Thursday, December 25, 2014

जैसा कि मैं पहले से कहता आया हूँ राजनीति कभी भी "हर मर्ज़ की दवा" हो नहीं सकती उसी तरह केवल राजनीति के कारण ही यह देश बर्बाद नहीं हो रहा है- इसके साथ और भी कारण है- एक तो है अव्यवहारिक शिक्षा व्यवस्था - तो उस पर एक पेरोडी क्यों न हो जाए - मूल गीत है फिल्म "जागृति" से " आओ बच्चों तुम्हे दिखाएँ"- यह प्रहार है शिक्षा के व्यापार बनाए जाने पर
आओ भाई स्कूल खोले एक - बच्चे जहाँ विद्वान बनें
उनको सर्टिफिकेट थमा कर- हम तुम भी धनवान बनें
पब्लिक स्कूल की जय-- पब्लिक स्कूल की जय-- (2)
सरकारी स्कूल में अब तो बच्चों को भाई कोई न भेजे
हर कोई चाहे उनके बच्चे अँग्रेज़ों की ही तरह सजे
उनकी इस कमज़ोरी से भाय्या अपने तो होंगे मज़े
राम जी के इसी देश में जिसे देखो रावण को ही भजे
हो न हो दाँत मुँह में- कहे हर कोई यहाँ खाने को चने
उनको सर्टिफिकेट थमा कर- हम तुम भी धनवान बनें
पब्लिक स्कूल की जय-- पब्लिक स्कूल की जय-- (2)
अपनी भाषा से देखो देश में हर किसी को अब चीढ़ है
होती जा रही है दुर्बल इस लिए हमारी तो रीढ़ है
परंपरा के मधुर फलों को लगा रहे हैं यह कीड है
ऐसी सोच से अब उजड़ती जाती परिवार की नीड है
हम को क्या लेना देना है- जिसको जो चाहे वह बने
उनको सर्टिफिकेट थमा कर- हम तुम भी धनवान बनें
पब्लिक स्कूल की जय-- पब्लिक स्कूल की जय-- (2)
विद्यालय के उद्देश्य ले कर यहाँ पढ़ता पढ़ाता कोई नहीं
खर्चा चाहे कितना हो जाए- हिसाब कोई तो रखता नहीं
सोचते हैं जब करें नौकरी सौ गुना कर क्या लौटेगा नहीं
तभी तो भाई ईमान दारों का अब अतापता मिलता नहीं
सब को प्यारा जब पैसा हो तो हम क्यो कहो साधु बने
उनको सर्टिफिकेट थमा कर- हम तुम भी धनवान बनें
पब्लिक स्कूल की जय-- पब्लिक स्कूल की जय-- (2)

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