Friday, December 30, 2011

पैरोडी तो बहुत पढ़ लिए आपने मेरी, कुछ संजीदा बातें भी कह लूं आज ज़रा सा जायका बदलने को 

मेरे ज़ख्मों को, न छेड़ ऐ मेरे यार, कहीं फिर से यह हरे न हो जाएँ /
जिनको तू कहता है शरीफ. नकाब उन चेहरोंसे कहीं उतर न जाएँ /
एक मुद्दत से ग़म को छूपाये सीने में, दिल के टुकड़े को जोड़े हैं मैंने /
ऐसा न कर हरकत कोई , ऐसा न हो यह टुकड़े फिर से बिखर जाएँ /
जिनको बिठाया था इस दिल में, लगा नहीं सकते उनपे तोहमत /
हो जाएँ रुसवा वह , उससे बेहतर है "कुंदन" कि हम ही मर जाएँ /
मित्रों आये दिन बैंकों में डकैती की खबर तो आप पढ़ते ही होंगे / इसके अलावा बैंक कर्मियों की मिली भगत से धोखाधड़ी और ठगी के मामले भी सामने आते हैं/ रही सही कसार सरकार पूरी करती है, क़र्ज़ माफी का लाभ उन लोगों को देकर जो बैंक के लोन वापस करने का नाम ही नहीं लेते / और सरकार का यह कमीनापन जो को लाख करोड़ तक है सारी डकैती , ठगी और धोखाधड़ी के कान काटने में समर्थ है /तो इसी सन्दर्भ में आज की यह दूसरी प्रस्तुति है मेरी / पढ़िए और टिप्पणी कीजिये इस पर /

डकैती 

पढ़े लिखे बेरोजगार युवक ने बैंक पे धाबा बोल दिया 
हाथ कुछ तो लगा नहीं , मुफ्त में ही वह पकड़ा गया //
थाणे बाबुने कहा उससे , बड़ा बेवकूफ हे रे तू ऐ बेटा
काम ऐसा क्यों किया तूने, जो तुझे करना न आता //
लोन ले लेता तू किसी बैंकसे, कभी न वापस करनेको
बैंक वाले आते तेरे घर, तेरी ही खुशामद करने को //
उल्टी गंगा बहे देश में मेरे, चोरों को मिलती इज्ज़त
सच्चाई के राह जो पकडे, उसकी तो आती है शामत //
योजना ऐसी है सरकारी, क़र्ज़ माफ़ तेरा हो ही जाता
बिना डाले डकैती बैंक में, माल जेब में आ ही जाता //
फिर से लोन लो ऐ मालिक, बैंक वाले आ कर कहते
हार तुझे वह पहनाते, तेरे चरणों को रे सब धोते //

भारत निर्माण का यह एक और नमूना है, देखिये किस तरह देश बर्बाद हो रहा है नेताओं के हाथों
यह पोस्ट विशेष रूपसे मेरी बहन उषा और नैनी के लिए है / दादा का एक और रंग देखो आज / भक्ति का रंग जिसमें केवल समर्पण और विश्वास का भाव होता है 

दौड़ते आये चक्र लिए तुम , गज ने पुकारा जब तुमको 
आये नहीं पर कभी "चक्रधर" मैंने पुकारा जब तुमको ---------
हूँ मैं अभागा या हूँ कर्महीन, दर्शन जो तुम देते नहीं 
आस की डोरी फिर भी न टूटी , चाहे तुम हो सुनते नहीं
मन की साध तो होगी पूरी, इतना भरोसा है मुझको ,--------------
मन में कोई खेद नहीं प्रभु , चाहे वर तुम दो न दो
ह्रदय में तुम तो बसे हुए हो, चाहे नैन के आगे न हो
अन्तकाल मैं आना गिरधर, इतना कहना है मुझको, ------------
भक्ति का रंग लिए हुए आज का दूसरा पोस्ट /

धन की चाहत है किसको - और कोई मन खोजता है 
मुझको क्या करना इनका - जब तू मेरे मन में बसता है ---
अन्तर्यामी तू कहलाता - मन की बातें तू जानता है 
खोलके होंठ मैं क्यों कहूं - तू घट घट में रमता है
चाहे मैं याचक न बनूँ पर - तू तो एक ही दाता है ,---------
सारे जगत का नाथ है तू - जग से मैं तो नहीं परे
हाथ हो तेरा जब सर पे - किससे यह मन क्यों डरे
भाग्य की फ़िक्र मैं क्यों करूँ, तू जब भाग्य विधाता है ------------
जो भी बदा हैं तूने प्रभु, कोई कहाँ छीन सकता है
यही सोच कर मन मेरा , बस तेरा नाम ही जपता है
मिल जाये तेरी कृपा जिसे, चाहत क्या कर सकता है --------------
Aaj ka post kuchh hat kar hai, group ke hit men jis par sabhee ka dhyaan chahoonga

हर इंसान में एक बड़ी कमजोरी रहती है कि वह अपनी बात , अपने काम को ही सही साबित करने की कोशिश में इतना अधिक व्यस्त रहता है कि वह किसी और बात पर ध्यान देने के लिए फुर्सत ही नहीं पता / और वह इस तरह बहुत ऐसे मौके खो देता है जो उसके ज्ञान, समझ और व्यक्तित्व के विकास में काम आ सकते थे / इस कमजोरी की मात्र किसी में १ % हो सकती है तो किसी में १०% और किसी में ९०% / जिस दिन किसीको यह बात समझ में आ जाती है उस दिन उसके जीवन में एक नया मोड़ आता है / इसी पर एक लघु कथा सुनिए /
एक कार्यालय में किसीने एक पत्र का प्रारूप भेजा कार्यालय प्रमुख के पास / प्रमुख ने उसमें कुछ शब्दों के फेर बदल कर उसे वापस भेज दिया सम्बद्ध कार्मिक के पास टंकण के लिए / कार्मिक को बड़ा बुरा लगा , और उसने बडबडाना शुरू किया प्रमुख की नासमझी पर / किसीने जा कर कान भर दिए कार्यालय प्रमुख के / कुछ देर बाद चपरासी ने आ कर उस कार्मिक से कहा आपको साहब बुला रहे हैं , साथ में वह पत्र भी लेते जाइए /साहब ने पूछा सुना है आप पत्र के प्रारूप में मैंने जो संशोधन किये उसे ले कर असंतुष्ट हैं/ बेचारा कोई जवाब दे नहीं पाया /साहबने कहा अच्छा ज़रा गिनके बताइए पूरे पत्र में कुल कितने शब्द हैं / इसने कहा जी २८८ / साहब ने पूछा फिर से, मैंने कितने शब्द बदले हैं वह भी गिन कर बताइए ? / इसने कहा जी ३६ / साहब ने कहा तो सोचिये मैंने पत्र का आठवां हिस्सा अर्थात १२.५% शब्द ही बदले हैं, जिन्हें मैंने ठीक नहीं समझा / परन्तु मैंने ८७.५% उन शब्दों को स्वीकार भी किया जो आपने लिखे और जो मुझे अच्छे लगे / मैं अगर ८७.५% आपकी बातों को पसंद कर सकता हूँ तो क्या आप का ह्रदय इतना उदार नहीं है कि आप मेरे १२.५% प्रतिशत बात को प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार करें ?कहना अनावश्यक है कि दोनों के मन में कोई खटास नहीं रही इस वार्तालाप के बाद /
निष्कर्ष यह है कि हम अगर इस तरह के विचार को अपने मन में स्थान दें तो क्या मित्रों से टकराव नहीं टाल सकते, अपने संपर्क को बेहतर नहीं बना सकते ?
भजन लिखा नहीं जाता, अपने आप कागज़ पर लिख लेता है लिखनेवाला जब "वह" उससे लिखवाना चाहे. / मेरी बहन उषा के अनुरोध पर आज मातारानी का यह भजन प्रस्तुत किया जा रहा है आप सभी के लिए / आशा है आप इसे पसंद करेंगे और इस पर अपनी टिप्पणी दे कर मुझे अनुग्रहित करने की कृपा करेंगे 

सारे दुखों का अंत हो जाए , लहरें खुशी की मन को भिगोये 
अनहोनी यह करके दिखाए कौन--- बोलो बोलो कौन 
वह माता रानी है-- मेरी माता रानी है -- जय माता दी -----------
सुख है चंचल हिरनी सरीखा, उसके पीछे भागे जो
पग में छाले पड़ जाते और मन का चैन गंवाए वह
पथ की सब बाधा हट जाए , ह्रदय कमल भी खिल खिल जाए
अनहोनी यह करके दिखाए कौन--- बोलो बोलो कौन
वह माता रानी है-- मेरी माता रानी है -- जय माता दी -----------
जिसने माता को है पहचाना, सारे जग को उसने जाना
धुप-छाँव और सुख-दुःख का, फर्क कोई न उसने माना
माता चरण में सर जो झुकाए, संकट आये तो टल जाए
अनहोनी यह करके दिखाए कौन--- बोलो बोलो कौन
वह माता रानी है-- मेरी माता रानी है -- जय माता दी -----------

