Tuesday, December 27, 2011

कुछ समय पहले सरकार ने एक घोषणा की थी, कि जो आतंकवादी हथियार डालकर आत्मसमर्पण कर देंगे उन्हें एक मुश्त मुआवजा देने के साथ साथ हर महीने एक बंधी बंधाई राशि दी जायेगी, उनके पुनर्वास के लिए / रकम कि घोषणा सुनकर मुझे चक्कर सा आ गया / देश में वृद्ध और विधवाओं को, बेरोजगार युवाओं को और शारीरिक निशक्त व्यक्तिओं को जहाँ कुछ सौ रुपये दिए जाते हैं, वहीं आतंकियों को लाखों दे कर उनका सत्कार किया जाता है / तो मित्रों उसी सन्दर्भ में यह कविता प्रस्तुत है , पढ़िए और अपने विचार प्रस्तुत कीजिये इस पर

ईनाम बदमाशी का

पढ़ लिख कर क्या करना है , वक़्त बर्बाद ही करना है
नौकरी देश में मिले नहीं , बिजनेस के लिए पूंजी नहीं
इज्ज़त अपनी दौलत है, चमचागिरी हमसे होगी नहीं
किस काम का फिर पढना है ,वक़्त बर्बाद ही करना है ----------
बन्दूक आओ उठा ले हम, उग्रवादी हम बन जाएँ
फिर सरेंडर करके भाई, ढेरों इनाम हम पा जाएँ
खाली हाथ मिले डेढ़ लाख, बन्दूक का ढाई लाख
बंधी रकम तीनहज़ार की ,हर महीने होगी बरसात
इतनी सारे सुविधा जब, आसानी से मिल जाए
होगा वह कोई अहमक,ऐसा मौका जो गंवाए
नाम ईश्वरका जाप कर, इतना बस हमें कहना है
आतंकी हमें बनना है - पढ़ लिख कर क्या करना है ----------------

इसे कहते हैं भारत निर्माण -
वह रे उपरवाले अजब तेरे खेल
छछूंदर के सर पर चमेली का तेल

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