Wednesday, December 3, 2014



जो मुझसे परिचित हैं उन्हे पता है ही मैं पुरानी फिल्मों के लोकप्रिय गीतों को आधार बना कर पेरोडी लिखता रहता हूँ कई वर्षों से.
नेताओं के आश्वासन और फिर वादे से पलट जाने को ले कर एक पेरोडी लिखें की इच्छा ने आज ज़ोर पकड़ा -तभी मुझे याद आया 'पंचतंत्र' का वृषभ और श्रृगाल का उपाख्यान- उसी पृष्ठभूमि पर फिल्म संगम का गीत ' मेरे मन की गंगा' को आधार बना कर प्रस्तुत है एक पेरोडी
तेरे किए गये वादे और मेरे दिल के भरोसे का
बोल नेता बोल संगम होगा की नहीं
अरे बोल नेता बोल नेता बोल संगम होगा की नहीं......
होगा ---- धीरज रख
सड़सठ साल तो निकल गये हम श्रृगाल बनते आए हैं
वृषभ बन कर इन नेताओं ने सदा ही हम को लुभाए हैं
इतना तो बतला दे फल टपकेगा कि नहीं
बोल नेता बोल संगम होगा की नहीं
अरे बोल नेता बोल नेता बोल संगम होगा की नहीं......
कह न - सब्र कर
सब्र का फल मीठा होता है बचपन ही से पढ़ा था रे
खाएँ फल कैसे हम जनता - बीच में तू जो खड़ा है रे
'कल' 'कल' तेरा रे नेता 'आज' होगा कि नहीं
बोल नेता बोल संगम होगा की नहीं
अरे बोल नेता बोल नेता बोल संगम होगा की नहीं......
चूप भी कर कमीने
हम तो हैं सीधे बंदे रे भाई- बकरा बनते आए सदा
वैष्णव का चोला ओढ़ नेता- दिखाए कसाई की ही अदा
घड़ा तेरे पापों का फूटेगा कि नहीं
बोल नेता बोल संगम होगा की नहीं
अरे बोल नेता बोल नेता बोल संगम होगा की नहीं......
- बोले जा --- बोले जा - क्या उखाड़ लेगा मेरा ?

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