Saturday, June 9, 2012


Grameen vikas aur bachat ke mahatwa par banee ek film kee dubbing ke samay- main, humare group ke do aur sadasya Sujit Bhai aur Avtaar bhai Dubbing studio men..
मित्रों , आप सभी जानते ही हैं , सारा देश गर्मी से परेशान है / सुना है ग्रीष्म प्रवाह में कई मौत भी हो चुकी है / पर सरकार को क्या फर्क पड़ता है , कोई मरे या जिंदा रहे / उसी बात पर सोच रहा था , कि आखिर मन्नू मामा को इस देश से और यहाँ के लोगों से लगाव क्यों नहीं है / अचानक दिमाग की बत्ती जलने लगी, अरे भाई मामा तो पैदा पकिस्तान में हुआ था न, तो भारत तो उसकी जन्मभूमि नहीं है , तो उसे क्यों लगाव हो इस देश से / इसी तरह की बात को ले कर यह पैरोडी लिखी, मूल गीत है - जलते है जिसके लिए तेरे आँखों के दीये , तो पढ़िए

जलते हैं मामा प्यारे - देश के लोग सारे
चैन से बैठा है क्यों, मेडम के पैर पखारे //
चलो माना कि लोगोंने तो तुझे वोट न दिया
मेरे इस देश की मिटटीपे भी तू पैदा न हुआ
इसी लिए तो शायद देश का सोचा न रे , जलते ----
कैसे यह लोग कहे जाते तू है बड़ा ईमानदार
यह बता असम में कैसे हो गया तेरा घर द्वार
झूठी बातें कहते हुए शर्म तुझे आयी न रे , जलते --
तू घडा चिकना है तुझपे असर होगा नहीं
जानता हूँ मैं कि जीवनमें तू सुधरेगा नहीं
ऊपर जायेगा जब तू, क्या होगा सोचा क्या रे , जलते ---
हाँ तो मित्रों, अपने एस.सी.मुद्गल जी थोडा रूठे हुए थे हमसे./ पर उन्हें मनाना भी हमें खूब आता है , मन्नू मामा पर एक पैरोडी लिख दो तो वह खुश/ तो आज बहुत दिनों के बाद एक पेरोडी डाल रहा हूँ ,उन सभी के लिए जिन्हें पैरोडी पसंद है./मूल गीत के मुखड़े को ज्यों का त्यों रखा है मैंने, इसलिए जानने में कोई परेशानी नहीं होगी आपको / तो मज़ा लीजिये मामा भांजे की कहानी का 

ओ दुनिया के रखवाले 
सुन दर्द भरे मेरे नाले , सुन दर्द भरे मेरे नाले ,----
धर्मन्याय की राह पे चलकर इज्ज़त मैंने कमाई
मामा की काली छाया से, देखो सब है गँवाई
हो गयी मेरी जग हँसाई
ओ ओ -- इज्ज़त की मेरी उठ गयी अर्थी अब तो नीर बहा ले
ओ दुनिया के रखवाले----
चूहे को खोजे ज्यों बिल्ली, मेढक सांप है खोजे
मामा से बचने को अब तो राह खोज रे भांजे
संकट से चाहे जुझे
ओ ओ - कर दया मुझ पे ओ मेरे दाता मैं हूँ तेरे हवाले
ओ दुनिया के रखवाले ---
आग बनी सावन की बरखा फूल बने अंगारे
नागन बन गयी रात सुहानी पत्थर बन गए तारे
मेरे देश को कोई बचा रे
ओ ओ -किस्मत फूटी , आस भी टूटी, मालिक इनको उठा ले
ओ दुनिया के रखवाले --
लोग दुखी हैं मामा सुखी, अक्ल पे पड़ गया पत्थर
देशभक्त सब रो रो मरे हैं, पापी के मुंह घी शक्कर
प्रभु कैसा है यह चक्कर
ओ ओ - आना होगा अब तो भगवन, तुझ बिन कौन संभाले
ओ दुनिया के रखवाले --

नोट- मित्र यह मयत्र मनोरंजन के लिए नहीं लिखा मैंने, यह मेरे मन की सच्ची भावनाएं हैं. इसका ध्यान रखें..
परिवार में दिखते हुए बिखराव पर , एक छोटी सी कविता , मेरी तरफ से;

