Sunday, January 8, 2012

समाज में हर स्तर का व्यक्ति आज कल पैसा को ही सब कुछ मानने लगा है /
जिसके पास सौ हो वह हज़ार चाहता है , हज़ारवाले की तमन्ना लाख पाने की , 
लाखवाला करोड़ों का अरमान दिल में पालने लगता है / पर अब भी बहुत लोग 
यह जानने में असमर्थ हैं कि पैसा है तो "बहुत कुछ" पर "सब कुछ" नहीं है /
कुछ इसी बात पर एक कविता प्रस्तुत है शीर्षक है "पैसे की कीमत"

नौकरी की चाहत लिए दिल में
ट्रेन में सफ़र करता हुआ बेरोजगार बेटा
दुर्घटना में जब मारा गया //
बूढ़े लाचार मान- बाप को दिलाशा देने
सारा मोहल्ला उमड़ आया //
छाती अपनी पीट पीट कर रो रहे थे माता - पिता
किसके सहारे रहेंगे जिंदा, ऐ भगवन अब तू ही बता //
कितने अरमान थे इस दिल में, बेटे को पढाया था जब
कौन हमें सहारा देगा, अब इस बुढापे में ओ मेरे रब //
यही तो थी भगवान की मर्जी सब यही समझाते रहे
मातमपूर्सी का काम ख़तम कर एक एक खिसकते रहे //
कोने में एक आदमी बैठा, जब आया उन दोनों के पास
कहा रोना किस बात का, कहे को हो इतने उदास //
कर लेता क्या बेटा तुम्हारा, जिन्दा वह रहता भी अगर
दिला गया है कुछ धन तुमको, चाहे वह गया हो मर //
धक्के खा खा के दफ्तरों में वैसे ही तो जाता वह मर
मर कर कुछ तो दिलवा गया, छोडो अब अफ़सोस न कर //

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