Friday, December 20, 2013



एक उद्गार उन बहरे लोगों के लिए जो कहते हैं की धर्म को राजनीति से नहीं जोड़ना चाहिए.. उदयन सुपकर दादा 

कर्म से धर्म को जोड़ के देख लो - कितना नर्म होगा जीवन 
धर्म हीन कर्म शर्म का कारण -आस का न हो जिसमें किरण //

शासक जब बन जाए अधर्मी - प्रजा जनों का होता शोषण
गूंगा बेहरा राज करे जब - निश्चित न्याय का होगा हनन //

कोई उड़ाए छप्पन भोग - तो कोई खाए अनुदान का अन्न
कोई मरे यहाँ कर के बोझ से -कोई खन पीता राक्षस बन//

चोर मंडली को मस्ती सारी - क़िस्मत पे यहाँ रोए सज्जन 

आवाज़ जिसने यहाँ उठाई -उसे मुफ़्त में मिले रे कफ़न //

इनको अब तू पहचान ले भाई - अब तो होगा इनका पतन

 दिल में नेकी जगा ज़रा तू -देश बदल डाल कहता 'कुन्दन'//


एक बहुत बड़ी समस्या मानवाधिकार का 

स्वतंत्र राष्ट्र में रहता हूँ पर कहाँ है कोई अधिकार 
जब भी होंठों को खोला पड़े पीठ पर क़ानूनी प्रहार //

पढ़ लिख कर कुछ बन जाऊं सोच के कॉलेज गया
नक़लची कुछ ऐसे छाए थे देख कर मन क्षूर्ण हुआ 
बोलूं कुछ तो आँख दिखाए प्रोफ़ेसर श्रीने बारंबार //

जैसे तैसे करने गुज़ारा कहीं नौकरी एक मिली 
देख के भौंचक्का हो गया मैं ऐसी चली वहाँ धाँधली
साहब ने धमकाया मुझको खराब करूँगा सी सी आर//

जीतने भी महकमे सरकारी बिना घूस के करे न काम
नीचे से उपर तक जो जाओ शिकायतें भी हैं नाकाम
नीति बस है एक चलती काम बनाओ ले दे के यार //

मान मर्यादा नहीं सुरक्षित माँ बहनोकां देश में आज
जो बंदा है सीधा सादा गिरती सदा उसी पे ही गाज
अन्यायी को मौज बड़े हैं साधुओं का पर है बंटाधार //

दानव का जहाँ राज चला मानवका वहाँ क्या अधिकार
कल से लेकिन देख रहा हूँ ज्ञानी जनों में बड़ा हाहाकार
उनकी नज़रों में "गे" बनना अब सर्वश्रेष्ठ मानवाधिकार//

मुझे लज्जा आ रही है कि इस देश में प्रकृति और समाज द्वारा बनाए गये नियम और परंपरा को भंग करनेवाले ही आज देश में नेता और बुद्धिजीवी हैं और शासन को नियंत्रित कर रहे हैं . अगर इन्हे मनुष्य कहा जाता है हम मनुष्य कहलाना कतई पसंद नहीं करेंगे
मित्रों- सोने जा रहा था - अचानक मन में कुछ विचार उभरे- सोचा क्या पता कल सुबह गायब न हो जाएँ तो फिर से लौट आया पोस्ट डालने - हम जिन्हे अपना और अपना परिवार मानते हैं उन्हे पैदा होते समय हम जानते हैं क्या - नहीं न - तो फिर यह पराया और अपना क्या चीज़ है- उसी पर कुछ लिखा है - देखिए पसंद आता है क्या आपको ..

पैदा हुआ था मैं जब जाग में -अजनबी था यह सारा जहाँ
वक़्त बीता तो पता चला मुझे कौन पिता हैं और कौन है माँ //

जिन संग खेल गुजरा था बचपन भाई बहन सब थे वह मेरे
उसीको कुनवा मान लिया - संग बीते जिनके दिन रात मेरे //

प्यार दुलार और स्नेह प्रेम भई सब कुछ तो भरपूर ही पाया
खुशी मिली जीवन में इतनी - धरती पर ही तो स्वरग पाया //

खुशनसीब सब ना पर इतने जिनके तक़दीर में लिखा हो प्यार
दुनियादारी का असर कुछ ऐसा -रिश्तों पे होती गरज की मार //

दिल का दर्द न कह सकते हैं खुल कर न भी यह कभी रो सकते हैं
गीले काठ की तरह सुलगते - अंदर ही अंदर यह घुटते रहते है //

आओ बाँट लें इनमें खुशियाँ - सांझा ज़रा कर लें इनके सब गम
खरी बात कहता हूँ सुन लो - यह नेकी तो नहीं है कुछ कम //

ईश्वर की संतान हैं हम सब - बँधे हुए हैं सब अनदेखे बंधन से
सब को गले लगा लो प्यार से - सबसे जुड़ जाओ सच्चे मन से //