एक लेखक के रूप में लिखते हुए मैंने हमेशा इस बात को महसूस किया है कि भजन लिखने में जो शांति मिलती है मन को वह कुछ और लिखने में कभी नहीं मिलती / तो मित्रों आप सभी के लिए एक भजन प्रस्तुत है / अगर आप को पसंद आया तो मैं अपने आपको धन्य मानूंगा

भोले बाबा जपता रहूँ मैं नाम तेरा निश- दिन
मनमंदिर में शिव विराजें हर पल और हर छीन --------
तपती रेट है जीवन का पथ
जग झूठा है तू ही एक सच
तडपूं ऐसे तेरे दरश को, जैसे जल बिन मीन , मन मंदिर ------
मोह माया में मन नहीं रमता
तेरी खोज में मन है भटकता
कब लेगा तू अपनी शरणमें, जाए दिन गिन गिन, मन मंदिर ----
पुन्य कोई मैंने नहीं कमाया ,
बस तेरा ही गीत मैं गाया
नाम तो आशुतोष है तेरा, तोष होगा किस दिन, मन मंदिर में ---
सोना-चांदी, धन-दौलत में, क्यों रे मूरख तू डूबा /
भवसागरसे जो चाहे उबरना, आजा बुलाते बाबा //०//----
कोई और कहाँ होगा रे , विष जो पियेगा हँस हँसके 
इनके मन को जो भाता है, श्रद्धा तो भक्तों के मनके 
सँवर जाएगा जीवन तेरा, कर इन चरणों के सेवा 
भव सागर से -------------------------------------- // १//
तन पर शोहे व्याघ्र चर्म और हाथों में त्रिशूल डमरू
अभय मिले बाबासे जिसको,कहे किसीसे क्यों मैं डरूं
नाम महादेव प्रभु का मेरा, वह तो हैं देवों के देवा
भव सागर से ---------------------------------------- //२//
रहते हैं कैलाश में वह, और अघोरी हैं कहलाते
हे त्रिलोचन, खोल नयन, मेरे दुःख क्यों न हरते *
चाहे तारो या मारो तुम, मेरे रोग के तुम ही दवा
भव सागर से ---------------------------------------- //३//

* नोट- यहाँ पर मेरे दुःख का अर्थ मेरे व्यक्तिगत दुःख नहीं बल्कि देश और समाज की बिगड़ते दशा को ले कर दुःख है
Ab to Bhagwaan hee bachaye is desh ko, to bhaiyon prastut hai ek SHIV BHAJAN

बाबा के नाम पर एक और भजन प्रस्तुत कर रहा हूँ / आप की टिप्पणी की प्रतीक्षा रहेगी /

शिव का भजन तू कर ले रे मनवा, शिव का भजन तू कर ले 
मानव जीवन ऐसे न गँवा तू, नाम सुमिरण कर ले रे ,-----
तनोए भभूत और सर पे जटायें, रूप यह कितना मनोहर है
धारा गंगा जी की निकले सरे से, गले पर साजे विषधर है
इनकी प्यारी और मनोरम छबि तू मन में बसा ले रे , शिव का भजन तू कर ले --
शैल शिखर पर प्रभु विराजे , घर की चिंता न है उनको
धन दौलत के पीछे तू फिर, क्यों भटकाए इस मन को
जोड़ा जो भी तुने यहाँ पर, संग न जाएगा जान ले रे , शिव का भजन तू कर ले रे --
महादेव भी कहलाते हैं शिव, मेरे शंकर हैं भोले
चाहे जो कृपा इनकी, मनको तू निर्मल कर ले
आशुतोष मेरे उमापति हैं, इनके शरण तू अब हो ले रे , शिव का भजन तू कर ले रे --
सुबह सुबह, यदि माता रानी का स्मरण कर लिया जाए तो कैसा रहे मित्रों ? / आनंद लीजिये एक वंदना का , आज का पहला पोस्ट 

हे शैलपुत्री माता, हे शैलपुत्री माता 
सारा जग तो निशदिन मैय्या तेरी महिमा गाता 
हे शैलपुत्री माता, हे शैलपुत्री माता 
खोल के मुख क्यों कहूं मैं, मन की बातें तुझे पता
हे शैलपुत्री माता, हे शैलपुत्री माता -------------------
तूने जनम दिया मानव का और भेजा इस धाम में
लौट के जाऊंगा एक दिन तो, पूरा कर सब काम मैं
सीधी डगर पे चलता रहूँ मैं, राह तू मुझको दे बता
हे शैलपुत्री माता, हे शैलपुत्री माता ------------------
दुःख हरूँ मैं पीड़ित जनों का, दे दूं हँसी हर होंठ पर
उसको दुआएं दे मन मेरा, खाऊँ किसीसे चोट अगर
भूल से भी न सोचूँ मैं यह, दूं मैं किसीको कभी सता
हे शैलपुत्री माता, हे शैलपुत्री माता --------------
करुणा तुम बरसाती रहना , माता विनती है इतनी
काँटा कभी न लगे किसीको, बिखरा दो कलियाँ इतनी
सारे जग में शांति फैले,खुश हों सब भगिनी - भ्राता
हे शैलपुत्री माता, हे शैलपुत्री माता ---------------------

Tuesday, December 27, 2011

कुछ समय पहले सरकार ने एक घोषणा की थी, कि जो आतंकवादी हथियार डालकर आत्मसमर्पण कर देंगे उन्हें एक मुश्त मुआवजा देने के साथ साथ हर महीने एक बंधी बंधाई राशि दी जायेगी, उनके पुनर्वास के लिए / रकम कि घोषणा सुनकर मुझे चक्कर सा आ गया / देश में वृद्ध और विधवाओं को, बेरोजगार युवाओं को और शारीरिक निशक्त व्यक्तिओं को जहाँ कुछ सौ रुपये दिए जाते हैं, वहीं आतंकियों को लाखों दे कर उनका सत्कार किया जाता है / तो मित्रों उसी सन्दर्भ में यह कविता प्रस्तुत है , पढ़िए और अपने विचार प्रस्तुत कीजिये इस पर

ईनाम बदमाशी का

पढ़ लिख कर क्या करना है , वक़्त बर्बाद ही करना है
नौकरी देश में मिले नहीं , बिजनेस के लिए पूंजी नहीं
इज्ज़त अपनी दौलत है, चमचागिरी हमसे होगी नहीं
किस काम का फिर पढना है ,वक़्त बर्बाद ही करना है ----------
बन्दूक आओ उठा ले हम, उग्रवादी हम बन जाएँ
फिर सरेंडर करके भाई, ढेरों इनाम हम पा जाएँ
खाली हाथ मिले डेढ़ लाख, बन्दूक का ढाई लाख
बंधी रकम तीनहज़ार की ,हर महीने होगी बरसात
इतनी सारे सुविधा जब, आसानी से मिल जाए
होगा वह कोई अहमक,ऐसा मौका जो गंवाए
नाम ईश्वरका जाप कर, इतना बस हमें कहना है
आतंकी हमें बनना है - पढ़ लिख कर क्या करना है ----------------

इसे कहते हैं भारत निर्माण -
वह रे उपरवाले अजब तेरे खेल
छछूंदर के सर पर चमेली का तेल
पैरोडी तो बहुत पढ़ लिए आपने मेरी, कुछ संजीदा बातें भी कह लूं आज ज़रा सा जायका बदलने को 

मेरे ज़ख्मों को, न छेड़ ऐ मेरे यार, कहीं फिर से यह हरे न हो जाएँ /
जिनको तू कहता है शरीफ. नकाब उन चेहरोंसे कहीं उतर न जाएँ /
एक मुद्दत से ग़म को छूपाये सीने में, दिल के टुकड़े को जोड़े हैं मैंने /
ऐसा न कर हरकत कोई , ऐसा न हो यह टुकड़े फिर से बिखर जाएँ /
जिनको बिठाया था इस दिल में, लगा नहीं सकते उनपे तोहमत /
हो जाएँ रुसवा वह , उससे बेहतर है "कुंदन" कि हम ही मर जाएँ /
मित्रों आये दिन बैंकों में डकैती की खबर तो आप पढ़ते ही होंगे / इसके अलावा बैंक कर्मियों की मिली भगत से धोखाधड़ी और ठगी के मामले भी सामने आते हैं/ रही सही कसार सरकार पूरी करती है, क़र्ज़ माफी का लाभ उन लोगों को देकर जो बैंक के लोन वापस करने का नाम ही नहीं लेते / और सरकार का यह कमीनापन जो को लाख करोड़ तक है सारी डकैती , ठगी और धोखाधड़ी के कान काटने में समर्थ है /तो इसी सन्दर्भ में आज की यह दूसरी प्रस्तुति है मेरी / पढ़िए और टिप्पणी कीजिये इस पर /

