देश की हालत पर कुछ कहना चाहता हूँ, कृपया ध्यान दें
क्या होगा इस देश का यारों कोई मुझे यह बताओ
घर का चिराग जो घर को फूंके क्या होगा बताओ //
बन्दर खुला घूम रहा है हाथ में उस्तरा ले के यहाँ
कैसे रखें सलामत गर्दन , कोई मुझे यह समझाओ //
माना यह के भेड़ - चाल में जनता यहाँ पर मस्त है
नेता यहाँ कसाई है , भेड़ को कहीं कोई ले जाओ //
मजबूरी का रोना रोये यहाँ नेता हो या जनता हो
बिन लगाम के घोड़े को कहो कब तक यूँ दौडाओ //
ज़ुल्म के मारे वक़्त गुजारे हर कोई तो रो रो कर
किसके आँसूं कौन पियेगा , यह तो कोई बताओ //
नारी को जो कहता था देवी, आज वोह देश कहाँ है
नारी शरीर के सब विज्ञापन को तुरंत बंद करवाओ //
तरस रही पानी को जनता,बहती मदिरा की नदियाँ
जब सरकारी ही भट्टी खोले, जनताको क्या समझाओ //
ईश्वर के इच्छा कह कर, हर कोई साध लेता है चुप्पी
जाने क्या अब होगा है, चली इशार को ही बचाओ //
नेता जो देते हैं नसीहत , खुद पाप- पंक में हैं डूबे
"कुंदन" का इतना कहना है , इन्हें सबक सीखलाओ //
क्या होगा इस देश का यारों कोई मुझे यह बताओ
घर का चिराग जो घर को फूंके क्या होगा बताओ //
बन्दर खुला घूम रहा है हाथ में उस्तरा ले के यहाँ
कैसे रखें सलामत गर्दन , कोई मुझे यह समझाओ //
माना यह के भेड़ - चाल में जनता यहाँ पर मस्त है
नेता यहाँ कसाई है , भेड़ को कहीं कोई ले जाओ //
मजबूरी का रोना रोये यहाँ नेता हो या जनता हो
बिन लगाम के घोड़े को कहो कब तक यूँ दौडाओ //
ज़ुल्म के मारे वक़्त गुजारे हर कोई तो रो रो कर
किसके आँसूं कौन पियेगा , यह तो कोई बताओ //
नारी को जो कहता था देवी, आज वोह देश कहाँ है
नारी शरीर के सब विज्ञापन को तुरंत बंद करवाओ //
तरस रही पानी को जनता,बहती मदिरा की नदियाँ
जब सरकारी ही भट्टी खोले, जनताको क्या समझाओ //
ईश्वर के इच्छा कह कर, हर कोई साध लेता है चुप्पी
जाने क्या अब होगा है, चली इशार को ही बचाओ //
नेता जो देते हैं नसीहत , खुद पाप- पंक में हैं डूबे
"कुंदन" का इतना कहना है , इन्हें सबक सीखलाओ //
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