Tuesday, December 20, 2011


एक युग ऐसा भी था, जब फ़िल्मी गीत समाज के लिए कोई न कोई सन्देश देते थे /  अब तो यह बेहूदा और सस्ता मनोरंजन का माध्यम बन गया है / एक गीत थे पुराना "दूसरों का दुखड़ा दूर करनेवाले -तेरे दुःख  दूर करेंगे राम" / उसी गीत को आधार मान कर उसी धून पर एक नया गीत पढ़िए ,जो देश में बढ़ते जा रहे काले  धन की समस्या पर है / मित्रों से अनुरोध है कि इसे प्रसारित करें कुछ तो अंतर पड़ेगा  ही 

विदेशों में काला धन रखने वाले -  आएगा न यह धन तेरे काम
क्या नहीं यह धन धूल समान  -    आएगा न यह धन तेरे काम --------
क्या क्या चालें चली रे तूने  , खुद को खुदा तू कहने लगा 
क्या क्या गुल खिलाये तूने , चमन पे पतझड़  छाने लगा 
दिल में झाँक के देख ज़रा तू (२) देश को कैसे किया बदनाम , विदेशों ------
धन तो है रे चंचल छाया , आज यहाँ तो कल है वहां 
उसके पीछे  गँवाया जीवन , इतनी समझ तुझमें है कहाँ 
आये यहाँ जाने कितने ही  - छोड़ गए एक दिन यह धाम, विदेशों में-------
कर उपकार तू दुखियों का  रे  ले ले दुआ ग़रीबों  का 
औरों का जो भला करता है ,बात क्या उसके नसीबों का 
अच्छा कर्म जो करता जग में , जिंदा रहता है उसका ही नाम, विदेशों में ----
अपने को समझा भाग्य विधाता , तुझपे विधाता हँसने लगा 
अक्ल पे तेरे पड़ा था पर्दा , तू सच कब यह समझने लगा 
तू तो है एक माटी का पुतला, सब के दाता हैं  एक  वही "राम", विदेशों में ----

No comments:

Post a Comment