डकैती 

पढ़े लिखे बेरोजगार युवक ने बैंक पे धाबा बोल दिया 
हाथ कुछ तो लगा नहीं , मुफ्त में ही वह पकड़ा गया //
थाणे बाबुने कहा उससे , बड़ा बेवकूफ हे रे तू ऐ बेटा
काम ऐसा क्यों किया तूने, जो तुझे करना न आता //
लोन ले लेता तू किसी बैंकसे, कभी न वापस करनेको
बैंक वाले आते तेरे घर, तेरी ही खुशामद करने को //
उल्टी गंगा बहे देश में मेरे, चोरों को मिलती इज्ज़त
सच्चाई के राह जो पकडे, उसकी तो आती है शामत //
योजना ऐसी है सरकारी, क़र्ज़ माफ़ तेरा हो ही जाता
बिना डाले डकैती बैंक में, माल जेब में आ ही जाता //
फिर से लोन लो ऐ मालिक, बैंक वाले आ कर कहते
हार तुझे वह पहनाते, तेरे चरणों को रे सब धोते //

भारत निर्माण का यह एक और नमूना है, देखिये किस तरह देश बर्बाद हो रहा है नेताओं के हाथों
भक्ति का रंग लिए हुए आज का दूसरा पोस्ट /

धन की चाहत है किसको - और कोई मन खोजता है 
मुझको क्या करना इनका - जब तू मेरे मन में बसता है ---
अन्तर्यामी तू कहलाता - मन की बातें तू जानता है 
खोलके होंठ मैं क्यों कहूं - तू घट घट में रमता है
चाहे मैं याचक न बनूँ पर - तू तो एक ही दाता है ,---------
सारे जगत का नाथ है तू - जग से मैं तो नहीं परे
हाथ हो तेरा जब सर पे - किससे यह मन क्यों डरे
भाग्य की फ़िक्र मैं क्यों करूँ, तू जब भाग्य विधाता है ------------
जो भी बदा हैं तूने प्रभु, कोई कहाँ छीन सकता है
यही सोच कर मन मेरा , बस तेरा नाम ही जपता है
मिल जाये तेरी कृपा जिसे, चाहत क्या कर सकता है --------------
यह पोस्ट विशेष रूपसे मेरी बहन उषा और नैनी के लिए है / दादा का एक और रंग देखो आज / भक्ति का रंग जिसमें केवल समर्पण और विश्वास का भाव होता है 

दौड़ते आये चक्र लिए तुम , गज ने पुकारा जब तुमको 
आये नहीं पर कभी "चक्रधर" मैंने पुकारा जब तुमको ---------
हूँ मैं अभागा या हूँ कर्महीन, दर्शन जो तुम देते नहीं 
आस की डोरी फिर भी न टूटी , चाहे तुम हो सुनते नहीं
मन की साध तो होगी पूरी, इतना भरोसा है मुझको ,--------------
मन में कोई खेद नहीं प्रभु , चाहे वर तुम दो न दो
ह्रदय में तुम तो बसे हुए हो, चाहे नैन के आगे न हो
अन्तकाल मैं आना गिरधर, इतना कहना है मुझको, ------------

Sunday, December 25, 2011

laghu katha

मित्रों एक लघु कथा आपको सुनाता हूँ / किसी गाँवमें एक आदमी था बड़ा ही धूर्त / पैंतरेबाजी , लडाई - झगडा हर झमेले में अव्वल / सारे गाँव के लोगों को सताता रहा / पर गाँव के लोगों में एकता न होने के कारण वह निरंकुश रूपसे मनमानी करता रहा /धीरे धीरे उसकी उम्र बढ़ती गयी ., हाथ पाँव जवाब देने लगे / वह बीमार हो कर बिस्तर से लग गया / गाँव के लोगों ने सोचा चलो अच्छा हुआ , यह मरे तो बला टल जाए/
एक दिन उसे ऐसा लगा कि उसका अंतिम समय आ गया / उसने बेटे को पास बुलाया और उसके कानों में कुछ कहा / बेटे ने पिता को सहारा दिया और गाँव के चौपाल पर ले आया / फिर पूरे गाँव को बुलाया और हाथ जोड़ कर कहा , मेरे पिताने जीवन भर आप सभी के साथ जो अत्याचार और अन्याय किया है आज उन्हें अपनी उस ग़लती पर बहुत पछतावा हो रहा है / भगवान ने उन्हें बीमारी के रूप में सजा दे दी है , पर वह अपने पापों का प्रायश्चित करना चाहते हैं / उनका कहना है आप सभी एक एक लाठी ला कर उन्हें पीटें /गांववालों को अचम्भा हुआ, एक बुजुर्ग ने कहा नहीं बेटा इसका जो हाल है न तो यह चल पा रहा है न ही यह बोल पा रहा है इसे हम कैसे पीट सकते हैं? / बेटे ने कहा पिताजी ने कहा कि जब तक आप लोग उन्हें नहीं पीटेंगे उनका प्रायश्चित होगा नहीं और मरने के बाद भी उनकी आत्मा भटकती रहेगी / आप सभी से निवेदन है मरनेवाली अंतिम इच्छा पूरी करें और उन्हें पीटें / फिर बेटे ने पिता से बिदा ले ली और वहाँ से चलता बना / किसीने उसे पूछा भी नहीं कि वह कहाँ जा रहा है /
फिर क्या था सभी ने हाथ में लाठी ली और लगे बूढ़े को पीटने, बरसों का गुस्सा जो मन में था , कुछ लोगों ने सर पर भी जमा दी लाठी / बेचारा वैसे ही तो अधमरा सा था कुछ ही देर में टें बोल गया / तभी वहाँ पर एक पुलिस की जीप आयी / थाने बाबु के साथ बुड्ढे का बेटा उतरा गाडी से और कहने लगा देखिये इन्स्पेक्टर साहब , मैं बाहर क्या गया था, गाँव वालों ने मेरे पिताको घर से उठा कर पीट पीट कर उन्हें मार डाला / पुलिस गाँव भर के सभी मर्दों को गिरफ्तार करके ले गयी और उन पर मुकद्दमा चला /
मरते मरते भी बुढा गाँव वालों को तंग करके ही गया / कुछ समझे आप .? उसी तरह एक बुड्ढी पार्टी है इस देश में , आप होशियार रहिएगा उससे / कहीं आप का हाल भे इन गांववालों जैसा न हो जाए / हो सके तो यही कथा अपने दोस्तों को भी सुनाएँ
देश के ध्वस्त राजनीतिक स्थिति पर एक कटाक्ष - पेरोडी के रूप में - मूल गीत है फिल्म "प्यासा" का "जाने वह कैसे लोग थे जिनके "/ तो पढ़िए इस गीत को 

जाने वह कैसे लोग थे जिनको सब "पॉवर " मिला 
हमने तो जब नेता चुना, धोखा हर बार मिला ,--------
देह की फिक्र हमको थी, बेचा नेताओं ने इसे 
आसमान पे उड़ता है, नंगे पैर कभी देखा जिसे
खाना बनाने का देखो किसे, कैसा "पुरस्कार" मिला
हमने तो जब नेता चुना, धोखा हर बार मिला ,--------
निकल गया -- निकल गया ----
निकल गया हर नेता यहाँ वादे करके तो कई
"हल" तो मिला न एक भी यारों, रोज़ "समस्या" नई
उस्तरा लिए करे हजामत , हमें बन्दर मिला
हमने तो जब नेता चुना, धोखा हर बार मिला ,--------
राह सूझे न अब तो कोई, आओ चलें मिल कर
खुद की हमको सोचना है रे , खाएं न अब ठोकर
सबक सिखायेंगे उसको, जो भी गद्दार मिला
हमने तो जब नेता चुना, धोखा हर बार मिला ,--------
एक मित्र हैं अपने श्री सुभाष चन्द्र, जो मुझे अपना बड़ा भाई मानते हैं / उन्हीके सुझाव पर एक और पेरोडी प्रस्तुत करता हूँ/ उन्होंने फिल्म "प्यासा" का एक और गीत "जिन्हें नाज़ है हिंद पर वह कहाँ है " पर लिखने का सुझाव दिया था / तो पढ़िए 

