Sunday, January 15, 2012

देश स्वतंत्र होने के उपरांत हम पैदा हुए / शैशव,किशोरावस्था,यौवन,प्रौढ़ काल सब लांघ कर अब जीवन के सायान्ह में हम आ पहुँच चुके हैं/ देश में बड़ी प्रगति हुई है ऐसा कहते हुए हमने बहुतों को सुना है पर धर्म,न्याय, सत्य और सर्वोपरि मानविकता तथा जीवन में नैतिक आचरण का जिस तीव्रता से स्खलन या यूँ कहिये कि विनाश हुआ है उस पर कदाचित उनकी दृष्टि गयी नहीं / सार्वजनिक जीवन में विशेष रूप से जो राजनीति (नीति विहीन) से सम्बंधित है एक छोटी से रचना प्रस्तुत है / आनेवाले दिनों में ५ राज्यों के चुनाव के सन्दर्भ में जिस प्रकार काले धन का लाना - ले जाना और ग़लत बातें कह कर मतदाताओं को बरगलाने का प्रयास जो चल रहा है, उसी स्थिति ने मुझे प्रेरित किया यह पंक्तियाँ लिखने को 

काबिलियत 

गधा अगर हो कुर्सी पर तो, हर कोई सर को झुकाता है /
गधे की जेब में नोट हो तो, हर कोई आदाब बजाता है //
इल्म-हुनर या काबिलियत, इनको कहाँ कोई पूछता है /
गधा अगर करे हुकूमत तो, इंसान भी गधा बन जाता है //
उम्र भर घिस घिस के कलम, होता क्या हासिल भला /
करता रहे जो बस नसीहत तो, गधा नेता बन जाता है //
वादों के फूल खिलाते हैं यह, खुशबू जिसकी हम लेते हैं /
अपने गरज के लिए गधा, चमन को बेच खा जाता है //
करते रहो खिदमत सब की ,तो कोई भी न परवाह करे /
नेता बन जो चल बसों ,कुंदन कहे सारा मुल्क रोता है //

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