Monday, July 30, 2012

madam ke samne

२००४ से ले कर २०१२ - पूरे ८ साल बीत गए, इसके उसके समर्थन से सरकार की गाडी चल रही है , और उसके पहियों के नीचे हम कराह रहे हैं / अन्य सभी पार्टी बीच बीच में दिखावे के लिए शोर मचाते हैं फिर घुटने टेक देते है / राष्ट्रपति चुनाव प्रकरण में भी वैसा ही हो रहा है /३ हफ़्तों से चल रही नौटंकी का पर्दा भी गिर गया जब "तेरी मेरी चलेगी"( TMC) पार्टीने भी अपना समर्थन के घोषणा कर दी./ हम कर ही क्या सकते हैं जब हकीम ही ज़हर की गोलियां हमारे मुंह में ठूंसे ? एक गीत तो लिख ही सकते है न ? मूल गीत है "परदेसियों से न अखियाँ मिलाना :"/ यह गीत किनके लिए लिखी गयी है कहने की कोई ज़रुरत ही नहीं 

मैडम के सामने कोई कुछ भी न बोलना 
एक वही तो हम चमचों का है ठिकाना , मैडम के -----
हम सब उनके जानवर पालतू
औकात उनकी, हम सब फालतू
उनके मेहर से मिले पानी और दाना, मैडम के ----
एक पट्टी हमें पढ़ाई गयी है
उनके चरण के बिना ठौर नहीं है
फ़र्ज़ है उनकी जूठन को चाटना , मैडम के -----
कंधे पे हमारे रख कर के बन्दूक
दबा के बैठी है कालाधन का संदूक
किया होगा उसने हमपे कोई जादू टोना, मैडम के ---
वह है विदेशी जानते हम भी
तुम्ही बताओं क्या करें हम ही
देशप्रेम से नहीं कुछ है मिलना , मैडम के ---
आप सब जाने हैं हम कांग्रेसी
बल न गयी चाहे जल गयी रस्सी
देश डूबने खोजे हम तो बहाना, मैडम के --

* अब शायद इन का ध्येय गीत यही रह गया है
जहाँ तक मेरी जानकारी है, देश में जितने भी अपराध होते हैं उनके पीछे सबसे बड़ा कारण होता है आर्थिक फायदा / ज़मीन जायदाद के बंटवारे को ले कर रिश्तेदारों में झगडा और खून की घटनाएं , पुरुष द्वारा अपने ही परिवार की महिलाओं या अन्य महिलाओं को देह व्यापार में घसीटना आदि से ले कर सरकारी कार्यालयों में अपने पद का दुरुपयोग कर रिश्वत खाना और देश की सुरक्षा से सम्बंधित दस्तावेज देश के दुश्मनों को बेच देने तक , सब के पीछे आर्थिक लाभ ही एक मात्र उद्देश्य रहता है / पर इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि पकडे जाने पर और वह भी रंगे हाथों यही लोग मजबूरी का राग अलापते हैं और अपने को मासूम और बेगुनाह प्रमाणित करने का ढोंग शुरू कर देते हैं / कहीं कहीं पर यह सफल भी हो जाते हैं / ऐसा ही एक काल्पनिक किस्सा प्रस्तुत है / 

एक आदमी था जिसे हराम की खाने की आदत पड़ गयी थी / दिन भर सारे शहर में घूमता था और जहाँ भी मौका लगे हाथ साफ़ कर देता था / एक दिन कहीं कुछ न मिला/ दिन के ३ बजने वाले थे , देखा एक दूकान दार का खाने का डिब्बा रखा हुआ है और वह हाथ धोने गया हुआ है / उसने डिब्बा उठा लिया और भागा, पर पकड़ा गया/ अदालत में केस चलते वक़्त उसके वकील ने सफाई दी , हुज़ूर मेरा मुवक्किल भूखा था इस लिए उसने सिर्फ खाना ही चुराया वर्ना वहीं पर नोटों से भरा एक ब्रीफकेस भी रखा था जिसमें लाखों रुपये थे/ अगर यह चोर होता तो उसे न ले भागता ? जज ने देखा की वह आदमी जोर जोर से रो रहा है , दया दिखा कर उन्होंने उसे रिहा कर दिया / अदालत से बाहर आ कर वकील ने आदमी से पूछा तुम रो क्यों रहे थे ? क्या तुम्हें पश्चाताप हो रहा था ? / इसने जवाब दिया अजी साहब पश्चाताप तो हो रहा था ज़रूर पर अपनी करनी पर नहीं बल्कि इस बात को ले कर कि मैं वह ब्रीफकेस देख कैसे नहीं पाया ? / हमारे देश के बेईमान नेता और इस चोर में कोई फर्क नज़र आता है क्या आपको ? / और हम भी उस जज की तरह दया दिखाते रहते हैं न हर बार चुनाव में / ग़लत कहा क्या मैंने ?
ज़रा ग़ौर करो
कौन है भिखारी (एक लघु कथा)

