मित्रों आज सुबह सुबह एक विचार आया मन में- कार्तिक का महीना है - आज सोमवार है शिव जी का दिन है आज - क्यों न देश की बिगड़ते हालत को ले कर एक भजन उन्हिके नाम लिख डालूं- कहा जाता है जब मनुष्य से कुछ होता नहीं तब उसे अलौकिकता पर भरोसा करना पड़ता है- शायद कुछ अनोहोनी हो जाए ध्यान दीजिए
हे उमापति- महादेव शिव; नयन तीसरा तो खोलो ;
अन्याय का नग्न नर्तन सहें कहाँ तक हम बोलो,---------
शिशुओका छिन गया है शैशव - फूलों में अब रहा न सौरभ
माँ बहनों की दशा बिगड़ी- कुचली जाती है मान ओ गौरव
धर्म भूमि अब नर्क बन गया - अब तो हे शंकर डोलो
अन्याय का नग्न नर्तन सहें कहाँ तक हम बोलो,---------
नीति-आदर्श सब हो गये विस्मृत साधु हैं पग पग पर लांछित
अपकर्मों का भार प्रबल है - कार्य जो हो रहे हैं इतने सब गर्हित
विष का पी लो हे नीलकंठ- अमृत जग में तुम ही तो घोलो
अन्याय का नग्न नर्तन सहें कहाँ तक हम बोलो,---------
अहंकारी अब बने "महाजन" - चाटुकार करें उनके नाम कीर्तन
आशुतोष हे अब तुष्ट हो जाओ - प्रारंभ कर दो तांडव का नर्तन
कलंक हटा दो मेरी मातृभूमि से - पापियों का तुम जीवन ले लो
अन्याय का नग्न नर्तन सहें कहाँ तक हम बोलो,---------
अगर मेरी प्रार्थना आपको पसंद है तो इसे आप भी दोहरायें मेरे साथ
हे उमापति- महादेव शिव; नयन तीसरा तो खोलो ;
अन्याय का नग्न नर्तन सहें कहाँ तक हम बोलो,---------
शिशुओका छिन गया है शैशव - फूलों में अब रहा न सौरभ
माँ बहनों की दशा बिगड़ी- कुचली जाती है मान ओ गौरव
धर्म भूमि अब नर्क बन गया - अब तो हे शंकर डोलो
अन्याय का नग्न नर्तन सहें कहाँ तक हम बोलो,---------
नीति-आदर्श सब हो गये विस्मृत साधु हैं पग पग पर लांछित
अपकर्मों का भार प्रबल है - कार्य जो हो रहे हैं इतने सब गर्हित
विष का पी लो हे नीलकंठ- अमृत जग में तुम ही तो घोलो
अन्याय का नग्न नर्तन सहें कहाँ तक हम बोलो,---------
अहंकारी अब बने "महाजन" - चाटुकार करें उनके नाम कीर्तन
आशुतोष हे अब तुष्ट हो जाओ - प्रारंभ कर दो तांडव का नर्तन
कलंक हटा दो मेरी मातृभूमि से - पापियों का तुम जीवन ले लो
अन्याय का नग्न नर्तन सहें कहाँ तक हम बोलो,---------
अगर मेरी प्रार्थना आपको पसंद है तो इसे आप भी दोहरायें मेरे साथ
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