Tuesday, December 23, 2014

चाहे आप उसे निर्भया कहें या दामिनी उसकी यादें आज बहुतों ने ताज़ी की है- पर इस देश में ऐसी भी कई बहनें और बेटियाँ हैं जो मरने से भी बदतर ज़िंदगी जी रही हैं तेज़ाब की शिकार हो कर- उनके दर्द की टीस अपने दिल में महसूस कर एक कविता लिख रहा हूँ- आशा करता हूँ आप में अगर उनके प्रति संवेदना और सहानुभूति होगी आप इस कविता को फैलाने की कोशिश करेंगे
अव्यक्त वेदना
रोज़ रोज़ की छेड़खानी से तंग बहुत मैं तो आ गयी/
किससे कहूँ- कैसे कहूँ - राह न सूझी मुझको कोई //
मेरी इस चुप्पी को देख- उसकी हिम्मत बढ़ती गयी/
और हुआ यूँ एक शाम- तेज़ाब की चपेट में आ गयी //
जल गया चेहरा मेरा - नस नस में आग सी लग गयी/
दर्द से मैं तड़पती रही - मीडिया की बाँछें खिल गयी//
आए कई अख़बार वाले तस्वीरें ढेर सारईखींच गयी/
एस एम एस आते रहे चेनल वालों की कमाई हो गयी//
ले कर हाथोंमें मोम बत्ती जुलुस शहर में निकल गयी/
मानो शहर में मेरे फॅशन शो ज्यों हो रही हो रे कोई //
जिसने मुज़ेः जलाया था- अब मूँछें उसकी है तनी हुई/
बड़े बाप का बेटा था वह - आरोप सिद्ध न भाई हो पाई //
अपने बिस्तर पर लेटी निढाल क़िस्मत पे मैं रो रही/
आँसू न थमे नयनों से - कोई हाथ पोंछने वाला नहीं //
घर फूँक कर देखें तमाशा - ऐसे लोगों की कमी नहीं /
आशियाँ किसका जला - किसकी महफ़िल सज गयी//

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