब काम मैं
सीधी डगर पे चलता रहूँ मैं, राह तू मुझको दे बता
हे शैलपुत्री माता, हे शैलपुत्री माता ------------------
दुःख हरूँ मैं पीड़ित जनों का, दे दूं हँसी हर होंठ पर
उसको दुआएं दे मन मेरा, खाऊँ किसीसे चोट अगर
भूल से भी न सोचूँ मैं यह, दूं मैं किसीको कभी सता
हे शैलपुत्री माता, हे शैलपुत्री माता --------------
करुणा तुम बरसाती रहना , माता विनती है इतनी
काँटा कभी न लगे किसीको, बिखरा दो कलियाँ इतनी
सारे जग में शांति फैले,खुश हों सब भगिनी - भ्राता
हे शैलपुत्री माता, हे शैलपुत्री माता ---------------------
जिसे देखो- जिधर देखो,हर कोई नव वर्ष का शोर मचा रहा है मानो यह विलायत ही हो गया हो / खैर कोई बात नहीं , सबकी अपनी अपनी मर्जी, अपनी अपनी खुशी है भाई, हम होते ही कौन कहने वाले/ पर एक मित्रने पूछा ,भाई , तुम नव वर्ष नहीं मनाते हो आज के दिन / मैंने जवाब दिया मुझे मेरे "मन्नू मामा" से फुरसत मिले तब न कुछ करूँ /तो चलिए "कबाब में हड्डी" की तरह मामा को घसीट रहा हूँ यहाँ, अगर शौक हो तो पढियेगा / और मज़ा आये तो हंस भी लीजिएगा 

आप सभी जानते हैं अपने मामा अक्सर होठों को सिये रहते हैं , मुश्किल से कभी कुछ बोलते हैं/ जब कभी बोलते हैं तो उनका एक ही तकिया कलाम होता है "मेरे पास कोई जादू की छडी तो है नहीं " / यह सुनते सुनते मेरे कान पक गए और एक दिन मैं जा धमका मामा के यहाँ / मामा से मैंने कहा , क्या मामा, तुम तो मेरी इज्ज़त के चीथड़े उड़ा दोगे / जानते हो तुम्हारी वजह से मेरी जग हंसाई हो रही है / भाँजा इतना बड़ा जादूगर है और तुम कहते रहते हो मेरे पास जादू की छडी नहीं है / अच्छा एक बात बताओं यहाँ से न तुम कहीं जाओगे न मैं कहीं लेकिन तुम ऐसा का सकोगे क्या कि मैं तुम को देख न पाऊँ ? मामने कहा ऐसा कैसे हो सकता है ? / मैंने कहा वही तो फर्क है मामा और भाँजे में / मैं वह जादू करके दिखा सकता हूँ / मामा अचम्भे में पड़ गए और कहा अच्छा ज़रा देखें तो / तब मैंने कहा अच्छा चलो पहले आँखें बंद करो / मामाने कर लिए /मैंने पूछा मामा देख सकते हो क्या मुझे अब ? / मामा ने कहा अरे वाह भाँजे , मानना पड़ेगा तुमको / मैंने कहा मामा तुम भी ऐसा ही कर लो जिस तरह होंठ और कान बंद रखते आये हो अब आगे से आँखें भी बंद रखा करो सब ठीक हो जाएगा / शायद मामा अब ऐसा ही करेगा ......

आज समाज में सबसे बड़ी खराबी यह है कि लोग हँसना- हंसाना भुला बैठे हैं / 
जिसे देखो तनाव का शिकार है और मरने से पहले हज़ार बार मर रहा है पल पल / 
उसी सन्दर्भ में एक कविता प्रस्तुत है / शीर्षक है हंसो न यार 

चेहरे पर क्यों बजे हैं बारह - हँस लो हँसना ज़रूरी है
जो चाहो जीवनका मज़ा तो - हँस लो हँसना ज़रूरी है---
आती रहती मुश्किलें - जीवन की इस राह पर तो
आसां हो हर एक मुश्किल - हँस लो हँसना ज़रूरी है---
रखने को सेहत ठीक अपनी- दवा पे दौलत उड़ाते हो
तंदरुस्ती जो पाना चाहो - हँस लो हँसना ज़रूरी है---
खुशी पे आंसू हैं बहते - यह भी तो हमने है देखा
दिल में गर ग़म हो भी तो - हँस लो हँसना ज़रूरी है---
देखा है बहुतों को जो - औरों पे अक्सर हँसते हैं
इंसान जो कहलाना हो तो - खुद पे हँसना ज़रूरी है --
जब भी हँसो हँसना यारों, खोल के दिल यह याद रखो
कभी न हँसना ऐसे "कुंदन", मानो कोई मजबूरी है ----
जीवन अपने आप में एक लम्बी यात्रा है और इसी यात्रा के दौरान हम बीच बीच में छोटी छोटी यात्रायें करते रहते हैं /छोटी छोटी यात्रा करते हुए हम अपनी टिकट का बंदोबस्त करते हैं, सीट कहाँ पर हैं यह खोजते है, अपने सामान को सुरक्षित रखते हैं जो कि एक ज़रूरी आवश्यकता है /अगर हम किसी नए मंजिल की तरफ यात्रा करते हैं तो पास बैठे सहयात्रियों से उस स्थान के बारे में भी जानकारी हासिल कर लेते हैं ताकि हमें वहां पहुँच कर कोई असुविधा का सामना करना न पड़े /

