एक कविता प्रस्तुत है "ट्रेन की औकात "
एक बहुत ही पुरानी उक्ति
अक्ल बड़ी या भैंस के तर्ज़ पर
किशोर पुत्रने अपने पिता से पूछा
कहिये देश बड़ा है या ट्रेन
उत्तर सुझा न जब पिता को, बेटे ने कहा
देखा ही होगा आपने आन्दोलन होने पर कहीं
जब ट्रेन को रोक देती है जनता की भीड़
पुलिस आती है तुरंत और ले जाती हैं उन्हें पकड़
पर सदन में गला फाड़ कर, आसमान सर पे उठा कर
जब जब नेता रोक देते हैं सदन के सारे काम
असर जिसका पड़ता है इस देश की प्रगति पर
कोई भी तो उन्हें कुछ कहता ही नहीं
अंधे धृतराष्ट्र ,विवश भीष्म और अनुगत विदुर की तरह
सब चुप चाप बैठ तमाशा ही तो देखते हैं
यही साबित करता है कि इतने बड़े देश से भी
लोहे के बने ट्रेन को बड़ा हम सब मानते हैं
एक बहुत ही पुरानी उक्ति
अक्ल बड़ी या भैंस के तर्ज़ पर
किशोर पुत्रने अपने पिता से पूछा
कहिये देश बड़ा है या ट्रेन
उत्तर सुझा न जब पिता को, बेटे ने कहा
देखा ही होगा आपने आन्दोलन होने पर कहीं
जब ट्रेन को रोक देती है जनता की भीड़
पुलिस आती है तुरंत और ले जाती हैं उन्हें पकड़
पर सदन में गला फाड़ कर, आसमान सर पे उठा कर
जब जब नेता रोक देते हैं सदन के सारे काम
असर जिसका पड़ता है इस देश की प्रगति पर
कोई भी तो उन्हें कुछ कहता ही नहीं
अंधे धृतराष्ट्र ,विवश भीष्म और अनुगत विदुर की तरह
सब चुप चाप बैठ तमाशा ही तो देखते हैं
यही साबित करता है कि इतने बड़े देश से भी
लोहे के बने ट्रेन को बड़ा हम सब मानते हैं
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