Saturday, June 9, 2012

एक ज़माना ऐसा था जब सारे जवान दिल शम्मी जी के गानों के दीवाने हुआ करते थे/ उनका एक बहुत ही लोकप्रिय गीत था" यह चाँद सा रोशन चेहरा - जुल्फों का रंग सुनहरा" / उसकी पैरोडी पर भे ज़रा नज़र डाल लीजिये 

यह बुझा बुझा सा चेहरा - है मौत का जिसपे पहरा 
इन आँखों में मक्कारी - साज़िश है जिस में गहरा 
मैं लानत भेजूं उसी पे - तुझे पी एम् जिसने बनाया ------
एक जीव होती है लोमड़ी - लोगों से सुना करते थे
तुझे देख के मैंने जाना वह ठीक कहा करते थे (२)
जिसने तुझको पहचाना, वह जानता तू है शातिर
जो कहते तुझको साधू, उनकी खोपड़ी गयी फिर
मैं लानत भेजूं उसी पे - तुझे पी एम् जिसने बनाया ------
जिस देशका तुझ सा नेता, दुश्मनकी ज़रुरत क्या है
कुर्सी ही है तुझको प्यारी, लोगों से मोहब्बत न है (२)
बस नाम की सर पे पगड़ी -जिसको न सम्भाला तुने
इज्ज़त को रखकर गिरवी, कुर्सी यह पायी तूने
मैं लानत भेजूं उसी पे - तुझे पी एम् जिसने बनाया ------
कुछ सीख ले ले भांजे से - कर ले शर्म अब कुछ तो
जाएगा तू जग से जब भी, कुछ सोच ज़रा उसकी तो (२)
किस काम की तेरी पढाई, जो काम न अब तक आयी
लोगों के गले पर बुगदा, तू फेरा बनके कसाई
मैं लानत भेजूं उसी पे - तुझे पी एम् जिसने बनाया ------

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