Sunday, January 8, 2012

मैंने कई बार पहले भी कहा है , देश में शासन की जो पद्धति प्रचलित है, उसके सहारे न तो देश का कोई भला होगा न ही समाज का . / दानवी शक्तियां प्रवल से प्रवलतर हो रही हैं और इन्हें प्रतिहत करने के लिए न तो प्रशासनिक उद्यम है न ही न्यायिक व्यवस्था आग्रही है / कुछ व्यक्ति जिन्हें प्रभु के न्याय पर सम्पूर्ण आस्था है कदाचित उन्ही के उसी विश्वास और आस्था के सहारे यह देश टिका है / इसी सन्दर्भ में एक भजन आप सभी को भेंट करता हूँ 

हे कृष्ण - हे कृष्ण - अब तुम ही तो एक सहारे हो 
भक्तोंकी सुनते नहीं अब, हो गए क्या तुम बहरे हो ------
साधू- सज्जनों के यहाँ तो हो रही सदा दुर्गति
अत्याचारी दानवों के हाथों में अब सब शक्ति
पाप-पथ पर जानेवालों पर, क्यों न लगते पहरे हो ------------
दुष्टों की मनमानी देखी, लांछित यहाँ विनयीजन है
उसकी पूजा करती दुनिया , हाथों में जिसके धन है
वही आदर्श कहलाता है, जिसके दो - दो चेहरे हो ,-----------------
चक्रसुदर्शन कहाँ खो गया, क्यों न उसको चलाते तुम
अन्यायी की भीड़ में देखो, न्याय धर्म हो रही है गुम
सत्य का सूरज उगेगा कहते , अन्धकार जब गहरे हो ,-----------

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