बात आज से ४० वर्ष पहले की है, जब मैं बैंक सेवा में प्रविष्ट हुआ था / बैंकों का राष्ट्रियकरण हुए मात्र ३ वर्ष हुए थे /अपने मन में बड़ा जोश था और उत्साह था कि चलो हम भी भारत की तस्वीर को बदल के रख देंगे / गरीब अब गरीब न रहेंगे / पर मुझे तब पता ही नहीं था कि कागज़ का फूल दूर से तो बड़े आकर्षक लगते हैं लेकिन उसमें खुशबू नहीं होती, भौंरे उस पर नहीं मंडराते / बैंकों का राष्ट्रीयकरण भी एक चुनावी धमाका था और आज हम देख रहे हैं कि सारे सरकारी बैंकों की स्थिति क्या है / हर सरकार अपने वोट बैंक के लिए बैंकों का भरपूर इस्तेमाल किया और इसमें बैंक के साहब लोग और यूनियन वाले भी हाथ बटाते रहे / इसी प्रसंग को ले कर यह कविता प्रस्तुत है, पढ़िए
कविता का शीर्षक है बैंक ऋण
आओ आओ यार मेरे बाँट रहे हम यहाँ रुपय्या/
ले जाओ और मौज करो नाचो ता ता ता थैय्या //
जिन शर्तों पर चाहें आप, हम से आ कर ले जाएँ /
फ़िक्र कोई न होगी हमको चाहे आप न लौटाएं //
कहने को तो है जनतंत्र, देशपे अपना लेकिन राज/
जो चाहें करलेंगे हम, दबा सकते सबकी आवाज़ //
भूखे नंगे जितने देश में उनके ही हम तो हैं नेता /
मारें जीयें बाकी सारे , इसकी क्यों हम करें चिंता //
बैंक का सारा जमा धन, बाप का माल तो है अपना/
उसी माल को न्योछावर कर दिखलाते हम हैं सपना//
ऋण मेला और क़र्ज़ माफी, करिश्मा हमने है किया /
अपने नाम चमकाने को लुटिया बैंक का डुबो दिया //
बैंकवाले भी सब है उल्लू, गुण हमारे हैं सब गाते /
इनकी पीठ पे हो सवार राजा देश के हम कहलाते //
कविता का शीर्षक है बैंक ऋण
आओ आओ यार मेरे बाँट रहे हम यहाँ रुपय्या/
ले जाओ और मौज करो नाचो ता ता ता थैय्या //
जिन शर्तों पर चाहें आप, हम से आ कर ले जाएँ /
फ़िक्र कोई न होगी हमको चाहे आप न लौटाएं //
कहने को तो है जनतंत्र, देशपे अपना लेकिन राज/
जो चाहें करलेंगे हम, दबा सकते सबकी आवाज़ //
भूखे नंगे जितने देश में उनके ही हम तो हैं नेता /
मारें जीयें बाकी सारे , इसकी क्यों हम करें चिंता //
बैंक का सारा जमा धन, बाप का माल तो है अपना/
उसी माल को न्योछावर कर दिखलाते हम हैं सपना//
ऋण मेला और क़र्ज़ माफी, करिश्मा हमने है किया /
अपने नाम चमकाने को लुटिया बैंक का डुबो दिया //
बैंकवाले भी सब है उल्लू, गुण हमारे हैं सब गाते /
इनकी पीठ पे हो सवार राजा देश के हम कहलाते //
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