Tuesday, December 23, 2014

कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत है- आप समझ जाएँगे ज़रूर - इतना भरोसा है मुझे
मौसम का देख बदला रुख़ मातम यह मनाने लगे
देश भर के मशहूर मनहूस महफ़िल हैं सजाने लगे//
मौका मिला जब मज़े थे लूटे मर्सिया हैं पढ़ने लगे
मगरमच्छके नक़ली आँसू मर्कट अब बहाने लगे //
मेरा मुल्क़ कहने वाले मज़ार मुल्क़ का बनाने लगे
मूर्खों का मजमा लगा कर मच्छर यह भगाने लगे//
नाम के साथ कोई लाए 'लू' बहार के वादे करने लगे
दानव जैसा है आचरण पर नामे पे देव लगाने लगे //
नाम जिसका हो मुल्ला उसपे भरोसा क्यों करने लगे
नीतिहीन कुछ ऐसे हैं जो नीति की दुहाई है देने लगे //
शरद ऋतुके समय में भैया सावन जब बरसने लगे
नाम से क्या मिल जाएगा यह पाले जो बदलने लगे//
साँप बिच्छू से हैं भयंकर इरादे इनके हैं दिखने लगे
क्या होगा इस देश का बताओ गद्दार इकट्ठे होने लगे//
राष्ट्रवादी अब चूप न रहो संकटके बादल है छाने लगे
हाथ से हाथ मिलाओ गद्दारों के दिन पूरे हैं होने लगे //
सभी मित्रों से अनुरोध है - यदि आपको इस कविता में कोई सार्थक संदेश दिखता है तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करें अवश्य

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