मित्रों ध्यान दीजिए - मनुष्य चाहे कोई भी हो सारी अच्छाई का श्रेय खुद लेना चाहता है और बुराई के लिए दूसरों को ज़िम्मेदार ठहराता है- अभी हाल की बात देखिए सरकारी दल ने अपनी पीठ थपथपाते हुए कहा हुँने "खाद्य सुरक्षा बिल" पारित करवाया- पर बाज़ार से आलू और प्याज गायब होने की ज़िम्मेदारी उसकी नहीं है- आइए कुछ और ऐसे दावों पर नज़र डालें इस कविता में शीर्षक है "हाथी के दाँत"
"स्वाधीनता" दिलवाई हमने - सबके "स्व" को अपने "अधीन" किया
"आज़ादी" ले आए हम पर - सबके "आना" "जाना" हमने बंद कर दिया //
'नेता" की जमात ऐसी बना दी- कि सारा देश "नेस्तनाबूद " हो गया
"जनता" की हालत यूँ कर दी - की अब " जन्नत" ही सपना हो गया //
"क़ानून" देश के ऐसे बनाए कि हर " कान" मे है " ऊन" भरवा दिया
"अदा" की "लत" पड़ी "अदालत" को इंसाफ़ तो मज़लूम से दूर हुआ //
"धाराएँ" देश के संविधान की - देखो प्रगती की सब धारा रुक सा गया
गिने - चुनों ने खीर उड़ाई - और बहुतों ने तो कटोरा हाथों में लिया //
" संसद " में जो जो भी जा पहुँचे "संग संग" सारे सब "सड़" गये
" योजना " ऐसी चुस्त बनाई " योजन कोस" तक ना कोई आ पाए//
"विदेश नीति" बनी ऐसी लचीली- हर कोई हमको ही झुकाने लगा
धूल जिसे हम चटा सकें भाई - वही हमें तो आँखें अब दिखाने लगा //
"पंचशील" का कमाल तो देखो - "पाँच" "इंद्रियों को "सील" कर दिया
पीठ पे खंजर भोंक दिए "ज़हरलाल" ने जिन ठीगनों को भाई कहा//
देशप्रेम का करके रे बहाना जनता से सब सोना हथिया जो लिया
बस तभी से स्विस बैंक में खाता सब नेताओं का खुल ही गया //
एक पड़ोसी मुल्क है ऐसा , हर बार टकरा कर हम से बाज़ी हारा
मोर्चा तो हम थे जीत गये , टेबल है हमने हाय हर जंग हारा //
अपने जवानों का खून बहा कर- बांग्ला देश को था जो बनवाया
अपना कमीनापन दिखा रहा है - आज है हम पर वह भौंक रहा //
जब जब हुए हमले आतंकी - कड़े शब्दों में निंदा है ज़रूर किया
पर उन्ही को सगा मान कर हर बार तो हम ने है "बाप" कहा //
देश का भला जसने भी सोचा - दुश्मन हमने उसे हरदम जाना
देश को अगर डूबाना चाहो तो भाई " कांग्रेस" को ही तुम वोट देना //
क्रमश: -------
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