वह भी एक ज़माना था 
जब बेटा स्कूल से लौट कर 
खुशी खुशी, मेरे हाथों पर 
अपने इम्तिहान का रिपोर्ट कार्ड
रख दिया करता था //
पर आज ज़माने में
ढेरों तब्दीली आ गयी है
दफ्तर से लौट कर वह
अपने कमरे में जा
तनख्वाह का पेकेट
अपनी पत्नी को थमता है //
परवरिश में उसकी
शायद मुझसे कहीं चूक
हो गयी थी //
एक ज़माना ऐसा था जब सारे जवान दिल शम्मी जी के गानों के दीवाने हुआ करते थे/ उनका एक बहुत ही लोकप्रिय गीत था" यह चाँद सा रोशन चेहरा - जुल्फों का रंग सुनहरा" / उसकी पैरोडी पर भे ज़रा नज़र डाल लीजिये 

यह बुझा बुझा सा चेहरा - है मौत का जिसपे पहरा 
इन आँखों में मक्कारी - साज़िश है जिस में गहरा 
मैं लानत भेजूं उसी पे - तुझे पी एम् जिसने बनाया ------
एक जीव होती है लोमड़ी - लोगों से सुना करते थे
तुझे देख के मैंने जाना वह ठीक कहा करते थे (२)
जिसने तुझको पहचाना, वह जानता तू है शातिर
जो कहते तुझको साधू, उनकी खोपड़ी गयी फिर
मैं लानत भेजूं उसी पे - तुझे पी एम् जिसने बनाया ------
जिस देशका तुझ सा नेता, दुश्मनकी ज़रुरत क्या है
कुर्सी ही है तुझको प्यारी, लोगों से मोहब्बत न है (२)
बस नाम की सर पे पगड़ी -जिसको न सम्भाला तुने
इज्ज़त को रखकर गिरवी, कुर्सी यह पायी तूने
मैं लानत भेजूं उसी पे - तुझे पी एम् जिसने बनाया ------
कुछ सीख ले ले भांजे से - कर ले शर्म अब कुछ तो
जाएगा तू जग से जब भी, कुछ सोच ज़रा उसकी तो (२)
किस काम की तेरी पढाई, जो काम न अब तक आयी
लोगों के गले पर बुगदा, तू फेरा बनके कसाई
मैं लानत भेजूं उसी पे - तुझे पी एम् जिसने बनाया ------
मित्रों, सच कहूं तो आज मैं बहुत दुखी हूँ / मेरी ग़लती की सज़ा कोई और भोग रहा है / दोपहर से देख रहा हूँ हर कोई लाल पीला हो रहा है , मोंटेक सिंह पर क्यों कि उसने शौचालय पर ३५ लाख खर्च करवा दिए/ क़सम से, कसूर उसका नहीं , सारा क़सूर तो मेरा है / कुछ दिन पहले उसने मुझे फ़ोन पर कहा अरे भाई क्या सिर्फ अपने मामा पर ही पैरोडी लिखते रहोगे? हम भी सरदार हैं ,नीली पगड़ी भी बांधते हैं और कमीनेपन और स्वार्थी चाल में तुम्हारे मामा से कोई कम नहीं हैं / ठीक है, हम भी कुछ ऐसा करते हैं कि तुम मजबूर हो जाओगे हम पर पैरोडी लिखने को / तो बताइए कसूर मेरा है या उसका / मैंने अगर पहले से उस पर पैरोडी लिख दी होती तो शायद ३५ लाख बर्बाद होने से बच जाते / वैसे जब इनके खाने पीने का बोझ हम पर है तो इनके शौच की सुविधा का जिम्मा भी तो हम ही लेंगे न ? खैर मज़ा लें..

मूल गीत - फिल्म तीसरी क़सम

दुनिया बनानेवाले , क्या तेरे मन में समाई
काहेको मोंटेक बनाई , तूने काहे को मोंटेक बनाई ----
काहे बनाये तूने योजना आयोग
वहां बिठाए कैसे कैसे यह दानव
कोई न योजना कैसा यह आयोग
सभीने लगाया मेरे देशको देखो रोग
रोग लगा दी पर- कभी न दी है दवाई , काहे को मोंटेक--
खाने को ३२ और शौच के ३५ लाख
हम तो हुए ख़ाक, बन गयी इनकी साख
बन्दर के हाथों में उस्तरा थमाया
गर्दन कटे न कहीं भय है समाया
भयभीत जनता जहाँ कैसे होगी भलाई , काहे को मोंटेक--
एक है मोंटेक यहाँ - एक मनमोहन
मन से नहीं नाता, इनको लुभाए धन
क्रिया करम किया दोनों ने देश का
अफ़साना क्या सुनाएँ हम इनके ऐश का
भोंपू इमानदारी की इन अय्याशों ने बजाईए, काहे को मोंटेक---

नोट - अगर आप को यह पसंद आया तो दूसरा भी डालता हूँ कुछ हे देर में
दूसरी पेरोडी मोंटेक पर , मन है नहीं पर टिका हुआ है यह / मूल गीत है फिल्म अनमोल घड़ी का - क्या मिल गया भगवान्

