मित्रों, संगीत के अलग अलग रूप में से क़व्वाली का एक अलग ही मज़ा है /बहुत दिनों से पेरोडी लिखता आया हों, आज अचानक क़व्वाली के रूप में एक पेरोडी लिखने का मन हुआ , तो लीजिये , प्रस्तुत है/ मूल प्रेरणा स्रोत है, एक हमेशा जवान क़व्वाली "हमें तो लूट लिया मिलके हुस्नवालों ने " / पढ़िए आनंद लीजिये और गाने के शौक़ीन हैं तो गा कर भी खुश होइए,
यह मुल्क लूट लिया पन्जे निशान वालों ने
माताने , बेटोंने, दरवार वालों ने ,---------
नीयत में खोट है और शहद इनकी बातों में
फाकें में मरते हैं हम, धन है इनके खातों में
न इनकी बात का कुछ ठीक है न वादों का
पता न जाने कोई इनके सब क़बाहत का
न जाने पैदा हुए कैसे यह इस धरती पर
ऐश करते हैं यह, जीते हैं हम तो मर मर कर,
यह मुल्क लूट लिया -----------------
वहीं वहीं पे क़यामत हो यह जिधर जाएँ
खिलते गुलशन भी पल में ही उजड़ जाएँ
जहाँ जहाँ भी उजाला था अब अँधेरा है
ज़िन्दगी हंसती थी अब मौत का तो डेरा है
कैसे तारीफ करें लफ्ज़ हमको मिलते नहीं
इनके काटे जो हो पानी वह मांगते ही नहीं
यह मुल्क लूट लिया -------------
पन्जे वालों की मोहब्बत तो बुरी होती है
जो चलो साथ इनके खाट खड़ी होती है
इनकी बातों में बनावट ही बनावट देखी
मुंह में राम इनके, बगल में छूरी देखी
है दुआ मेरी इतनी यारों "उपरवाले" से
न पड़े पाला कभी पन्जे निशान वाले से
यह मुल्क लूट लिया ------------------
चोर बटमारों के देखो यह सजी है महफ़िल
इनकी नीयत से लोग कैसे हो रहे हैं गाफिल
होश में आओ रे, आँखों को अब तो खोलो रे
इनकी बातों में फंसके, सपनों में न झूलो रे
देश तो अपना है, उसे कैसे बेचने दें इनको
आओ रे मिलके सिखाएं सबक हम इनको
मुल्क को लूट लिया---------------
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