यह टूटी सी सड़कें , यह हरदम "पॉवर कट" 
जहाँ भी गया देखा, होती है खट-पट 
कहाँ हैं कहाँ हैं वह भाषण वाले 
जिन्हें हमने दिया था "वोट " वह कहाँ है, जहाँ है, कहाँ है, कहाँ है -----
सब्जी "सौ" की ली, फिर भी थैली भरी न
"पांच सौ" के तेल , फिर भी मीटर उठी न
महंगाई बन गयी है पूंछ "बजरंगी " की
जिन्हें हमने दिया था "वोट " वह कहाँ है, जहाँ है, कहाँ है, कहाँ है ------------
बिना घूस के तो काम बनता नहीं है
अदालत में भी न्याय मिलता नहीं है
शराफत की बातें करो उडती खिल्ली
जिन्हें हमने दिया था "वोट " वह कहाँ है, जहाँ है, कहाँ है, कहाँ है -----------
शिकायत करो तो हैं पुलिस के डंडे
आतंकी बने अब तो सरकारी पण्डे
अहिंसा के गाने यह फिर भी हैं गाते
जिन्हें हमने दिया था "वोट " वह कहाँ है, जहाँ है, कहाँ है, कहाँ है ---------
कभी "नारी" को देवी कहता था यह देश
हवा वह चली नारी का बदला हैं अब भेष
दिखावे का है सब यह बैठक, सभा सब
जिन्हें हमने दिया था "वोट " वह कहाँ है, जहाँ है, कहाँ है, कहाँ है -----------
कहाँ तक गिनाएं कमियाँ इन सब की
यह कहना ग़लत है कि मर्जी है रब की
हैं कायर हमी तो यह बन बैठे ज़ालिम
जिन्हें हमने दिया था "वोट " वह कहाँ है, जहाँ है, कहाँ है, कहाँ है ----------
आओ प्यारे भाई, करें इनको सीधा
हो इंसान तुम तो, न हो कोई गधा
कुर्सी पे बिठाया था हमने ही इनको
हटाना भी इनको बड़ा ही आसान है , आसान है, आसान है ------------
यह बात तो पक्की है के कोई बिगड़ना न चाहे तो कोई उसे बिगाड़ नहीं सकता / यह बात आज देश के बिगडती हालत के सन्दर्भ में कह रहा हूँ/ पर यह भे सच है की कभी कभी उकसाना या प्रलोभित करना भी बड़ा खतरनाक काम कर जाता है / इसी सन्दर्भ में एक छोटी सी कथा पर ध्यान दें /
एक बुजुर्ग किसी कम से किसी दूसरे गाँव जा रहे थे / पड़ोसी ने कहा हमारी बेटी का ससुराल भे उसी गाँव में है लौटते वक़्त उसे साथ ले आयें तो बड़ी कृपा होगी / बुजुर्ग ने कुछ खरीददारी की और लडकी को साथ ले घर लौटने लगे / रास्ता सुनसान था और अन्धेरा भी छाने लगा था / लडकी शैतान थी/ उसने बुजुर्ग से कहा , सुनिए जी शाम होने लगी है और मैं जवान, इतनी ख़ूबसूरत अप मेरे साथ कोई ग़लत हरकत तो नहीं करोगे न ? बुजुर्ग ने कहा अरे मैं मरघट चलने के तय्यारी में हूँ, इस उम्र में यह सब क्या करूंगा और ? उपरसे इधर देख मेरे एक हाथ में छडी और यह बकरा/ दूसरे हाथ में बाल्टी और बगल में दबाया है एक मुर्गा / इनके होते हुए मैं कर भी क्या सकता हूँ? लडकी ने कहा , अगर चाहो तो छडी को ज़मीन में गाड़ कर बकरे को उससे बाँध सकते हो और मुर्गे को ज़मीन पर रख के उसे बाल्टी से ढक सकते हो / फिर तो कोई परेशानी नहीं होगी न ?
तो मित्रों इस कथा के सन्दर्भ में ध्यान दें क्या यह लडकी किसी आधुनिक युग के नेता से कम है , जो औरों को न चाहने पर भी बदमाशी करने के लिए उकसाते रहते हैं ? अब यह आप पर है , आप प्रलोभन के शिकार होते हैं या नहीं
वह एक पढ़ा लिखा युवक था / नौकरी मिली नहीँ तो कुछ अपने पैसे और कुछ इधर उधर के उधारी के पैसे से उसने एक गाडी खरीद ली और उसे टेक्सी करके चलने लगा / दिलमें लगन और इमानदारी, मेहनत और सर्वोपरि ईश्वर में अखंड आस्था से उसके जीवन की गाडी भी ठीक ठाक चलने लगी / एक दिन किसी मुसाफिर को शहर से दूर हवाई अड्डे पर पहुंचा कर लौट रहा था तो रास्ते में २ आदमियोंने हाथ का इशारा करके गाडी रुकवाई और उसे शहर तक लिफ्ट देने का अनुरोध किया / इसने उन्हें बिठा लिया गाडी में/
वास्तव में वह दोनों बदमाश थे जो अकेले जा रहे गाडीवालों को मार कर गाडी ले भागते थे /अचानक जाने क्या हुआ , एक ने इसे पूछा एक बात बताओ, तुम ने हम पर कैसे भरोसा कर लिया और गाडी रोक दी , हम बदमाश भी तो हो सकते हैं/ इसने हँस कर कहा तो क्या , अगर आप बदमाश होंगे तो होंगे मुझे क्या ? मैंने अपना काम किया / मुझे हर मुसाफिर में भगवान दिखता है और मैंने भगवान पे भरोसा कर गाडी रोक दी थी / दूसरे ने कहा अगर हम तुमको मारकर गाडी ले भागें तो ? इसने कहा अगर यही लिखा है तो होगा ही / दूसरे ने फिर पूछा तुम्हे मरने से डर नहीं लगता ? / इसने कहा अगर डरूँ तो मौत नहीं आयेगी क्या ? जो तय है उससे डरना क्या ?
कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे दिल में बैठे डर के ही कारण हम जीवन भर कमज़ोर बने रहते हैं और एक दिन कायर की तरह मर जाते हैं / काश यह युवक हमारा आदर्श बन पाता तो समांज की तस्वीर कुछ और होती / है न ?
मित्रों आपको याद है न ऋषि कपूर की पहली फिल्म नायक के रूप में , जिसमें उसने एक गीत गाया था "मैं शायर तो नहीं ---" / अचानक मैंने सोचा अपना मन्नू मामा भी तो पहली बार नायक बना है, भले ही नकली हो / तो उसी गीत के तर्ज़ पर एक पेरोडी मामा पर भी हो जाए ... तो पढ़िए और अगर गा सकते हों तो उसको गा कर भी मज़ा दुगुना कीजिये अपना 

मैं नेता तो नहीं - मगर ऐ मैडम 
जबसे तूने वर दिया है - नेताई आ गयी है 
मैं गूंगा तो नहीं - मगर ऐ मैडम
जबसे तूने डांटा मुझको - बोलती बंद हुयी है -------
गद्दी का नाम मैंने सुना था मगर
खुश मैं होता था ख़्वाबों में वह देख कर
तेरा एहसान कैसे चुकाऊँ भला
आ गया है मज़ा अब यहाँ बैठ कर
मैं काबिल तो नहीं - मगर ऐ मैडम
जबसे तूने शरण दिया है- काबिलियत आ गयी है ---------
तेरे चरणों का हूँ दास मैं तो मैडम
तेरी सेवा में लेता रहूँ मैं जनम
तेरी मैं जबसे हूँ करने लगा
क्या है जीवन मैं यह तो समझने लगा
मैं जिंदा तो नहीं , मगर ऐ मैडम
तेरी खिदमत की बदौलत, जान मुझमें आ गयी है -----------
अपने चमड़ी की जूती बना लूं अगर
तेरी चरणों की शोभा बढाऊँ अगर
कह दिया है क़सम से तेरा दास यह
धन्य होगा यह जीवन यह सच बात है
मैं जूती तो नहीं , मगर ऐ मैडम
जबसे देखे पों तेरे, चाहतें जग गयी है --------------

* ममाने इतनी अच्छी वंदना अगर भगवन की , की होती तो शायद मोक्ष मिल जाता
मित्रों आपको याद होगा एक फिल्म आयी थी "जागते रहो" / उसमें एक बड़ा सुन्दर सा गीत था  "जागो मोहन प्यारे " / मैंने सोचा उसी तर्ज़ पर मैं भी मामा को कुछ कहूं / आखिर श्री कृष्ण ने भी तो बड़ी कोशिश की थी अपने मामा कंस को अधर्म के मार्ग से लौटाके   ले आने  के लिए / अपना काम है कर्तव्य करना आगे मामा की तकदीर उसके प्रारब्ध के अनुसार / खैर आप गीत देखिये 

जागो मोहन मामा , जागो 
कब तक यूँ ही बंधक बनोगे, जागो मामा - मोहन जागो----
खोल के आँखें देखो ज़रा सा 
तुमने बनाया खुद का तमाशा 
बात ज़रा सी है, जब समझोगे , जागो मोहन ------------
नाम जो अब तक तुमने कमाया 
उस पर तुमने है  दाग लगाया 
सर्फ़ भी न धो पाओगे , जागो मोहन ---------------
कुर्बान हुए जो इस माटी पर
मरके भी बन गए सारे अमर  
जीवन  उधार   का क्यों  जीयोगे  , जागो मोहन ----------
तेरे  ही कौम  के कितने  ही भाई  
देश  के खातिर  जान लुटाई 
सोचा नहीं था तुम इतने गिरोगे , जागो मोहन -------------
आह ग़रीब की लग जायेगी 
मैडम तेरी न काम  आयेगी 
ग़रीबों  की तुम कब सोचोगे , जागो मोहन ----------------
इंसान जन्म हुआ इंसान बन रे 
रीढ़ हड्डी में  तू दम ले आ रे 
रेंग के माटी पे क्या तुम बनोगे , जागो मोहन ---------------
भानजे ने समझाया, समझो कुछ तो 
कंस-कृष्ण कथा , याद करो तो 
कंस के जैसा अंत पाओगे , जागो मोहन ---------------

* भानजे ने समझाया, अब मामा समझता है या नहीं यह उसका नसीब , भानजा बेचारा क्या करेगा  ?

