Friday, December 30, 2011

सोना-चांदी, धन-दौलत में, क्यों रे मूरख तू डूबा /
भवसागरसे जो चाहे उबरना, आजा बुलाते बाबा //०//----
कोई और कहाँ होगा रे , विष जो पियेगा हँस हँसके 
इनके मन को जो भाता है, श्रद्धा तो भक्तों के मनके 
सँवर जाएगा जीवन तेरा, कर इन चरणों के सेवा 
भव सागर से -------------------------------------- // १//
तन पर शोहे व्याघ्र चर्म और हाथों में त्रिशूल डमरू
अभय मिले बाबासे जिसको,कहे किसीसे क्यों मैं डरूं
नाम महादेव प्रभु का मेरा, वह तो हैं देवों के देवा
भव सागर से ---------------------------------------- //२//
रहते हैं कैलाश में वह, और अघोरी हैं कहलाते
हे त्रिलोचन, खोल नयन, मेरे दुःख क्यों न हरते *
चाहे तारो या मारो तुम, मेरे रोग के तुम ही दवा
भव सागर से ---------------------------------------- //३//

* नोट- यहाँ पर मेरे दुःख का अर्थ मेरे व्यक्तिगत दुःख नहीं बल्कि देश और समाज की बिगड़ते दशा को ले कर दुःख है

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