क्या मिल गया भगवान् तुम्हे 'मोंटेक' बना के 
शीशम की यह लकड़ी पे तुम्हे दीमक लगा के ,---
हम सोच रहे थे कभी खुशहाल हम होंगे 
आजादी जो आयेगी तो हंस हंस के जीयेंगे
क्या क्या थी खबर तुम को न आयेगी दया भी
गद्दी दिया तुमने गधों को , देश डूबा के
शीशम की यह लकड़ी पे तुम्हे दीमक लगा के ,---
मोंटेक ही दुश्मन नहीं दुश्मन है मामा भी
जो सच के साथ हैं उन्हें न चैन कहीं भी
यह कैसी है सरकार तुम्हे देश में बोलो
कीचड लगाए माथे पे जो चन्दन कह के
शीशम की यह लकड़ी पे तुम्हे दीमक लगा के ,---
३२ का खर्चा जो करे कहलाये वह अमीर
टायलेट है लाखों की लेकिन कैसे यह फ़कीर
जो छीन के रोटी हमारी खाते ही रहते
टायलेट का खर्चा रहेगा वसूल वह करके
शीशम की यह लकड़ी पे तुम्हे दीमक लगा के ,---
तो भाइयों चलो एक और पैरोडी हो जाए / मन्नू मामा भी खुश उसका कोई जोडीदार मिल गया कहके / मूल गीत है शोले का - यह दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे 

यह शैतानी हम नहीं छोड़ेंगे 
सारा खून जनता का पी के ही छोड़ेंगे ----
तेरा मुंह - मेरा मुंह, तेरा पेट - मेरा पेट 
ऐसा है रिश्ता
लोग रोते हैं सारे , माल सब महंगा
अपनको तो सस्ता
डटके हम खायेंगे - शान से टायलेट जायेंगे
अपना यह रास्ता , यह शैतानी--------------
लोगों को आते हैं दो नज़र हम मगर
देखो दो नहीं
नीली पगड़ी बांधे हैं, कामिक्स* के हम पंडित है
हम सा कोई नहीं
३२ के लोग खाते हैं- ३५ के हम जाते हैं
ख़ास फर्क कोई नहीं , यह शैतानी-----------
अपनी तो चांदी है , जनता अपनी बांदी है
मुंह न खोलेगी
ऐसा ही चलता रहे, मलाई खाते रहें
मस्त यह ज़िन्दगी
पूण्य क्या - पाप क्या, माँ क्या- बाप क्या
मेडम की बंदगी , यह शैतानी --

* कामिक्स - कल हमारे छोटे भाई अरबिंद पाण्डेय जे एने एक बढ़िया बात कही- की मामा और मोंटी इकानोमिक्स नहीं हारर कामिक्स के पंडित है / वह बात बड़ी पसंद आयी मुझे इसलिए इस शब्द का प्रयोग किया..
अब तो भैया, पैरोडी के अलावा और कुछ लिखने का मन ही नहीं होता है / एक तो मन तोडा सा हल्का हो जाता है और ४ लोगों को खुशी मिलती है, ज्यादा न सही / इसी बहाने थोडा सा पुण्य कमा लेते हैं/ तो आज का मूल गीत है फिल्म "उड़न खटोला" से "मोहब्बत की राहों में चलना संभल के " देश की हालत पर है यह व्यंग

सच्चाई की राहों में चलना संभल के 
यहाँ जो भी आया, बना वह तो जेल के ,----
न पायी किसीने न्याय की मंजिल 
जाने टूटी कितनी जोड़ी चप्पल के ,------
हमें देती दावत मक्कारों की दुनिया
हंसी वह उडाये मेरे इन उसूल के ,-----
तोड़ दे न तुझको तेरी यह सरकार
पुलिस साथ उसके रहना संभल के -----
सारे कसाई आज राजा बने हैं
जेबें भरें अपनी शरीफों को छल के ,----
जो है चोर पाजी, बना है ईमानदार
धरम खो गयी है, लंगडी चाल चल के ,-----
दिन यह फिरेंगे एकदिन होंगी बहारें
बंधाती है हिम्मत, इशारे यह दिल के ,---
बहरे बने हो क्या हे भगवन बताओ
करो कारनामा अब तो तुम ही कमाल के ------
यह तो पक्की बात है कि आप सभी ने फिल्म गाइड का गीत "गाता रहे मेरा दिल" सुना ही होगा / अब उस गीत को अपना मन्नू मामा कैसे गाता है सुन लीजिये 