Friday, December 23, 2011

मित्रों आज की पेरोडी के लिए तैयार है न ? आज का मूल गीत कुछ हट कर है / यह गीत किशोर जी का गाया हुआ था "हम तो मोहब्बत करेगा" मतलब कुछ भी हो, पर आधारित है / बीच बीच में नायिका नूतन जी का एक एक वाक्य है जिसमें उन्होंने नायक का मजाक उड़ाया है / ठीक उसी तरह आज देश में नेता कहता है कुछ भी हो "हम तो घोटाला करेगा" और जनता भी एक एक वाक्य कहती है / ग़ौर कीजिये / नेता और जनता को उनका उनका हिस्सा दिया गया है पेरोडी में ध्यान दें इस बात पर 
नेता - 
हम तो घोटाला करेगा- जनता से नहीं डरेगा 
चाहे यह ज़माना कहे हम को कमीना ,अजी हम तो घोटाला करेगा --
नेता बने हैं कैसे , हम ही तो जानते हैं 
बेले पापड़ हैं कितने, हाथ यह जानते हैं
जनता -
तो गिनो न पापड़
नेता -
पापड़ अब नहीं गिनेगा- हरे हरे नोट चुनेगा
चाहे यह ज़माना कहे हम को कमीना ,अजी हम तो घोटाला करेगा -------
पास जो आये कोई , चढ़ता बुखार हमको
हर कोई कहता है यह कर दो उद्धार हमको
जनता -
अरे वाह रे सेवक
नेता -
सेवा अब न करेगा, मेवा ही तो खायेगा
चाहे यह ज़माना कहे हम को कमीना ,अजी हम तो घोटाला करेगा -------
जाने कल क्या हो जाए, इस पल में जी तो लें हम
पेड़ पांच साल का है, फल तोड़ के खा तो लें हम
जनता -
और उसके बाद
नेता -
कल को यहाँ क्या होगा- वह तो नहीं सोचेगा
चाहे यह ज़माना कहे हम को कमीना ,अजी हम तो घोटाला करेगा ------
मित्रों आज की दूसरी  पेरोडी यह रही  ?  यह गीत भी किशोर  जी का गाया हुआ था एक और गीत  "दिल को देखो चेहरा न देखो "  , पर आधारित है  / एक मंत्री है सफ़ेद बाल वाला  , आज वही  है निशाने पर , बेचारे ने जीवन भर चोर डाकुओं को बचने  का काम किया , काफी माल कमाया ,फिर भी  न जी नहीं भरा और न पेट  / तो ग़ौर कीजिये  इस पेरोडी पर 

सर न देखो चेहरे को देखो, 
चेहरा मेरा है खिला खिला 
बाल जो सफ़ेद हैं कर देंगे काला ,-------------
जैसे ही मिल गया एक मौका हमको 
कूद पड़े रे मैदान में 
बांधी लंगोटी, माथे पे मिटटी 
नाम लिखाया पहलवान में 
दिया मैडम ने वर, वर्ना जाता मैं मर 
जलता कैसे मेरे घर में चूल्हा, हाँ, बाल जो सफ़ेद हैं कर देंगे काला ,-------------
कितने असामी , कितने ही खूनी 
सबसे यारी है अपनी 
बनता वह   मंत्री  इस देश में तो 
भारी हो जेब जिसकी जितनी 
खर्च पहले किया, फिर वसूली  किया 
धंधा है बड़ा यह फायदेवाला ,बाल जो सफ़ेद हैं कर देंगे काला ,-------------

Thursday, December 22, 2011

कुछ मित्रों का अनुरोध था कि कुछ दिनों तक "मामा" को आराम दे कर, तीर किसी और पर साधा जाए/ कल एक पर चलाया था और मेरे चाहनेवालों ने उसे सही पहचाना भी ./ आज और एक गिरगिट पर लिख रहा हूँ/ पढ़िए और बताइए कि कौन है यह ? मूल गीत एक दोगाना था - "बड़े अरमान से रखा है बालम तेरी क़सम" पर यह गीत गिरगिट अकेले ही गा रहा है क्यों कि मैडम में इतनी अक्ल हैं नहीं संगीत और साहित्य को समझने के लिए / तो पढ़िए मित्रों 

बड़े अरमान से रखा है मैडम तेरी क़सम , ओ मैडम तेरी क़सम 
तेरी सरकार में, मैंने यह क़दम , हो मेरे क़दम 
जुदा कर देंगे हमें विरोधी में न है यह दम, ओ मैडम है नहीं दम 
तेरी सरकार में मैंने यह क़दम, हो मेरे क़दम ----------------
मिली जो कुर्सी , पूरी हो गई आरज़ू मेरी
लगा कि खत्म हुई बरसों की जुस्तजू मेरी
नाम के तेरे माला , जापते जायेंगे जी हम, हाँ जी जायेंगे जी हम
तेरी सरकार में मैंने यह क़दम ,हो मेरे क़दम ,---------------
तेरे इन चरणों में दिखते मुझे दोनों जहाँ
इन्हीको छोड़के अब बोलो तो जाऊं मैं कहाँ
यु पी में मिलके तो सरकार बनायेंगे जी हम, हाँ बनायेंगे जी हम
तेरी सरकार में मैंने यह क़दम , हो मेरे क़दम ---------------
तेरे खादिम को कुछ और तो दरकार नहीं
मेरे बगैर बने कोई भी सरकार नहीं
दया तू रखना, रे विनती मैं करूँ मूढ़ अधम, ओ मैडम मैं हूँ अधम
तेरी सरकार में मैंने यह क़दम, हो मेरे क़दम --------------------
गिनती के ही सही, पर कुछ तो मित्र ऐसे हैं फेसबुक पर जो मुझे प्रोत्साहित करते हैं पेरोडी लिखने के लिए और उन्हें पसंद भी करते हैं/ तो उन्ही मित्रों की सेवा में आज की पहली पेरोडी प्रस्तुत है / मूल गीत है एक बहुत ही लोकप्रिय फिल्म की - मदर इंडिया - दुनिया में हम आये हैं तो जीना ही पड़ेगा - तो पढ़िए 

कांग्रेस में जो जाए , वह तो चमचा ही बनेगा 
बीवी से भले न डरे , वह तो मैडम से डरेगा ,-----
डर डर के वह बातें , सभी करते ही रहेंगे 
कुछ बोल न पायें , बस घुटते ही रहेंगे
जिसने तो बुद्धि, खोई यहाँ पे ही आएगा ,---------
कहते हैं लोग देश में, जनता का ही शासन
फिर क्यों करें यह किसे युवराज संवोधन
देखे जो इन्हें, पल में ही पागल वह बनेगा ,----------
राजतन्त्र तो हट गया मगर "राजे" हैं बाकी
दो चेहरे हैं इन ढोंगियों के, पूछो न इनकी
जिसने इन्हें जाना नहीं , खाई में गिरेगा ,--------------
खा डाले हैं इस देशको यह नोच नोच के
रहना तू मेरे भाई इनसे बच बच के
आये जो इनकी बातों में बेमौत मरेगा -----------
कहते हैं बात मीठी, मगर कडवी है नीयत
जनता को सताके हैं करे यह तो हुकूमत
कब तक बता, ऐ दोस्त तू जिल्लत यह सहेगा ,-------------
एक और पेरोडी उनके लिए , जिन्हें यह पसंद है , मूल गीत है फिल्म मेला का - यह ज़िन्दगी के मेले 

यह पंजे के झमेले ,यह पंजे के झमेले 
कब तक बने रहेंगे, और हम इसे सहेंगे , यह पंजे ----
इंसानियत न जाना -  खुद को ही देश माना 
कब तक यूँ  दोगे धोखे - जनता करेगी फाके 
उजड़ेंगे तेरे मेले, उजड़ेंगे तेरे मेले - यह पंजे के झमेले ---
तुमको मिला न कोई  - एक गोरी में आयी 
इज्ज़त माटीकी खोयी -हुई हैं जगहंसाई 
बने सारे उसके चेले- बने सारे उसके चेले, यह पंजे के झमेले ----
जब जागेगी  यह जनता - पीटेगी तुमको जूता 
तुमको तो करके नंगा - मेम दिखायेगी ठेंगा 
सर पे पड़ेंगे ढेले- सर पे पड़ेंगे ढेले ,  यह पन्जे के झमेले ---

