Friday, December 20, 2013

मित्रों- सोने जा रहा था - अचानक मन में कुछ विचार उभरे- सोचा क्या पता कल सुबह गायब न हो जाएँ तो फिर से लौट आया पोस्ट डालने - हम जिन्हे अपना और अपना परिवार मानते हैं उन्हे पैदा होते समय हम जानते हैं क्या - नहीं न - तो फिर यह पराया और अपना क्या चीज़ है- उसी पर कुछ लिखा है - देखिए पसंद आता है क्या आपको ..

पैदा हुआ था मैं जब जाग में -अजनबी था यह सारा जहाँ
वक़्त बीता तो पता चला मुझे कौन पिता हैं और कौन है माँ //

जिन संग खेल गुजरा था बचपन भाई बहन सब थे वह मेरे
उसीको कुनवा मान लिया - संग बीते जिनके दिन रात मेरे //

प्यार दुलार और स्नेह प्रेम भई सब कुछ तो भरपूर ही पाया
खुशी मिली जीवन में इतनी - धरती पर ही तो स्वरग पाया //

खुशनसीब सब ना पर इतने जिनके तक़दीर में लिखा हो प्यार
दुनियादारी का असर कुछ ऐसा -रिश्तों पे होती गरज की मार //

दिल का दर्द न कह सकते हैं खुल कर न भी यह कभी रो सकते हैं
गीले काठ की तरह सुलगते - अंदर ही अंदर यह घुटते रहते है //

आओ बाँट लें इनमें खुशियाँ - सांझा ज़रा कर लें इनके सब गम
खरी बात कहता हूँ सुन लो - यह नेकी तो नहीं है कुछ कम //

ईश्वर की संतान हैं हम सब - बँधे हुए हैं सब अनदेखे बंधन से
सब को गले लगा लो प्यार से - सबसे जुड़ जाओ सच्चे मन से //

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