Sunday, January 8, 2012

मित्रों कुछ ही दिनों में ५ राज्यों में चुनाव होंगे / व्यक्ति चाहे जैसा भी हो एक बार चुनाव जीत गया तो वह "मान्यवर" बन जाता है, चाहे उसे खुद मान-सम्मान के अर्थ का पता ही न हो / जीतने पर सबसे पहला रस्म जो अदा करते हैं वह है "शपथ ग्रहण" का / ईश्वर,सत्य- निष्ठां, भय, अनुराग,द्वेष ,पक्षपात,संविधान, श्रद्धा इन ९ शब्दों को ले कर जाने कबसे यह जन प्रतिनिधि शपथ पाठ करते आ रहे हैं और "चुनाव" को "चूनाव" बनाते आ रहे हैं , अर्थात लोगों को छूना लगाने के साथ साथ देश नामक नाव कैसे चूने लगे इसकी भी व्यवस्था करते आ रहे हैं / देश का हाल सुधरेगा क्या, दिनोदिन बाद से बदतर होती जा रही है / सोचा की उल्लिखित इन्ही ९ शब्द जो हम जैसे आम आदमी के लिए ९ ग्रहों के प्रकोप से कम नहीं उन पर एक रचना लिख ही डालूँ, पढ़िए, और अपनी टिप्पणी देना याद रखिये / 

शपथ ग्रहण की ख़ास नौटंकी आज भी देश में जारी है 
झेलना पड़ता है पर हम को, रस्म जो यह सरकारी है //
नाम ले कर उस ईश्वर का , शपथ जो यह लोग लेते है
अपने स्वार्थ के खातिर तो ईश्वर की भी बेच देते हैं //
सत्यका नाम जाने क्यों लेते,सच कभी तो नहीं कहा
निष्ठां क्या है न जानें, ह्रदय में कभी रही निष्ठां क्या //
भय तुम्हे कब किससे हुआ,भीत सबको तुमने किया
अनुराग का ज़िक्र करो न, लंका में लगे हरिशब्द जैसा //
द्वेष की आगको भड़काते क्यों परहेज है इससे फिर
पक्षपात जो न करो, जाओगे तुम तो सत्ता से गिर //
संविधान को ताक पे रखके, मनमानी तुम करते हो
श्रद्धा रही न ह्रदय में, श्राद्ध समिविधान का करते हो //
शपथ ग्रहण करके ए नेता- देश को ग्रहण लगाते हो
ग्रहण से फिर भी सूरज उबरे, हमको तुम डुबाते हो //
शपथ बेवजह लेते हो क्यों बंद कर के जनता का पथ
"शपथ" खोले "सौ पथ " तुम्हारे अपने लिए कोई न पथ //

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