Wednesday, December 3, 2014



एक और लोकप्रिय गीत याद आ गया " हम तुम युग युग से यह गीत मिलन के गाते रहे हैं"= यह गीत प्रेम और समर्पण को ले कर था- पर जो प्रेम और समर्पण से दूर स्वार्थ और शैतानी की दुनिया में खोए हैं देश के नेताओं जैसे वैसे लोग अगर इस गीत को गाएँ तो कैसा रहे - देखते हैं इस पेरोडी में..
हम तुम युग युग से मिल बाँट के देशको लूटते रहे हैं
हम तुम दिखा के करिश्मा झोली अपनी भरते रहे हैं---
जब जब हमने इलेक्शन जीते- जब जब कुर्सी पे सवार हुए
अपने तो हो गये पौ बारह- हाहाकार देश में तो ज़रूर हुए
क्या क्या गुल हम ने खिलाए है- कोई तो यह जाने ही नहीं
कुछ सत्यवादी भौंकते रहे- पर जनता उनकी सुने तो नहीं
आ--आ --आ - आ
हम तुम सेवा का झांसा दे कर मेवा खाते रहे है
हम तुम बोटी खा के कुत्तों को हड्डी देते रहे हैं- हम तुम-------
जब भी जनतामें शोर मचे - हम कोई धमाका कराते है
जनता टकराए और मरे- हम बैठ तमाशा देखते है
हर्जाना देंगे यह कह देते - जो कभी नहीं हम देते है
जनता कर क्या सकती है- अपनी क़िस्मत पे यह रोते है
आ---आ---आ---आ--
हम तुम लोक तंत्र के नाम पे मस्ती करते रहे है
हम तुम और औरों की मेहनत की रोटी उड़ाते रहे हैं-- हम तुम---
वादे जो हम ने किए पूरे- अपना फिर वजन कहाँ होगा
जनता को अक्ल जो आ गयी- अपना फिर भजन कहाँ होगा
कहने को जो विरोधी है- उन सब से तो साथ गाँठ अपनी
बाहर का दिखावा है विरोध अंदर ही अंदर सब ठाट अपनी
आ---आ---आ---आ--
हम तुम भूखे नंगों के लिए खुदा बन कर आए हैं
हम तुम सात पुश्त तक सब लिखवके आए हैं- हम तुम -------

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