एक युग ऐसा भी था, जब फ़िल्मी गीत समाज के लिए कोई न कोई सन्देश देते थे / अब तो यह बेहूदा और सस्ता मनोरंजन का माध्यम बन गया है / एक गीत थे पुराना "दूसरों का दुखड़ा दूर करनेवाले -तेरे दुःख दूर करेंगे राम" / उसी गीत को आधार मान कर उसी धून पर एक नया गीत पढ़िए ,जो देश में बढ़ते जा रहे काले धन की समस्या पर है / मित्रों से अनुरोध है कि इसे प्रसारित करें कुछ तो अंतर पड़ेगा ही
विदेशों में काला धन रखने वाले - आएगा न यह धन तेरे काम
क्या नहीं यह धन धूल समान - आएगा न यह धन तेरे काम --------
क्या क्या चालें चली रे तूने , खुद को खुदा तू कहने लगा
क्या क्या गुल खिलाये तूने , चमन पे पतझड़ छाने लगा
दिल में झाँक के देख ज़रा तू (२) देश को कैसे किया बदनाम , विदेशों ------
धन तो है रे चंचल छाया , आज यहाँ तो कल है वहां
उसके पीछे गँवाया जीवन , इतनी समझ तुझमें है कहाँ
आये यहाँ जाने कितने ही - छोड़ गए एक दिन यह धाम, विदेशों में-------
कर उपकार तू दुखियों का रे ले ले दुआ ग़रीबों का
औरों का जो भला करता है ,बात क्या उसके नसीबों का
अच्छा कर्म जो करता जग में , जिंदा रहता है उसका ही नाम, विदेशों में ----
अपने को समझा भाग्य विधाता , तुझपे विधाता हँसने लगा
अक्ल पे तेरे पड़ा था पर्दा , तू सच कब यह समझने लगा
तू तो है एक माटी का पुतला, सब के दाता हैं एक वही "राम", विदेशों में ----
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