Monday, January 16, 2012

परिवार में एक अति परम मित्र है श्री सतीश मुद्गल जी./ कल उन्होंने एक फरमाइश रख दी मेरे सामने / अब परिवार में एक दूसरे का ख्याल रखना, उनके मनोभाव का आदर करना तो हमारा कर्तव्य है ही/ उन्ही मित्र मुद्गल जी के नाम समर्पित है आज की मेरी रचना, जो मेरी पुरानी रचनाओं से हट कर है अर्थात पेरोडी नहीं है /

सहनशीलता से न परहेज , पर कायरता हमें मंजूर नहीं 
चाटुकारिता के एवज में , भण्डार कुवेर का भी मंजूर नहीं -------
स्वाभिमान है पूंजी हमारी, स्वाभिमान ही जीवन है 
स्वाभिमान को बेच मिले जो, सम्पदा वह नगण्य है
अपने भगवन् ऊपर रहते, धरती का खुदा हमें मंजूर नहीं,-----
न्याय धर्म ही सत्य धर्म है और न पथ कोई है दूजा
जीवन आदर्श तज कर कहो करें क्यों धन की पूजा
मेहनत की रोटी भाती है हमें , कोई भीख हमें मंजूर नहीं ,-----
माता , माटी अपनी भाषा प्राणों से भी हमें अधिक है
मोहताज हो जो ग़ैरों का, वह जो जीवन तो भीख है
देश पे न्योछावर कर देंगे शीश, मुकुट हमें मंजूर नहीं ------

No comments:

Post a Comment