भक्ति का रंग लिए हुए आज का दूसरा पोस्ट /
धन की चाहत है किसको - और कोई मन खोजता है
मुझको क्या करना इनका - जब तू मेरे मन में बसता है ---
अन्तर्यामी तू कहलाता - मन की बातें तू जानता है
खोलके होंठ मैं क्यों कहूं - तू घट घट में रमता है
चाहे मैं याचक न बनूँ पर - तू तो एक ही दाता है ,---------
सारे जगत का नाथ है तू - जग से मैं तो नहीं परे
हाथ हो तेरा जब सर पे - किससे यह मन क्यों डरे
भाग्य की फ़िक्र मैं क्यों करूँ, तू जब भाग्य विधाता है ------------
जो भी बदा हैं तूने प्रभु, कोई कहाँ छीन सकता है
यही सोच कर मन मेरा , बस तेरा नाम ही जपता है
मिल जाये तेरी कृपा जिसे, चाहत क्या कर सकता है --------------
धन की चाहत है किसको - और कोई मन खोजता है
मुझको क्या करना इनका - जब तू मेरे मन में बसता है ---
अन्तर्यामी तू कहलाता - मन की बातें तू जानता है
खोलके होंठ मैं क्यों कहूं - तू घट घट में रमता है
चाहे मैं याचक न बनूँ पर - तू तो एक ही दाता है ,---------
सारे जगत का नाथ है तू - जग से मैं तो नहीं परे
हाथ हो तेरा जब सर पे - किससे यह मन क्यों डरे
भाग्य की फ़िक्र मैं क्यों करूँ, तू जब भाग्य विधाता है ------------
जो भी बदा हैं तूने प्रभु, कोई कहाँ छीन सकता है
यही सोच कर मन मेरा , बस तेरा नाम ही जपता है
मिल जाये तेरी कृपा जिसे, चाहत क्या कर सकता है --------------
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