Wednesday, December 21, 2011

गर खुदा मुझसे कहे , कुछ मांग ऐ बन्दे मेरे (२)
मैं यह मांगूं, मम्मी के गुण मुख मेरा गाता रहे 
उनका बटलर, उनका ड्राइवर, उनका नौकर मैं बन जाऊं
ताक़यामत खिद्मातों का मौका मुझे मिलता रहे ,
मम्मी है ईमान मेरा , मम्मी मेरी ज़िन्दगी
उनकी जूठन मिल जो जाए, वह होगी खुश किस्मती , मम्मी है ईमान मेरा---
कुर्सी जो मिल जाए यारों , बात भी बन जायेगी
और कोई बने मंत्री, इसका मतलब हम नहीं
है भरोसा मम्मी का मुझको,बना देगी वह ज़िन्दगी
मम्मी है ईमान मेरा , मम्मी मेरी ज़िन्दगी --------------
मुंह में जो आता है यारों बकता रहता हूँ हूँ तो मैं
कोई चाहे कुछ भी बोले, मुम्मू को खुश रखता मैं
मम्मी के दर्शन जी मिलता, मन में छाये ताजगी
मम्मी है ईमान मेरा मम्मी मेरी ज़िन्दगी -----------
आर.एस.एस. वालों की यह बड़ी बदमाशी है
हमारी पार्टी के दुश्मन सभी सन्यासी है
अल्पसंख्यक हो, चाहे भले वह "हत्यारे" हो
वोट देगा जो हमको वही हमें प्यारे हो
चाहे "कसाब"हो"अफज़ल" हो चाहे "ओसामा "
हमारी नज़रों में तो सबसे बड़े "महात्मा"
जय हो--- जय हो---- जय हो --
आतंकी हैं "गुरु" करते हैं इनकी बंदगी
मम्मी है ईमान मेरा , मम्मी मेरी ज़िन्दगी------

Tuesday, December 20, 2011


एक युग ऐसा भी था, जब फ़िल्मी गीत समाज के लिए कोई न कोई सन्देश देते थे /  अब तो यह बेहूदा और सस्ता मनोरंजन का माध्यम बन गया है / एक गीत थे पुराना "दूसरों का दुखड़ा दूर करनेवाले -तेरे दुःख  दूर करेंगे राम" / उसी गीत को आधार मान कर उसी धून पर एक नया गीत पढ़िए ,जो देश में बढ़ते जा रहे काले  धन की समस्या पर है / मित्रों से अनुरोध है कि इसे प्रसारित करें कुछ तो अंतर पड़ेगा  ही 

विदेशों में काला धन रखने वाले -  आएगा न यह धन तेरे काम
क्या नहीं यह धन धूल समान  -    आएगा न यह धन तेरे काम --------
क्या क्या चालें चली रे तूने  , खुद को खुदा तू कहने लगा 
क्या क्या गुल खिलाये तूने , चमन पे पतझड़  छाने लगा 
दिल में झाँक के देख ज़रा तू (२) देश को कैसे किया बदनाम , विदेशों ------
धन तो है रे चंचल छाया , आज यहाँ तो कल है वहां 
उसके पीछे  गँवाया जीवन , इतनी समझ तुझमें है कहाँ 
आये यहाँ जाने कितने ही  - छोड़ गए एक दिन यह धाम, विदेशों में-------
कर उपकार तू दुखियों का  रे  ले ले दुआ ग़रीबों  का 
औरों का जो भला करता है ,बात क्या उसके नसीबों का 
अच्छा कर्म जो करता जग में , जिंदा रहता है उसका ही नाम, विदेशों में ----
अपने को समझा भाग्य विधाता , तुझपे विधाता हँसने लगा 
अक्ल पे तेरे पड़ा था पर्दा , तू सच कब यह समझने लगा 
तू तो है एक माटी का पुतला, सब के दाता हैं  एक  वही "राम", विदेशों में ----

सुबह सुबह टी.वी चलाया तो एक गाना सुना फिल्म "मेला" का- "गाये जा गीत मिलन के " सोचा चलो इस पर एक पेरोडी हो जाए, मामा को लेकर , तो पढ़िए 

{भांजे का सन्देश मामा के लिए }

गाये जा गीत मैडम के ,
तू चमचा बनके
कुर्सी पे जो रहना है ----------
पाया पद जो सब कुछ करेगा तुझको था यह भरम
तू तो नाचा वैसे रे मामा, जैसे नचाई मैडम
खिलौना चाबी का बनके
और ठुमके लगा के
तुझे अब नाचना है, गाये -------------
तेरे कानून मामा चलेगा, मासूम जनता पर
हिम्मत है टकरा जा उससे, हावी जो है तुझ पर
दिन चार हैं जीवन के
तू इतना जान के
जीवन तो बीताना है , गाये -----------
ईश्वर ने तुझे भेजा धरा पर,कीर्तन उसका ही कर
खुद को इतना न गिरा मामा, मरने से पहले न मर
खरी बातें भांजे के, याद इनको रखके
कुछ करके दिखाना है , गाये -----------
अनिल जी ने कल किसी मंत्री के बयान पर एक पोस्ट डाला था ,जिस में उस अज्ञानी मंत्री ने अपने अहंकार को प्रदर्शित करते हुए हिन्दू संगठनों को चुनौती दी थी , इस बात का उल्लेख किया गया था // वास्तव में यह वह नहीं उसकी निर्जीव कुर्सी बोल रही थी और ऐसे घमंदियों के लिए कुछ पंक्तियाँ पढ़िए नीचे / अनिल गुप्ता जी का विशेष ध्यान चाहूँगा 

इतना ग़रूर न कर अरे ओ "अहमक ", 
देखा है "पहाड़ों" को भी "गर्द" होते हुये/
जला सकती है जो हर शै को "आग" -
"आब" के मारे देखा उसे सर्द होते हुये //1
कुर्सी का करिश्मा है जग ज़ाहिर
कुर्सी पे बैठ कर न इतराना तू /
इस पर बैठके देखा है रे हमने
"हिन्जडों" को यहाँ "मर्द" होते हुये//2
रगों में खून की गर्मी है रे तेरा
तभी तो मुहं पे लगाम नहीं /
बड़े बड़े सूरमाओं को चेहरा
देखा है हमने भी "ज़र्द" होते हुये //3
आये गए न जाने कितने यहाँ
रहा यहाँ धरती पर कोई नहीं /
बड़ों बड़ों को देखा है हमने
किताबों के बस "फर्द" होते हुये //4
ऐ मेरे मामा प्यारे - कोई तुझसा न है रे 
कैसे तू बन गया गया शैतान 
भांजे कर दिया बदनाम ,----------
यह मक्कारी यह ओछापन
जो तुझ में है, कहीं नहीं
यह मुल्क लूटने का फ़न
जो तुझ में है कहीं नहीं
तुने तो, तुने तो कर डाला है रे परेशान
ऐ मेरे मामा प्यारे ------
भांजे के बात मान ले ,
सुधर जा तू यह वक़्त है
तू जनता से ज़रा सा डर
हो जाएँ न कि सख्त यह
जनता, जनता ही तो तेरा है रे भगवन
ऐ मेरे मामा प्यारे ---------
यह रानी और यह युवराज
न देंगे रे हमेशा संग
यह मौका देख भागेंगे
उतारके तेरा तो रंग
मैं तेरा, मैं तेरा हूँ रे भांजा न रे दुश्मन
ऐ मेरे मामा प्यारे ------------
आज की दूसरी पेरोडी - एक सदाबहार गीत "चाँद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था" पर आधारित 

साधू सा हो देशका नेता ऐसा ही तो सोचा था 
पर यह वैसा नहीं है भाई जैसा मैंने सोचा था ,-------
दिखता है यह तो सीधा बड़ा 
पर चाल चले हमेशा टेढ़ी
मेरे प्यारे इस देश की तो
इसने बखिया सदा उधेडी
खोट होगी इतनी नीयत में, यह न मैंने सोचा था
हाँ यह वैसा नहीं ------------------------------
कहने को तो मुखिया देश का
लेकिन औरों का ग़ुलाम है यह
एक सब्ज़ परी जो दिख गयी
जा बन बैठा गुलफाम रे यह
रंग ऐसा वह दिखलायेगा, यह न मैंने सोचा था
हाँ यह वैसा नहीं -------------------------------
जनता भूखी इस देश में है
यह सैर विदेश का करता है
इसके गुर्गोंका क्या हम बोले
यह शह तो उनको देता है
पहन मुखौटा छलेगा हमको, यह न मैंने सोचा था
हाँ यह वैसा नहीं ----------------------------------

Monday, December 19, 2011

आज के लिए अगले पेरोडी/ फिर वही मुकेश जी/ , फिर वही दुल्हा दुल्हन - / गीत है "हमने तुझको प्यार किया है जितना"

