Wednesday, December 3, 2014



नज़रिया ज़माने का - एक लघु कथा
यह सच है कि ज़माने में ज़्यादातर लोग धन को ही अधिक महत्व देते है आज कल- इंसानियत- भावनाएँ- सहृदयता- दया - करुणा जैसे शब्द बहुतों के लिए अब एक शब्द ही रह गये हैं- अपने रामाश्रय बाबू लेकिन किसी अलग मिट्टी के बने थे- उनके लिए मानव धरम ही श्रेष्ठ धरम था - इसीको लेकर उनकी पत्नी माया देवी उन्हे हमेशा लताड़ती रहती थी- पर रामाश्रय बाबू को राम का ही आश्रय था
एक दिन कार्यालय जाने के लिए निकल पड़े थे बाबू- रास्ते में बड़ी भीड़ देखी- ऑटो वाले से कहा- अरे रुक रुक ज़रा - क्या हुआ देख लेते हैं- क्या पता कोई मुसीबत में हो- ऑटो वाले ने कहा- भाई जी- क्यों औरों की फटी में टाँग अड़ाते हो ? सारे दुनिया का ठेका ले रखा है क्या आपने? रामाश्रय बाबू ने उसे झिड़क दिया और कहा हर कोई ऐसा सोचे तो दुनिया का क्या होगा - चल आ मेरे साथ
जा आकर देखा एक पेड़ के नीचे - एक आदमी बेसूध पड़ा था- कहने को तो सैकड़ों उसे घेर कर खड़े थे पर पास कोई नहीं जा रहा था- रामाश्रय बाबू जा कर उसके मुख पर पानी के छींटे मारे और पानी पिलाया तो आदमी उठ बैठा- उसने पूछने पर बताया गाँव में सूखा पड़ जाने के कारण रोज़गार की तलाश में आया था शहर- 3 दिन का भूखा था इस लिए चक्कर आ गया- रामाश्रय बाबू ने कहा चिंता मत करो भाई- इंसाना ही इंसान के काम आता है- फिर उसे सहारा दे कर घर ले आए - नहलाया धुलाया भोजन करवाया और कहा ऐसा करो मैं तुम्हारे लिए कोई बंदोबस्त कर दूँगा ज़रूर- तब तक तुम मेरे बगीचे का काम और घर का छोटा मोटा काम कर देना- तुम इसे अपना ही घर समझो- इधर माया देवी का पारा गरम यह सब देख कर .
कुछ ही दिनों में वह आदमी परिवारे स घुलमिल गया - बच्चे उसे चाचा कहने लगे और माया देवी भी मानने लगी इंसानियत की जज़्बात को
अचानक एक दिन सुबह जब नींद खुली तो देखा कि वह आदमी घर के सारे कीमती समान उठा कर चलता बना है- माया देवी माता पीट कर दहाड़ें मार कर रोने लगी- पर इस घटना का रामाश्रय बाबू पर कोई असर नहीं- कुछ ही देर में पड़ोसी आ कर जमा हो गये - सारी बातें सुन कर हर किसी ने रामाश्रय बाबू को धिक्कारा- आपको क्या पड़ी थी वह मरता या ज़िंदा रहता - आपने तो खुद मुसीबत को न्योता दिया था अब भुगतो - किसी एक ने भी नहीं कहा- राम राम क्या ज़माना आ गया - कैसा पापी था यह - जिसने सहारा दिया प्यार दिया उसीको लूटा ..
रामाश्रय बाबू मन ही मन हँस रहे थे ज़माने के इस नज़रिए पर - शराफ़त को लताड़ने वाले हों जिस समाज में उस समाज में बदलाव की उम्मीद कौन करे ?

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