Tuesday, December 23, 2014

तो लो भाई इस अति व्यस्त दुनिया में हम एक अनोखे निठल्ले हैं जो सिर्फ़ अपनी ही हांकता रहता है भले ही कोई सुने न सुने - कोई बात नहीं जी- हम तो बोलते ही जाएँगे अगर हमारी आत्मा और विवेक इस बात की गवाही दे कि हम सही बोल रहे है-
तो हुआ यूँ कि अब की बार जो लोक सभा बनी वह है सोलहवीं लोक सभा - और साहित्य में जो शृंगार रस है उसमें 16 का क्या महत्व है आप जानते ही हैं- तो एक बहुत ही मशहूर शृंगार रस ( रोमांटिक गीत) के आधार पर एक पेरोडी प्रस्तुत है- आप देखें तो भी ठीक न देखें तो और भी ठीक.. गीत है 'दिल तेरा दीवाना है सनम'- ध्यान रहे इस गीत में गीत शुरू होने से पहले 2 पंक्तियाँ है उन्हे भी मैने जोड़ा है पेरोडी में
ले कर वोट हमारे दूर हम से हो गये
इस पाजीपन पे आपके हैरान हम हुए- आ $$$$$$$$$------
कैसा कमीना तू है अरे नेता (2)
यह बता तू फिर हमें वोट क्यों देता (2)
करप्ट है सिस्टम-- करप्ट है सिस्टम -------
चुनावों का अजीब है चक्कर
दौलत और मजबूरी की है टक्कर
हर बाज़ी दौलत जीत के आई है
ज़ाहिर सी बात है रे घनचक्कर
कुछ दौलत का असर- कुछ ताक़त का असर
कैसा कमीना तू है अरे नेता (2)
यह बता तू फिर हमें वोट क्यों देता (2)
करप्ट है सिस्टम-- करप्ट है सिस्टम -------
भूखे नंगे हों जब तक देश में
हम तो काटेंगे जीवन ऐश में
आहों से डरना सीख ग़रीबों के
कटता है जीवन जिनका क्लेश में
कुछ चलन का असर- कुछ मक्खन का असर
कैसा कमीना तू है अरे नेता (2)
यह बता तू फिर हमें वोट क्यों देता (2)
करप्ट है सिस्टम-- करप्ट है सिस्टम -------
कैसा जनतंत्र है यह मेरे भैया
पापकी डूबती न जहाँ नैया
कसाई बन कर के सारे हैं खड़े
बचाए जान अब कैसे गैया
सब कुछ है बेअसर- सब कुछ है बेअसर
कैसा कमीना तू है अरे नेता (2)
यह बता तू फिर हमें वोट क्यों देता (2)
करप्ट है सिस्टम-- करप्ट है सिस्टम -------
देखिए कुछ ग़लत लिखा हो तो बताइए - अगर पढ़ने का समय निकाल पाते हैं तो

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