Monday, January 16, 2012

समाज के विभिन्न प्रसंगों पर लिखना कवि का धर्म है , हो सकता है कुछ लोग उन रचनाओं को पसंद करें तो कुछ को वह कडवी लगे/ पिछले २० / ३० सालों में शहर हो या गाँव हर जगह सौंदर्य प्रसाधन का बोलबाला बहुत जोरशोर से होने लगा है / लोग आत्मा, मन, विचार को सुन्दर और आकर्षक करने की जगह चेहरे सँवारने में अधिक समय, ध्यान और धन देने लगे है / युवा पीढी में तो सौंदर्य का भारतीय स्वरू कहीं खो गया है / लम्बे केश, घनी भौवें, दही हल्दी बेसन का उबटन यह सब अजायब घर की सामग्री बन गयी हैं / एक प्रेम दीवाना की टिप्पणी सुन कर ट्रेन में यात्रा के दौरान मुझ में यह कविता लिखने का विचार आया / अगर किसीको पसंद आया तो ठीक है / और अगर किसीको अगर यह दकियानूसी ख्याल लगे तो कृपया बहस न कर इसे नज़रंदाज़ कर देने की कृपा करें तो अत्यन्य प्रसन्नता होगी मुझे /

रेशमी जुल्फें हसीनों के, अब तो मेरे यार ख्व्वाब सब हो गए
ब्यूटी पार्लर के ज़ुल्म से सारे आशिक देखो तो तबाह हो गए //
पान-चूना और कत्थे के असर से लाल उनके लब हुआ करते थे
नकली लिपस्टिक के फेर में होंठ उनके कैसे बदरंग अब हो गए //
हल्दी बेसन के उबटन से जिस चेहरे पर चमक ग़जब की थी
ब्लीचिंग कर कर चेहरे को देखो चुड़ैल जैसी कैसे वह बन गए //
चूल्हा चौके में हो मशरूफ, तंदरुस्ती उनकी कभी कायम थी
जिम,एरोबिक के चक्कर यह माशूक अब पहलवान बन गए //
शायरों को फ़िक्र होने लगी , अब हुस्न में रही न वह कशिश
मौजू खोजते खोजते आज कल शायर परेशान सब हो गए //
आशिकी अब भूल जा बन्दे, चल रब का जा तू तलाश कर
हुस्न के फेर में लाखों"कुंदन" इस ज़माने में दीवाने हो गए //

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