Friday, December 20, 2013



एक उद्गार उन बहरे लोगों के लिए जो कहते हैं की धर्म को राजनीति से नहीं जोड़ना चाहिए.. उदयन सुपकर दादा 

कर्म से धर्म को जोड़ के देख लो - कितना नर्म होगा जीवन 
धर्म हीन कर्म शर्म का कारण -आस का न हो जिसमें किरण //

शासक जब बन जाए अधर्मी - प्रजा जनों का होता शोषण
गूंगा बेहरा राज करे जब - निश्चित न्याय का होगा हनन //

कोई उड़ाए छप्पन भोग - तो कोई खाए अनुदान का अन्न
कोई मरे यहाँ कर के बोझ से -कोई खन पीता राक्षस बन//

चोर मंडली को मस्ती सारी - क़िस्मत पे यहाँ रोए सज्जन 

आवाज़ जिसने यहाँ उठाई -उसे मुफ़्त में मिले रे कफ़न //

इनको अब तू पहचान ले भाई - अब तो होगा इनका पतन

 दिल में नेकी जगा ज़रा तू -देश बदल डाल कहता 'कुन्दन'//

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