Tuesday, December 20, 2011

आज की दूसरी पेरोडी - एक सदाबहार गीत "चाँद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था" पर आधारित 

साधू सा हो देशका नेता ऐसा ही तो सोचा था 
पर यह वैसा नहीं है भाई जैसा मैंने सोचा था ,-------
दिखता है यह तो सीधा बड़ा 
पर चाल चले हमेशा टेढ़ी
मेरे प्यारे इस देश की तो
इसने बखिया सदा उधेडी
खोट होगी इतनी नीयत में, यह न मैंने सोचा था
हाँ यह वैसा नहीं ------------------------------
कहने को तो मुखिया देश का
लेकिन औरों का ग़ुलाम है यह
एक सब्ज़ परी जो दिख गयी
जा बन बैठा गुलफाम रे यह
रंग ऐसा वह दिखलायेगा, यह न मैंने सोचा था
हाँ यह वैसा नहीं -------------------------------
जनता भूखी इस देश में है
यह सैर विदेश का करता है
इसके गुर्गोंका क्या हम बोले
यह शह तो उनको देता है
पहन मुखौटा छलेगा हमको, यह न मैंने सोचा था
हाँ यह वैसा नहीं ----------------------------------

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