Tuesday, December 23, 2014

मित्रों जैसा कि मैं पहले से कहता आया हूँ स्नेह- प्रेम- सदभावना जैसी भावनाएँ अब केवल किताबी रह गयी है जिनका उपयोग सार्वजनिक सभाओं में नेताओं द्वारा ही क्या जाता है आज कल- मनुष्य के हृदय की कोमल भावनाएँ खो जाने के कारण समाज पर राक्षसी स्वभाव अधिक दिख रहा है आज कल - फ़ेसबुक जैसा अनोखा और निराला माध्यम के होने पर भी इसका सही उपयोग कोई कोई ही करता है- मैने पर्याप्त प्रयास किया पर कोई सुने कैसे वही "व्यस्तता की अधिकता" और " फ़ुर्सत तथा समय की कमी" फिर भी गिनती के ही सही कुछ मित्र मिले मुझे यहाँ जिनसे दिल का रसिहता सा बन गया है - इसी आपबीती पर एक कविता प्रस्तुत है छोटी सी- एक निवेदन है कविता की हर पंक्ति का पहला अक्षर उपर से नीचे तक अवश्य पढ़ें एक बार
उ ------- उतनेकी ही अरमान करो भाई- जितनी की औकात है
द ------- दम भरो सदा प्यार का सबको भाती कब तेरी बात है
य ------- यकीनका पौधा जहाँ न हो प्यार का पेड़ कैसे पनपे
न ------- नहीं आसान है दिल जीतना कह गये हैं अच्छे अच्छे
हो ------- होनी तो होती है यहाँ उम्मीद तू अनहोनी की न कर
श ------- शक्ल देखती अब है दुनिया सीरत कोई न देखे मगर
क ------- कह कह कर तो हार गये भाई जाने जुनून था कैसा
र -------- रहने दे अब उनकी छोड़- कोई तो मिला तेरे ही जैसा

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