Wednesday, December 3, 2014



बेटा - पिता जी- सुना है देश के संसद और विधान सभाओं में पढ़े लिखे नेताओ की संख्या अब बहुत बढ़ गयी है
पिता - सही सुना है बेटे
बेटा - पर पिताजी मुझे यक़ीन नहीं होता इस पर - मुझे तो लगता है यह लोग स्कूल के दरवाज़े तक भी नहीं गये कभी चाहे किसी भी पार्टी के क्यों न हों
पिता - ऐसा क्यों सोचता है बेटा - कोई कारण बता
बेटा - एक बात बताइए - शिक्षा आदमी की सोच को सकारात्मक दिशा देते है न ?
पिता - हाँ बेटा
बेटा - अक्सर अध्यापक बच्चों को सिखाते हैं किसी रेखा को बिना मिटाए छोटी करने का सबसे बढ़िया तरीका है उसीके पास एक बड़ी रेखा बना दो
पिता - हाँ यह तो है
बेटा - तो फिर चाहे कोई भी नेता हो अपनी अच्छाई के बारे में बताने के वजाय दूसरों की बुराई का बखान इतना ज़्यादा क्यों करते हैं भला
पिता - शायद इंसान और नेता में यही सबसे बड़ा अंतर है बेटा
क्या कहने ऐसे लोकतंत्र की

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