शहर की बढ़ती हुयी आबादी को देखते हुए सरकार ने राजमार्ग को शहर के दोनों छोर से मिलाने के लिए , बाई पास बनवा दिया / वहीं एक मंदिर भी बन चुका था और एक डिग्री कालेज भी स्थापित हो चुकी थी / मंदिर के बाहर एक बुढा अपाहिज भिखारी बैठा लोगों से दया की भीख मांग रहा था / कोई एक आध सिक्का उछल देता था उसकी तरफ तो कोई प्रसाद में लगाये गए केले या संतरे का एक हिस्सा दे देता था / कुछ ऐसे भी थे जो उसे हिकारत की नज़र से देख रहे थे, मानो वह इस धरती पर बोझ बनके जी रहा है /
अचानक एक जोर की आवाज़ से इलाका गूँज उठा / सभी ने देखा कि तेज़ी से जा रहा एक ट्रक पेड़ से टकराकर उलट चुका है / पास जा के देखा तो ट्रक का खलासी गाडी के नीचे दब कर दम तोड़ चुका है और ड्राइवर ज़ख़्मी हालत में छटपटा रहा है / एकी बुजुर्ग ने कहा अरे इसे अस्पताल ले चलो कोई /
तभी एक आवाज़ आयी , अरे भाइयों आओ आओ, यह ट्रक तो साबुन और चाय की पेटी से भरा पड़ा है / सभी भागे भागे गए / जिससे जितना बन पड़ा माल समेटने लगा / कोई उन्हें रोकनेवाला जो न था / पुलिस के आने से पहले हर कोई चाहता था कि अधिक से अधिक माल अपने कब्ज़े में कर ले / भगवन की पूजा करने आये धार्मिक लोग भी उस भेद में शामिल हो गए और कालेज के विद्यार्थी भी अपने क्लास छोड़ कर भाग आये मौके का फायदा उठाने / किसी को इतनी फुर्सत न थी कि तड़प रहे ड्राइवर को दो घूँट पानी का पीला दें /
दूर बैठा "धरती का बोझ" वह भिखारी सोच रहा था , कि जिनसे वह दया की भीख मांग रहा था वह भिखारी हैं या लूटेरे ? पर उसके पास कोई जवाब नहीं था / आपके पास है क्या ?
Mitron jaante hain, aaj ke din ka mahatwa kya hai . Koi kahenge ki Bharat ka naya Rashtrapati chunne ke liye aaj matadaan hua, koi kahega ki Rajesh Khanna ki antyeshti huyee .

Par mitron vastav men aaj ke din 1969 men (43 saal pehle) desh kee arth-vyavastha ko matiyamet karne ke liye Haramkhor Congressiyon kee daadee amma ne 14 bade bade Bankon ka Nationalisation karke desh ka bantadhar karne kee shuruat kee thee. Jiska parinaam aisa hua .
1) Pehle to LOAN MELA karke sarkaarne Bank ke Dhan ka khula durupayog kiya apne swarth ke liye 
2) Phir usee loan kee maafe karwake badee waah waahee batoree 
3) Apne Chelon chamchon ko Bankon se loan dilwane ka har jugaad kiya jo wapas he naheen aaya
4)Bank kee sankhyan badhtee gaye par usmen niyukti na badhee aur kaamgaaron par kaam ka bojh badhne laga
5) Is ka fayda utha kar Asadhu Bank karmiyon ke madhyam se Bankon men Dhokhadhade ke naye naye maamle saamne aaye
6) Jis uddeshya se Rashtriyakaran hua tha woh to ek sapna reh gaya . Na SOCIAL na hee ECONOIMIC koi development naheen hua aam janta ka
7) Bade bade audyogik aur vyaparik gharane Bank ka loan dabakar baith gaye aur Congress party ko fund supply karte rahe
8) Jahan jahan bhee grameen shakhaayen khulee sab ghaate par chalne lagee aur fayda mila Asadhu Bank Officer aur local dalalon ko

Phir bhee Bank Rashtriyakaran ke geet aaj bhee gaate hain log. Dhanya hai yeh Bhed Chaal . Aur usee tithi se agla Rashtrapati bhee chune jaane ka matdaan ho gaya . Jaane aur kitnee badkismatee kee maar jhelne ehai Janta ko ....
मित्रों एक विचित्र प्रजाति का प्राणी उत्पन्न हुआ इस देश में और तेज़ी से अपने संख्या बढ़ता जा रहा है / उस प्राणी को कुछ लोग "सेक्युलर" कहते हैं , पर उनकी मानसिकता और वास्तविकता देखते हुए मैं उन्हें "शेख - हुल्लड़ " कहता हूँ ,क्यों कि यह शेखी बघारने में माहिर हैं और हुल्लड़ मचाने में भी / और इनका एक ही मूल धर्म है शेखों का साथ देना / तो क्यों न आज उन पर एक रचना हो जाए /