परन्तु सबसे लम्बी और बड़ी यात्रा की चिंता हममें से कितने लोग करते हैं कभी हमने अपने से पूछा है क्या ? / अगर पूछते तो शायद लोग जीवन में भटकाव का शिकार नहीं होते और यह धरती स्वर्ग से भी सुन्दर बन जाता / परन्तु दुःख और चिंता इस बात की है कि आज कल जो अपने आपको शिक्षित और विद्वान् समझते हैं उन्हें इन विषयों पर हमने बहुत कम सोचते देखा है / उनके लिए लिए तो एक ही नीति वाक्य है "कल क्या होगा किसको पता, अभी ज़िन्दगी का ले लो मज़ा "/ काश कि वह यह समझ पाते "कल क्या होगा किसको पता, सही राह पे तू चलके बता " ईश्वर सभी को सदबुद्धि दें


बड़ा आश्चर्य होता है मुझे कभी कभी, कैसे यह देश टिका हुआ है इस धरती पर अब तक . / देश की जिम्मेदारी जिस सरकार पर है वह पैरों पर कभी खड़ी होती नहीं सिर्फ घुटने के बल बैठी रहती है और वह भी दुष्ट, नराधम और पापियों के सामने / एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में जब इस देश का अभ्युदय हुआ, तभी से यह परंपरा चली आ रही है / इस विशाल देश को द्विखंडित करने का षड़यंत्र जिन लोगों ने प्रारंभ किया और उसमें सफल भी हो गए, उनके पुनर्वास के लिए कुछ लोगों ने ५५ करोड़ रुपये दान में देकर अपने आपको शांति और अहिंसा के पुजारी कहलाने लगे, जब की उस समय देश की जनसँख्या इस राशि से लगभग आधी थी / उन्ही षड्यंत्रकारियों को यह आज भी सगा भाई मानने के लिए लोगों पर दवाब डाल रहे हैं / उन्ही दुराचारियों के विरुद्ध जब एक आन्दोलन प्रारम्भ हुआ तब इन्ही लोगों ने सैन्यबल की सहायता दे कर और एक षड्यंत्रकारी देश की स्थापना में सहायता की और फिर से अपने आपको शांति का पुजारी कहलाने लगे
देश में एक संविधान ऐसा बना जिसमें अपना कुछ भी नहीं था / जिस तरह भिखारी अपने भिक्षा पात्र में दाल ,चावल सब्जी सब कुछ मिला कर रख लेता है देश के संविधान के साथ भी ऐसा ही कुछ खिलवाड़ किया गया / संविधान कितना कमज़ोर था यह इस बात से प्रमाणित होता है कि अब तक सैकड़ों बार इसका संशोधन करने की आवश्यकता आन पडी /संविधान के प्रावधानों की धज्जियां बार बार उडाई जाती है और देश के सरवोछ शासक अपनी मजबूरी का रोना रोते रहते हैं, जो स्पष्ट प्रमाणित करता है कि यह नपुंसक और कायर हैं /
देश में एक राष्ट्रध्वज है जिसे देश द्रोही जलाने का समारोह मनाते रहते हैं और सरकार मूक दर्शक बनी रहती है / दूसरी तरफ राष्ट्रध्वज फहराने का प्रयत्न जो करते हैं उन्हें रोका जाता है, ताकि सरकार के अघोषित पिता कहलाने वाले यह आतंकी और देश द्रोही कहीं नाराज न हो जाएँ / देश की सुरक्षा के लिए जो प्राण अर्पित करते हैं उनके परिवार का का क्या होता है किसीको पता नहीं पर देश पर आक्रमण करनेवाले इन आतंकियों की खातिरदरी में ज़रा सी भी ढील नहीं दी जाती / देश द्रोही संगठनों के पक्षधर इस देश में कानून मंत्री बनाये जाते हैं ताकि देशद्रोहियों को सर पर चढ़ाया जा सके
कोई सरकारी नौकर सौ दो सौ की रिश्वत ले तो उसे नौकरी गँवाने के साथ साथ कारादंड भी दिया जाता है पर कई लाख करोड़ की हेरा-फेरी करने वाले इस देश में मंत्री की कुर्सी को सुशोभित किये रहते हैं / देश में कहीं भी ऐसा कुछ नहीं दीखता कि देश में न्याय, धर्म और सत्य है यहाँ /चोर- डकैतों की यहाँ आव-भगत होती है और साधुओं पर आक्रमण होता है /
पर एक संतुष्टि हैं ज़रूर , इन सब के बावजूद यह देश है, इसका एक मात्र कारण है कि ईश्वर है और वही सब कुछ देख रहे हैं / बस मित्रों हमें प्रतीक्षा है कि जिस तरह कंस,हिरण्यकशिप, दुर्योधन जैसे अत्याचारी और अविविकियों का अंत हुआ था उसी तरह उसी तरह इस अयोग्य सरकार का भी पाताल प्रवेश हो /
हर शेर को सवा शेर मिल ही जाता है, कैसे , सुनिए / हुआ ऐसा कि मामा के दांतों में बड़े जोर का दर्द हो रहा था / उन्होंने ड्राइवर से फ़ौरन गाडी निकलने को कहा और सुरक्षा बल के ताम-झाम के साथ पहुँच गए एक डेंटिस्ट के यहाँ / डेंटिस्ट ने जाँच की और आगे क्या हुआ यह पढ़ लीजिये नीचे 

