Tuesday, December 23, 2014

2010 में मैं फ़ेसबुक में शामिल हुआ - मतलब करीब 5 साल हुए - कई मित्र बने और कई छूटे भी- जो चूप चाप बैठे रहे मैने उनसे नाता तोड़ लिया और कुछ उन्होने तोड़ा जिन्हे मेरी बातें पसंद नहीं आई. जो फ़ेसबुक पर होते हुए भी उसका सदुपयोग नहीं कर पाते हैं उन पर एक पेरोडी- मूल गीत है "दुनिया वालों से दूर जलनेवालों से दूर " ध्यान दीजिए
बोलनेवालों से दूर- हँसने वालों से दूर
आजा आजा चलें कहीं दूर कहीं दूर कहीं दूर-----
ले चल ए दिल मुझे तू - ऐसी किसी जगह पर
कोई न सर को खाए - बोले न मुझसे हंसकर
यह तो बता हँसूँ क्यों - बातें किसी से हो क्यों
खुद ही में ठीक हूँ मैं - झाँकू किसी के घर क्यों
बोलनेवालों से दूर- हँसने वालों से दूर
आजा आजा चलें कहीं दूर कहीं दूर कहीं दूर-----
आया था मैं अकेला - जाऊँगा भी तो अकेला
किससे बढ़ा के रिश्ते - क्यों मोल लूँ झमेला
मतलबकी है यह दुनिया बेदर्द है यह दुनिया
जिसने किया भरोसा - लूटे उसीको यह दुनिया
बोलनेवालों से दूर- हँसने वालों से दूर
आजा आजा चलें कहीं दूर कहीं दूर कहीं दूर-----
तो भैया जिसकी सोच ऐसी हो उसे तो स्वयं भगवान भी बदल नहीं सकते- हम किस खेत की मूली हैं भला

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