अनिल जी ने कल किसी मंत्री के बयान पर एक पोस्ट डाला था ,जिस में उस अज्ञानी मंत्री ने अपने अहंकार को प्रदर्शित करते हुए हिन्दू संगठनों को चुनौती दी थी , इस बात का उल्लेख किया गया था // वास्तव में यह वह नहीं उसकी निर्जीव कुर्सी बोल रही थी और ऐसे घमंदियों के लिए कुछ पंक्तियाँ पढ़िए नीचे / अनिल गुप्ता जी का विशेष ध्यान चाहूँगा
इतना ग़रूर न कर अरे ओ "अहमक ",
देखा है "पहाड़ों" को भी "गर्द" होते हुये/
जला सकती है जो हर शै को "आग" -
"आब" के मारे देखा उसे सर्द होते हुये //1
कुर्सी का करिश्मा है जग ज़ाहिर
कुर्सी पे बैठ कर न इतराना तू /
इस पर बैठके देखा है रे हमने
"हिन्जडों" को यहाँ "मर्द" होते हुये//2
रगों में खून की गर्मी है रे तेरा
तभी तो मुहं पे लगाम नहीं /
बड़े बड़े सूरमाओं को चेहरा
देखा है हमने भी "ज़र्द" होते हुये //3
आये गए न जाने कितने यहाँ
रहा यहाँ धरती पर कोई नहीं /
बड़ों बड़ों को देखा है हमने
किताबों के बस "फर्द" होते हुये //4
इतना ग़रूर न कर अरे ओ "अहमक ",
देखा है "पहाड़ों" को भी "गर्द" होते हुये/
जला सकती है जो हर शै को "आग" -
"आब" के मारे देखा उसे सर्द होते हुये //1
कुर्सी का करिश्मा है जग ज़ाहिर
कुर्सी पे बैठ कर न इतराना तू /
इस पर बैठके देखा है रे हमने
"हिन्जडों" को यहाँ "मर्द" होते हुये//2
रगों में खून की गर्मी है रे तेरा
तभी तो मुहं पे लगाम नहीं /
बड़े बड़े सूरमाओं को चेहरा
देखा है हमने भी "ज़र्द" होते हुये //3
आये गए न जाने कितने यहाँ
रहा यहाँ धरती पर कोई नहीं /
बड़ों बड़ों को देखा है हमने
किताबों के बस "फर्द" होते हुये //4
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