गाता रहे मेरा दिल - मैं अपराधी मैं हूँ वकील हाय
जब तक मैडम हैं हाकिम, अपना धड़केगा ही दिल , गाता रहे ---
ओह मेरे मोंटी यार , पैखाना साफ़ ही रखना
लोगों का सोचे क्यों, उनको तो भूखों मरना
ओछापन हमें सीखला देगा ग़लत काम सब करना
जब तक मैडम हैं हाकिम, अपना धड़केगा ही दिल , गाता रहे ---
काहे की अब चिंता , मिडिया जो साथ रही है
टुकड़े खा कर देखो , नग़में सुना रही है
६० बरस से यही तो सिस्टम काम आ रही है
जब तक मैडम हैं हाकिम, अपना धड़केगा ही दिल , गाता रहे ---
जानती है सब पब्लिक, किसी फिल्म का है गाना
जान अगर यह जाती, बिस्तर गोल हो अपना
जो न पूरे करने हो, दिखलायें इनको सपना
जब तक मैडम हैं हाकिम, अपना धड़केगा ही दिल , गाता रहे ---
अनगिनत है जनता, गिनती अपनी उंगली पर
दिए जाते हैं फिर भी हम चक्कर पे चक्कर
ऐसे नीच हैं हम जो न ले कोई भी हमसे टक्कर
जब तक मैडम हैं हाकिम, अपना धड़केगा ही दिल , गाता रहे ---
यह उस कुँवारे पर है , जो शायद आजीवन कुंवर रहने के लिए ही पैदा हुआ है / पढ़िए और रविवार का आनंद लीजिये 

कुँवारा हूँ--- कुंवारा हूँ
सब लानत भेजे, पर
कहता सबका दुलारा हूँ........
राज-पाट नहीं, कोई धाक नहीं
मुझको युवराज यह कहते हैं
सारे देश में खिल्ली उड़े
तारीफें चमचे करते हैं
शोले कहते पर हल्का सा
नहीं शरारा हूँ...............
रोटी दलितों का छीनता हूँ
उनके घर पर मैं सोता हूँ
करता हूँ दिखावा, कभी कभी
मैं उनके नाम पे रोता हूँ
जनता - नहीं देती वोट
ऐसा तकदीर का मारा हूँ........

अपनी टिप्पणी

जो पाप किये तेरे पूर्वज
तू फल उसीका भोगता है
जो पेड़ बबूल का बोता है
कभी आम कहाँ वह खाता है
करले प्रायश्चित रे मूरख
कहता मैं दोबारा हूँ.....
मांगने आयी थी आग, बन बैठी मालकिन, यह तो आपने सुना ही होगा. यह पैरोडी उसी पर है

घर आयी मेरे परदेसन 
क्या पता निकलेगी वह डायन-----
जादू ऐसा किया उसने
सारे शेर बने मेमने
सब को ओढाने लगी वह कफ़न,
क्या पता निकलेगी वह डायन-----
लोग भी कैसे अहमक है
अंगारा पल्लू में रखते है
उसपे लुटाते देश का धन
क्या पता निकलेगी वह डायन ---
जाने मर्ज़ है क्या उसको
बार बार जाए विदेश को
जाने मरेगी कब पापन
क्या पता निकलेगी वह डायन------
हद तो हो गयी अब यारों
बन बैठे है "चुड़ैल" - "पारो"
सहता कैसे तुम्हारा मन
क्या पता निकलेगे वह डायन------
पैरोडी हो और मामा न हो, यह तो मामा की बेईज्ज़ती होगी न, तो आखरी न. मामा का है / पढ़िए



ऐ जनता जूते बरसाओ, मामा मनहूस आया है 

इसे मरघट पे पहुँचाओ, जी कर इसे करना ही क्या है,मामा मनहूस आया - ------

न दे जो साथ सच्चे का, तो फिर वह आदमी क्या है 

फैलाए ऐसी बर्बादी, उसके आगे सुनामी क्या है 

अगर मुखिया ऐसे हो देश में, तो गद्दार फिर क्या है , मामा मनहूस आया -------

मज़े लुटे हैं सब पापी, साधु अब जेल में सड़ते 

विदेशों में जमा है धन, जो सच्चे हैं वह अब कड़के 

हुकूमत जो इसे कहते , डकैती बोलो फिर क्या है , मामा मनहूस आया --------

उसूलों के हों जो पक्के, कभी तो वह नहीं झुकते 

ज़रा सी हो जो खुद्दारी,वह समझौते नहीं करते 

इसे जो आदमी मानो, नपुंसक बोलो फिर क्या है , मामा मनहूस आया ----

घोटाले पर घोटाले ही तो देखी इस हुकूमत में

अभी से हाल ऐसा हो, होगा फिर क्या क़यामत में 

बचेंगे कैसे पापी से बताओ रास्ता क्या है, मामा मनहूस आया है