हर कार्य के अलग अलग चरण होते हैं- जब सभी चरणों पर कार्य में एकाग्रता और निष्ठा पर्याप्त हो तभी उस कार्य को सुचारू रूप से संपन्न हुआ माना जाता है- एक आध उदाहरण दे देता हूँ
1.भोजन - अन्न या अन्य सामग्री ठीकसे उगाए गये हों// व्यापारी उसमें मिलावट न करे // भोजन पकाने वाला अपनी कला में निष्णात हो // भोजन परोसने वाला प्रेम पूर्वक और उचित ढंग से परोसे - तभी भोजन का आनंद आता है
2. वस्त्र - कपड़े बनाने वाले सही ढंग से कपड़े बनाएँ// उनसे वस्त्र बनाने से पहले आपके शरीर का नाप ले कर कपड़ा काटने वाला भी पारंगत हो // कटे हुए कपड़े को सीलने वाला भी अनुभवी हो// कपड़ा बन जाने पर उसे सही ढंग से इस्त्री करनेवाला भी हो- तभी उस वस्त्र का धारण आरामदेह होता है
3. आवास - भवन निर्माण से पहले पर्याप्त ज्ञान रखने वाला जी कोई नक्शा बनाए - ईंट- बालू- सीमेंट भी मानक के अनुसार लाए जाएँ - भवन बनाने वाल मिस्त्री भी कुशल हो- तभी उस भवन में रहना मंगलकारी होता है
वही बात देश और समाज के लिए भी लागू होता है - जब समाज में आपसी तालमेल और समरसता न रहे न कोई देश की प्रगती होती है न ही कोई समाज स्वस्थ बनता है - यह हर किसी की ज़िम्मेदारी है देश और समाज के प्रति ईमानदार रहें हमेशा
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