Saturday, June 9, 2012

परिवार में दिखते हुए बिखराव पर , एक छोटी सी कविता , मेरी तरफ से;

वह भी एक ज़माना था 
जब बेटा स्कूल से लौट कर 
खुशी खुशी, मेरे हाथों पर 
अपने इम्तिहान का रिपोर्ट कार्ड
रख दिया करता था //
पर आज ज़माने में
ढेरों तब्दीली आ गयी है
दफ्तर से लौट कर वह
अपने कमरे में जा
तनख्वाह का पेकेट
अपनी पत्नी को थमता है //
परवरिश में उसकी
शायद मुझसे कहीं चूक
हो गयी थी //

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