डेंटिस्ट - आपके दांत उखाड़ने होंगे 
मामा - कितने का खर्च आएगा/
डेंटिस्ट - आपसे मैं फीस लूं ऐसा कैसे हो सकता है / आप मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं
मामा - पर आपकी यह दाल रोटी है, बगैर फीस दिए काम करवाना मुझे मंज़ूर नहीं
डेंटिस्ट - (झिझकते हुए ) एक दांत का ५०० के हिसाब से ४ दांतों का २००० रुपये लगेंगे
मामा - अरे बाप रे - इतने के लिए मैडम से मंजूरी लेनी होगी मुझे / पर दर्द बहुत हो रहा है / कोई राह नहीं है कि खर्चा कुछ कम हो ?
डेंटिस्ट - एक आसान राह है, और वह भी बिलकुल मुफ्त
मामा - (उछलते हुए ) अच्छा जल्दी बताओ न फिर
डेंटिस्ट - आप बिना सुरक्षा के जनता की बीच चले जाइए , आपके ४ तो क्या, पूरी बत्तीसी बिना कोई फीस के, जनता ही निकाल कर आपके हाथों में रख देगी
समाज में हर स्तर का व्यक्ति आज कल पैसा को ही सब कुछ मानने लगा है /
जिसके पास सौ हो वह हज़ार चाहता है , हज़ारवाले की तमन्ना लाख पाने की , 
लाखवाला करोड़ों का अरमान दिल में पालने लगता है / पर अब भी बहुत लोग 
यह जानने में असमर्थ हैं कि पैसा है तो "बहुत कुछ" पर "सब कुछ" नहीं है /
कुछ इसी बात पर एक कविता प्रस्तुत है शीर्षक है "पैसे की कीमत"

नौकरी की चाहत लिए दिल में
ट्रेन में सफ़र करता हुआ बेरोजगार बेटा
दुर्घटना में जब मारा गया //
बूढ़े लाचार मान- बाप को दिलाशा देने
सारा मोहल्ला उमड़ आया //
छाती अपनी पीट पीट कर रो रहे थे माता - पिता
किसके सहारे रहेंगे जिंदा, ऐ भगवन अब तू ही बता //
कितने अरमान थे इस दिल में, बेटे को पढाया था जब
कौन हमें सहारा देगा, अब इस बुढापे में ओ मेरे रब //
यही तो थी भगवान की मर्जी सब यही समझाते रहे
मातमपूर्सी का काम ख़तम कर एक एक खिसकते रहे //
कोने में एक आदमी बैठा, जब आया उन दोनों के पास
कहा रोना किस बात का, कहे को हो इतने उदास //
कर लेता क्या बेटा तुम्हारा, जिन्दा वह रहता भी अगर
दिला गया है कुछ धन तुमको, चाहे वह गया हो मर //
धक्के खा खा के दफ्तरों में वैसे ही तो जाता वह मर
मर कर कुछ तो दिलवा गया, छोडो अब अफ़सोस न कर //
मैंने कई बार पहले भी कहा है , देश में शासन की जो पद्धति प्रचलित है, उसके सहारे न तो देश का कोई भला होगा न ही समाज का . / दानवी शक्तियां प्रवल से प्रवलतर हो रही हैं और इन्हें प्रतिहत करने के लिए न तो प्रशासनिक उद्यम है न ही न्यायिक व्यवस्था आग्रही है / कुछ व्यक्ति जिन्हें प्रभु के न्याय पर सम्पूर्ण आस्था है कदाचित उन्ही के उसी विश्वास और आस्था के सहारे यह देश टिका है / इसी सन्दर्भ में एक भजन आप सभी को भेंट करता हूँ