मैं हूँ सेक्युलर - धरम का ठेकेदार
चाशनी में ज़हर घोल कर बाँटूं नकली प्यार 
मैं हूँ सेक्युलर - धरम का ठेकेदार------
मेरे अपने भाइयों का मुझको फ़िक्र है नहीं
अपने स्वार्थ छोड़ कर कुछ मैंने सोचा नहीं
पुरखों को जो गाली दे, दूं मैं उसको पुरस्कार
मैं हूँ सेक्युलर - धरम का ठेकेदार-----------
वह जो मेरे सगे हैं, भागता हूँ दूर उनसे
मारते जो हैं लात मुझे, चाटूं तलवे उनके
वर्ना कहो चलेगी कैसे अपनी सरकार
मैं हूँ सेक्युलर - धरम का ठेकेदार-------------
धर्म-कर्म न मानूं यह तो है एक बीमारी
इफ्तार की दावत रखूँ तो वह है समझदारी
संस्कृति की बातें सुनकर चढ़ता मुझे बुखार
मैं हूँ सेक्युलर - धरम का ठेकेदार-----------
नाम के पाक जो हैं, मन के गंदे हैं बड़े
वह आये इस देश में तो अपने मौज हैं बड़े
वोट ले कर उनका ही बना मैं साहूकार
मैं हूँ सेक्युलर - धरम का ठेकेदार-------------
न हिन्दू न मुस्लिम कोई मेरा नहीं अपना
इनको लड़कर देखूं तमाशा काम है यह अपना
समझ सके कोई मेरी चाल को कौन है होशियार
मैं हूँ सेक्युलर - धरम का ठेकेदार-----

तो भाईओं कुछ ग़लत आकलन तो नहीं किया न मैंने इनका ?
Parivar men jinhe SAIBABA par shraddha hai unke liye ek Bhajan prastut hai , jo maine mool roopse SAI group men post kiya hai 

मित्रों , बहुत दिनों के बाद एक भजन प्रस्तुत कर रहा हूँ आप सब के लिए , अगर २ शब्द आप इस पर लिखें तो मुझे प्रेरणा मिलेगी 

खोल के मुख न माँगना तू , जानते हैं सब कुछ साईं 
तेरी नेकी और बदी का लेखा ,हरदम पढ़ते हैं साईं ----1
धन दौलत की चाह न रखना, साथ तेरे न जाएगा
मन का शीशा साफ़ तू रखना,जिसमें बसते हैं साईं ----2
अपनी फिक्र में खोया हो जो, बाबा को क्या पायेगा
आग पराई में जल जाये जो,चाहते उसको है साईं ----3
भेद-भाव तू दिल से मिटा ,बन्दों से करता जा प्यार
रख श्रद्धा तू देखे जिसको, हर घट में बसते साईं -----4
फलकी चिंता तजके मनसे , नेकी करता जा "कुन्दन"
कर्म तेरा जो हो खरा देखना , आयेंगे तेरे घर साईं -----5
एक लघु कथा 

उसे जब कठघरे में लाया गया , उसे देख कर ही हाकिम के त्योरियां चढ़ गयी. / वकील के कुछ बोलने से पहले उन्होंने मुलजिम से कहा, आज मैं तुम्हें पांचवीं बार देख रहा हूँ/ पढ़े लिखे हो, देखने में हट्टे कट्टे हो और चेहरे से लगता नहीं कि तुम्हे अच्छे परवरिश न मिली हो / तो फिर बार बार चोरी करके पकडे जाते हो और यहाँ क्यों आते रहते हो / कोई ढंग का काम क्यों नहीं करते ?

मुलजिम ने आँखों में ढेर सारी उदासी और होठों पर फीकी से मुस्कराहट ला कर कहा, साहब जानते हैं समाज में सबसे सस्ता क्या है, जी वह है नसीहत / आप मेरी जगह होते और मैं आपकी जगह होता तो शायद मैं भी ऐसा ही केहता जैसा कि आप कह रहे है ? पर साहब आपको पता है बाहर की दुनिया का हाल ? कौन सा काम करूँ ? सरकारी नौकरी में आरक्षण ने हमें न घर का छोड़ा न घाट का / निजी क्षेत्र में हमारे लिए कोई जगह है नहीं / सोचा था कि राजनीति में उतर कर कुछ बदलाव लाऊंगा पर वहां भी परिवारवाद हावी है / विश्वविद्यालय में पढ़ते समय इंटर यूनिवर्सिटी ड्रामा कम्पीटीशन में श्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार जीता था मैंने , पर फिल्म उद्योग भी निजी क्षेत्र बन गया है , बड़े बाप के बेटे ही वहां मौका पाते हैं / लेखन का शौक था पर प्रकाशन संस्था केवल प्रशासनिक अधिकारीयों के लिखे हुए ही छापते हैं, आखिर उन्हें भी अपने पेट की चिंता करनी होती है न ? थक हार कर मजदूरी करने निकला तो तो हर किसीने कहा पढ़े लिखे हो तुमसे क्या मेहनत होगी ?

तो फिर आप ही बताइए जिंदा कैसे रहूँ / अगर भगवान् ने पेट न दिया होता और भूख न दी होती तो शायद यह हाल न होता मेरा / ऊपर से घर परिवार में ताना निकम्मा होने का / बताइए आप मेरी मदद करेंगे कोई इज्ज़त की कमाई करने के लिए / हाकिम ने शर्म के मारे लाचारी से सर झुका लिया