"पंजा" ने हमको चूना लगाया जितना , 
कौन लगाएगा इतना ;------------
मालकिन बन गयी "हंटरवाली", चोरों की बनी टोली 
नेता बने वह, कानून से जो , खेले रे आँख मिचौली
"धर्म को ठेंगा" दिखा दिखा कर , पाप किये हैं जितना
कौन करेगा इतना ,---------------
खाल खींचके , गोश्त नोचके , हड्डी भी नहीं छोड़ा
सब कुछ तूने खाया लूट कर, कर दिया कैसा बखेड़ा
बाप की थाती समझा तूने, बोल न रे मोहना
बाप थे तेरे कितना,----------------
साधुओंने समझाया तुझको , आयी जनता भी पीछे
डर तुझको पर लगा रहा रे, मैडम कहीं न रूठे
ऐसे छोड़ के आया शर्म तू, नंगा हुआ तू जितना
होगा कौन रे इतना ,-----------------
कल कौशल उप्रेती ने मुकेश जी पर एक बड़ा सुन्दर पोस्ट डाला था/ इस लिए मैं आज अपनी दोनों पेरोडी मुकेश जी के २ मशहूर गीतों को आधार मान कर लिख रहा हूँ / दोनों ही फिल्म दुल्हा दुल्हन के गीत हैं / पहले है "जो प्यार तूने मुझको दिया था " इस पेरोडी का सन्देश है कि अयोग्य नेताओं से हमें समर्थन वापस लेना चाहिए .. पढ़िए ...

जो वोट मैंने तुझको दिया था वह वोट अपना मैं लौटा लिया हूँ 
अब तुझसे उम्मीद कोई न बाकी, नाकारा तू है समझ पा रहा हूँ ,-----
हम को खबर भी होने नहीं दी, तूने "वतन" को "कफ़न" में लपेटा
सहलाके चेहरे को तूने हमारा, मारा रे ज़ालिम कैसा यह चांटा
तुझपे भरोसा जो अब तक किया था ,कब्र में उसको सुलाने चला हूँ ,अब तुझसे ----
तुझको कहें क्या, नहीं देखा तुझसा , इंसान कोई कहे कैसे तुझको
बातें न पूछो हमारी ऐ यारों, पछता रहे होंगे "भगवान" भी तो
ग़लती पे अपनी "वह" रोते ही होंगे, यह सोच कर मैं मरा जा रहा हूँ, अब तुझसे ---
हे राम हमको क्षमा तुम ही करना, मारी गयी थी हमारे मति जो
"गौ" को तो हमने "कसाई" को सौंपी, मातृभूमिकी हुई दुर्गति जो
तुमसे हे भगवन विनती है इतनी,उठा लो इनको मैं यह कह रहा हूँ
अब तुझसे उम्मीद कोई न बाकी, नाकारा तू है समझ पा रहा हूँ ,-----

Sunday, December 18, 2011

फिल्म- राजकुमार, - गीत- तुमने किसीकी जान को जाते हुए देखा है 

तुमने किसीको देश को लूटते हुए देखा है 
देखो हर एक नेता मेरा देश लूट रहा है ;--------
इनपे भरोसा कर इन्हें कुर्सी था इनको सौंपा 
हमको गुमान था न यह दे जायेंगे यह धोखा
देखी जो इनकी हरकत, पछता यह मन रहा है,----
कहते हैं सब हैं भाई, पर फूट डालते यह
आपसमें हम जो लड़ते "सिटी" बजाते हैं यह
समझो न क्यों रे भाई, चक्कर जो चल रहा है,------
"सुरसा" के मुँह के जैसे महंगाई बढ़ रही है
आटा हुआ है गीला, गुरवत सता रही है
मातम के धून में अब तो हर कोई गा रहा है ,----
इनको हज़ारों मस्ती, जलती है तेरी बस्ती
हाथी से झूमते हैं, ऐसी है इनकी "हस्ती ,"
पागल हुआ है हाथी, घर तेरा टूट रहा है ,--------
हद हो चुकी है अब तो इनके कमीनेपन की
जो हैं शरीफ देश में, कमजोरों में है गिनती
रोकेंगे ज़ुल्म अब तो , हर कोई कह रहा है ,------------
कुछ ही देर में निकलने वाला हूँ/ सुबह सुबह टी.वी चलाया तो एक गाना सुना फिल्म "मेला" का- "गाये जा गीत मिलन के "  सोचा की चलो इस पर एक पेरोडी हो जाए, मामा को लेकर , तो पढ़िए 

{भांजे का सन्देश मामा के लिए }

गाये जा गीत मैडम के ,
तू चमचा बनके 
कुर्सी पे जो रहना है ----------
पाया पद जो सब कुछ करेगा तुझको था यह भरम 
तू तो नाचा वैसे रे मामा, जैसे नचाई मैडम 
खिलौना चाबी का बनके
और ठुमके लगा के 
तुझे अब नाचना है, गाये -------------
तेरे कानून मामा चलेगा, मासूम जनता पर 
हिम्मत है टकरा जा उससे, हावी जो है तुझ पर 
दिन चार हैं जीवन के 
तू इतना जान के 
जीवन तो बीताना है , गाये -----------
ईश्वर ने तुझे भेजा धरा पर,कीर्तन उसका ही कर 
खुद को इतना न गिरा मामा, मरने से पहले न मर 
खरी बातें भांजे के, याद इनको रखके 
कुछ करके दिखाना है , गाये -----------

Saturday, December 17, 2011

नदी का काम है बहते जाना, हवा का काम है शीतलता फैलाना, फूल का काम है खिलते रहना/उसीतरह मेरा काम है लिखते जाना, जो पढ़े उसका भला, जो न पढ़े उसका और अधिक भला/ तो मित्रों आज की पेरोडी प्रस्तुत है देश की हालत पर / मूल गीत है फिल्म "हरियाली और रास्ता" से "लाखों तारे आसमान में, एक मगर ढूंढे न मिला"/ आज सुबह की पहली भेंट

लाखो नेता हैं देश में, एक इमानदार मुझे पर न मिला
सब ने मिल कर देश की इज्ज़त खाक में दिया है मिला ---
बचपन से ही देखते आये, करतब इन बेईमानों के
किस्से ख़त्म न होंगे इनके कैसे बखानूं मैं इनके
जी करता है , जा के दबोचूं , इन पापियों का मैं गला ,सब ने -----
यह जाने न कोई शराफत, इनका खुदा तो दौलत है
धन है मंदिर, धन ही देवता,धन इनकी इबादत है
जनता के यह नेता देखो, देंगे भरोसे का क्या सिला , सब ने ----
कानून जो बनवाते देशके, वही तो तोड़े कानून
खा जायेंगे देश को कच्चा कैसा इनका है रे जूनून
कितने पाप किये थे हमने, हमको ऐसा नेता है मिला , सब ने ---
जागो जनता, चेतो जनता, अपने हक़ को तो जानो
नहीं हैं सेवक यह तो तुम्हारे इनकी नीयत पहचानो
यह वह कमीने है जो घर पे अपने ही डाका है डाला , सब ने ---
एक बड़ा प्रेरक गीत थे फिल्म "हमराज़" में "न मुंह छुपाके जीयो और न सर झुकाके जियो "
उसी गीत को आज क्या शक्ल दिया है देखिये इस पेरोडी में / आज की दूसरी प्रस्तुति

न मुँह छुपाके जीयो और न सर झुकाके जीयो
गालियाँ सुनके हज़ारों बेशरम बनके जीयो ,न मुंह छुपाके जीयो ----
नेता जो बनते उन्हें लोग पाजी कहते हैं
इन्ही गाली को प्यार के तो फूल जानके जीयो, न मुंह छुपाके जीयो ----
फै धंधा ऐसा कहाँ मुफ्त की कमाई जहाँ
बिना जतन के प्यारे तुम तो ऐश करते जीयो, न मुंह छुपाके जीयो ----
न हिंग लगता है न फिटकरी ज़रुरत है
बनालो रंगीं जीवन अपना और शान से जीयो ,न मुंह छुपाके जीयो ----
न जाने कौन सा पल पैसे की ज़रुरत हो
कमालो जितना चाहो यारों ,आँखें मूँद के जीयो ,न मुंह छुपाके जीयो ----
है मर्जी "उसकी" जो यह कुर्सी पे बैठे हो रे तुम
उन्ही के दम पे सीना ताने मूंछ ऐंठ के जीयो , न मुंह छुपाके जीयो ----
दुआ करो की तुम्हे छात्र छाया मिलती रहे
वह हों सलामत तो कानों तेल डाल के जीयो, न मुंह छुपाके जीयो ----