हे कृष्ण - हे कृष्ण - अब तुम ही तो एक सहारे हो
भक्तोंकी सुनते नहीं अब, हो गए क्या तुम बहरे हो ------
साधू- सज्जनों के यहाँ तो हो रही सदा दुर्गति
अत्याचारी दानवों के हाथों में अब सब शक्ति
पाप-पथ पर जानेवालों पर, क्यों न लगते पहरे हो ------------
दुष्टों की मनमानी देखी, लांछित यहाँ विनयीजन है
उसकी पूजा करती दुनिया , हाथों में जिसके धन है
वही आदर्श कहलाता है, जिसके दो - दो चेहरे हो ,-----------------
चक्रसुदर्शन कहाँ खो गया, क्यों न उसको चलाते तुम
अन्यायी की भीड़ में देखो, न्याय धर्म हो रही है गुम
सत्य का सूरज उगेगा कहते , अन्धकार जब गहरे हो ,-----------

मैंने कल वादा किया था की मैं अब यही प्रयास करूंगा  कि मेरे मामा में अक्ल न होने के कारण  वह किसी और अक्ल के हिसाब से ही सारा काम करते हैं, इस बात को प्रमाणित करूँ / तो आज की कथा सुनिए और सुबह सुबह हँसी  के साथ अपना दिन शुरू कीजिये /

हुआ ऐसा कि कल मामा हमारे शहर में आये थे आप सभी जानते हैं /किसी तरह एक आदमी उन तक पहुँच गया और कहा जी आपसे एक सवाल करने आया हूँ आप उसका जवाब देने कि कृपा करें तो मैं चला जाऊंगा/ मामा  को जाने  क्या सुझा  कहा , ठीक  है पूछो  / आदमी ने  कहा लोग कहते  हैं  आप किसी और के कहने  पर ही अपना सारा काम करते हो , आपके खुद की अक्ल नहीं है क्या ? मने कहा अक्ल तो है भाई  चाहो तो इन्तेहान ले लो / तो सुनिए दोनों में क्या बातें हुयी 

आदमी - मेरे घर पर ३ लोग हैं, एक मेरी पत्नी, दूसरा मेरा बच्चा, तो  बताइए तीसरा कौन है ?
मामा  - (बहुत दे तक सोचते रहे और कहा) माफ़ करना भाई, पहली बात तो मैं तुम्हे जानता नहीं , उपरसे मैं कभी तुम्हारे घर गया ही नहीं  तो मैं कैसा बता पाऊँगा कि तीसरा कौन है ?
आदमी (हँसते हुए)  अरे मामा इसीलिए लोग कहते हैं कि आपकी अपनी अक्ल है ही नहीं , अरे भाई तीसरा आदमी मैं ही हूँ और कौन ?
मामा ( खुश हो कर) तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया भाई तुमने आज एक ज्ञान की बात बताई मुझे / वैसे तुम करते क्या हो  / 
आदमी - जी मैं आगे की चौक पर चाय बेचता हूँ 

इतना कह कर वह चला गया / मामा जब अपने कार्यालय लौटे तो उन्होंने अपने सारे सहयोगियों के एक बैठक बुलाई और यही सवाल किया जो उन्हें चायवाले ने पूछा था / ज़ाहिर है जैसा मामा  वैसे ही उनके आदमी/ किसी को भी जवाब मालूम न था ./ तब मामा  खड़े हो गए और सीना तान कर पूरी तरह अकड़ कर सभी से कहा, इतनी सी बात आपको मालूम  नहीं, आप क्या करते हैं काम फिर बिना अक्ल के / अरे भाई मेरे घर का वह तीसरा आदमी  भुबनेश्वर में  चौक पर चाय की दूकान चलता है / हा  हा  हा  हा / अब मान गए न मेरे मामा की अक्ल को /