Monday, November 11, 2013




जागरण 

अपने चमचे साथ ले कर तू बेधड़क मेरे घर में घुस आया 
मेरे परिवार के वोट के खातिर, कदमोंपे मेरे तू बैठ गया //
ज़मींदार हूँ मैं मुझे लगा ऐसा और मेरा रय्यत है रे तू 
पता नहीं मुझे तब चला कौन सी नीयत से है आया तू //
आँख मूंद कर किया यकीन तेरी बातों की उन जालों पे
मैं मूरख अंजान रहा रे तेरी हर एक गहरी चालों से//
चिड़िया जब खेत चुग गयी - होश कहीं तब जा के आया
अपना माथा पीट के बोला- हाय मैंने यह क्या कर दिया//
दूध का जला हुआ हूँ मैं- फूँक फूँक छाछ अब पीऊंगा
दोहरी ज़ुबान के नेता को मैं तो अब अपना वोट नहीं दूँगा//

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