आज समाज में सबसे बड़ी खराबी यह है कि लोग हँसना- हंसाना भुला बैठे हैं /
जिसे देखो तनाव का शिकार है और मरने से पहले हज़ार बार मर रहा है पल पल /
उसी सन्दर्भ में एक कविता प्रस्तुत है / शीर्षक है हंसो न यार
चेहरे पर क्यों बजे हैं बारह - हँस लो हँसना ज़रूरी है
जो चाहो जीवनका मज़ा तो - हँस लो हँसना ज़रूरी है---
आती रहती मुश्किलें - जीवन की इस राह पर तो
आसां हो हर एक मुश्किल - हँस लो हँसना ज़रूरी है---
रखने को सेहत ठीक अपनी- दवा पे दौलत उड़ाते हो
तंदरुस्ती जो पाना चाहो - हँस लो हँसना ज़रूरी है---
खुशी पे आंसू हैं बहते - यह भी तो हमने है देखा
दिल में गर ग़म हो भी तो - हँस लो हँसना ज़रूरी है---
देखा है बहुतों को जो - औरों पे अक्सर हँसते हैं
इंसान जो कहलाना हो तो - खुद पे हँसना ज़रूरी है --
जब भी हँसो हँसना यारों, खोल के दिल यह याद रखो
कभी न हँसना ऐसे "कुंदन", मानो कोई मजबूरी है ----
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