नोट - उसकी मर्जी से मतलब "ऊपर बैठे भगवान की मर्जी" नहीं धरती के भगवान् की मर्जी है
भारत रत्न किसे दिया जाए किसे नहीं इस पर सभी अपना अपना पक्ष म, अपने अपने विचार रख रहे हैं और अपने ढंग से खूब रख रहे हैं , पर इस सन्दर्भ में मुझे एक बात याद आ रही है सदियों पुरानी बात है जब अकबर दिल्ली का बादशाह हुआ करता था / सभी जानते हैं अकबर के दरबार में विभिन्न कलाओं में निष्णात कई गुनी जन थे जिन्हें न"नवरत्न" कहा जाता था / इन्ही में एक थे श्री तनु मिश्र, जिन्हें बाद में मियाँ तानसेन भी कहा गया / उसी ज़माने में संगीत के क्षेत्र में एक और बहुत बड़े विद्वान स्वामी हरिदास ,वृन्दावन में हुआ करते थे जो अपने संगीत के माध्यम से श्री कृष्ण की आराधना किया करते थे /
एक बार अकबर ने तानसेन से कहा कि वह स्वामी हरिदास से मिलना चाहता है और उन्हें दिल्ली बुलाया जाए / तानसेन ने कहा ऐसा संभव नहीं है , आपको ही उनके पास जाना पड़ेगा / अकबर ने एक काफीला तैयार करने का हुक्म दे दिया / तानसेन ने कहा, आप बादशाह हैं अपने राज्य के पर स्वामी जी तो ज्ञान के अखंड साम्राज्य के अधिपति हैं / आप अगर उनसे मिलना चाहते हैं तो आपको एक साधारण व्यक्ति बन कर जाना होगा वहाँ / और ऐसा ही हुआ / लेकिन स्वामी जी ने अपने अंतर्मन के नेत्र से बादशाह को पहचान लिया /
ज्ञान की गरिमा यही है/ आजकल लोग सरकारी पुरस्कार और सम्मान पाने के लिए क्यों इतने लालायित रहते हैं पता नहीं ...

Friday, December 16, 2011

रोता चिल्लाता एक आदमी घूस आया थाने में सुबह सुबह / सारा का सारा थाना खाली था , बस एक सिपाही ऊंघ रहा था एक कोने में / आदमी जो देखने में ग़रीब लगता था फर्श पर लेट गया और सीपाही का पैर पकड़ लिया/ सीपाही झटके से जाग कर उठा बैठा और और अपना पैर छुडाने लगा / आदमी था कि पैर छोड़ने को तैयार ही नहीं था / जैसे तैसे उसे शांत करके सिपाही ने उसे जब पूछा तो पता चला कि वह शहर की सबसे बड़ी मंडी में हम्माल का काम किया करता है / घर पर व्याहने लायक लडकी की शादी के लिए उसने अधिक मेहनत कर पिछले २ सालों में १० हज़ार रुपये जमा कर रखे थे अपने संदूक में/ कल हे रातको घर में सेंध लगा कर चोर ने वह रुपये उड़ा लिया और शादी में ३ दिन बाकी है अभी / वह बिनती कर रहा था कि पुलिस उसकी मदद करे पैसे दिलवाने और चोर पकड़ने में /

सारी बातें सुन कर सिपाही ने उसे झिड़क दिया वजाय हमदर्दी जताने के / कहा तेरा कोई और काम है नहीँ, सुबह सुबह मुँह उठाये चला आया दिमाग चाटने, चल निकल यहाँ से / आदमी बिलख रहा था / सिपाही ने एक लाठी जमाई उसके पीठ पर और कहा पता है तुझे मंत्री जी की बेटी की शादी है / वहां का काम देखने और सुरक्षा के लिए पूरा थाना गया हुआ है , शादी होगी , बारातियों की आवभगत होगी फिर दूल्हा दुल्हन को सब छोड़ने जायेंगे, रास्ते में आतंकवादियों का हमला होने की आशंका लगा जो रहता है / तुझे पता है कितना काम है मंत्री जे के घर पर / और तू चला आया तेरा १० हजार का रोना रोने/ चल भाग यहाँ से नहीँ तो तेरे नाम पर चोरी का रिपोर्ट लिखा कर तुझे ही बंद का दूंगा अन्दर /

आदमी आंसू पोंछता हुआ उठा और सर झुका कर बाहर जाने लगा, रास्ते पर पहुँच कर अनमना रास्ता पार कर रहा था कि तेज़ गति से आते हुए एक ट्रक ने उसे कुचल डाला / ट्रक के पीछे लिखा था - "फिर मिलेंगे " - "मेरा भारत महान"
मित्रों, संगीत के अलग अलग रूप में से क़व्वाली का एक अलग ही मज़ा है /बहुत दिनों से पेरोडी लिखता आया हों, आज अचानक क़व्वाली के रूप में एक पेरोडी लिखने का मन हुआ , तो लीजिये , प्रस्तुत है/ मूल प्रेरणा स्रोत है, एक हमेशा जवान क़व्वाली "हमें तो लूट लिया मिलके हुस्नवालों ने " / पढ़िए आनंद लीजिये और गाने के शौक़ीन हैं तो गा कर भी खुश होइए,

यह मुल्क लूट लिया पन्जे निशान वालों ने
माताने , बेटोंने, दरवार वालों ने ,---------
नीयत में खोट है और शहद इनकी बातों में
फाकें में मरते हैं हम, धन है इनके खातों में
न इनकी बात का कुछ ठीक है न वादों का
पता न जाने कोई इनके सब क़बाहत का
न जाने पैदा हुए कैसे यह इस धरती पर
ऐश करते हैं यह, जीते हैं हम तो मर मर कर,
यह मुल्क लूट लिया -----------------
वहीं वहीं पे क़यामत हो यह जिधर जाएँ
खिलते गुलशन भी पल में ही उजड़ जाएँ
जहाँ जहाँ भी उजाला था अब अँधेरा है
ज़िन्दगी हंसती थी अब मौत का तो डेरा है
कैसे तारीफ करें लफ्ज़ हमको मिलते नहीं
इनके काटे जो हो पानी वह मांगते ही नहीं
यह मुल्क लूट लिया -------------
पन्जे वालों की मोहब्बत तो बुरी होती है
जो चलो साथ इनके खाट खड़ी होती है
इनकी बातों में बनावट ही बनावट देखी
मुंह में राम इनके, बगल में छूरी देखी
है दुआ मेरी इतनी यारों "उपरवाले" से
न पड़े पाला कभी पन्जे निशान वाले से
यह मुल्क लूट लिया ------------------
चोर बटमारों के देखो यह सजी है महफ़िल
इनकी नीयत से लोग कैसे हो रहे हैं गाफिल
होश में आओ रे, आँखों को अब तो खोलो रे
इनकी बातों में फंसके, सपनों में न झूलो रे
देश तो अपना है, उसे कैसे बेचने दें इनको
आओ रे मिलके सिखाएं सबक हम इनको
मुल्क को लूट लिया---------------
मित्रों मैं एक साधारण सा आदमी हूँ, पर जाने आपने मुझ में क्या देखा जो आज मेरे जन्मदिन पर, मुझ पर शुभकामनाओं की बरसात कर दी / आपके स्नेह,प्रेम और अपनेपन की घटा से बरसती बौछारें मेरे मन को भीगो गयी है / जहाँ तक मुझसे बन पड़ा मैंने हर किसी के पोस्ट का समुचित और माकुल उत्तर देने का प्रयास किया है, इसमें मैं कहाँ तक सफल रहा यह आप ही जानें / आपके असाधारण प्यार के जवाब में मैंने एक छोटी सी कविता लिखी है अभी अभी / निवेदन है इसे पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया देने का कष्ट करें

बड़ी सी गाडी और दो -तीन मकानों का मालिक मेरे एक परिचित ने ;
पूछा मुझसे आज , बता कभी आत्म निरीक्षण किया है अपना तूने //
मैंने कहा उससे ऐ मेरे भाई , तमाम ज़िन्दगी साफगोई मैं अपनाई;
मैं क्या हूँ इस बात की झलक , दोस्तों की आँखों ने मुझको बतलाई //
झिड़क कर कहामुझसे धन्य है रे तू मिटटी का माधो ही बना रहा ,
बता इतनी लम्बी ज़िन्दगी में अब तक तूने क्या क्या है कमाया //
कहा मैंने,छोड़ जाऊँगा मैं जो यहाँ उन का हिसाब बता क्या रखना;
नश्वर चीजों के पीछे बता पागल बनके बेकार नहीं है क्या फिरना //
इतना पर सुनले रे भैय्या जीवन में दोस्त बहुत मैंने हैं कमाए ,
जिनकी छवी सुबह शाम मेरे दिल के धड़कन में तो हैं बसे हुए //
एक दिन वह आएगा जब सब कुछ छोड़ के मैं यहांसे जाऊँगा ;
दोस्तों की यादों में जानूं पर मैं हर पल तो जिंदा ही रहूँगा //

सभी मित्रों का फिरसे धन्यवाद ... हँसते रहें हंसाते रहें , यही जीवन है