Thursday, December 15, 2011

खंजर बना है कानून, काटे है हमारी गर्दन
बेख़ौफ़ हो के मुजरिम, करते हैं देखो नर्तन //
रोटी को तरसे जनता, और दावत उड़ायें गुण्डे
साधू जनों को देखो रे मलते हैं जूठे वर्तन //
प्रभु नाम को बिसारा, मस्ती में खोये हैं सब
शैतानों के नाम का सब कर रहे हैं कीर्तन //
हद पार कर गयी है, इन पापियों की करतूत
इनको सबक सीखाने आ जाओ हे जनार्दन //
ग़लती की सीमा तुमने तय की थी सौ तक
शिशुपालों को हटाओं चला दो अब सुदर्शन //
घुटने लगा है दम अब. साँसे उखड रही है
मेरे देश को बचालो, माँगता है यही "कुंदन"//

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