Saturday, June 9, 2012

यह उस कुँवारे पर है , जो शायद आजीवन कुंवर रहने के लिए ही पैदा हुआ है / पढ़िए और रविवार का आनंद लीजिये 

कुँवारा हूँ--- कुंवारा हूँ
सब लानत भेजे, पर
कहता सबका दुलारा हूँ........
राज-पाट नहीं, कोई धाक नहीं
मुझको युवराज यह कहते हैं
सारे देश में खिल्ली उड़े
तारीफें चमचे करते हैं
शोले कहते पर हल्का सा
नहीं शरारा हूँ...............
रोटी दलितों का छीनता हूँ
उनके घर पर मैं सोता हूँ
करता हूँ दिखावा, कभी कभी
मैं उनके नाम पे रोता हूँ
जनता - नहीं देती वोट
ऐसा तकदीर का मारा हूँ........

अपनी टिप्पणी

जो पाप किये तेरे पूर्वज
तू फल उसीका भोगता है
जो पेड़ बबूल का बोता है
कभी आम कहाँ वह खाता है
करले प्रायश्चित रे मूरख
कहता मैं दोबारा हूँ.....

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