कुछ कड़वा सच है यह
बाई जी के कोठे और नेता की कोठी
में अब कोई फ़र्क बिल्कुल ही न रहा //
कोठे में पहले जिस्म बिकता था पर
कोठी में जिस्म ईमान दोनों बिक रहा //
हवस के अंधे लोगों के वास्ते तो
कोठे के दर सदा खुलते रहते थे //
कुर्सी के अंधे बेईमानों के तो
मिलता है अब हर दर खुला हुआ //
बाई जी कलंक कहलाती थे भाई
निगाहे नफ़रत की होती थी शिकार
पर यह सफेद पोश कर हर जुर्म
कहलाते हैं क्यों भला ख़ान तीस मार //
किसी की मजबूरी कहलाए पाप
और किसे सब अययाशी है माफ़ //
कोई कहलाए नाली का यहाँ कीड़ा
कोई पापी कहलाए पाक साफ़//
बाई जी के कोठे और नेता की कोठी
में अब कोई फ़र्क बिल्कुल ही न रहा //
कोठे में पहले जिस्म बिकता था पर
कोठी में जिस्म ईमान दोनों बिक रहा //
हवस के अंधे लोगों के वास्ते तो
कोठे के दर सदा खुलते रहते थे //
कुर्सी के अंधे बेईमानों के तो
मिलता है अब हर दर खुला हुआ //
बाई जी कलंक कहलाती थे भाई
निगाहे नफ़रत की होती थी शिकार
पर यह सफेद पोश कर हर जुर्म
कहलाते हैं क्यों भला ख़ान तीस मार //
किसी की मजबूरी कहलाए पाप
और किसे सब अययाशी है माफ़ //
कोई कहलाए नाली का यहाँ कीड़ा
कोई पापी कहलाए पाक साफ़//
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