Wednesday, December 3, 2014



हर कोई इस बात को ले कर आशावान हैं की प्रचलित लोकतांत्रिक व्यवस्था के सहारे इस देश का भाग्य बदलेगा- पर मैं इससे कतई सहमत नहीं हूँ - कारण ?
1. देश में जब लोकतांत्रिक व्यवस्था का सूत्रपात हुआ तभी से गड़बड़ी शुरू हो गयी- देश को आज़ाद(?) करने का दावा करने वाली कांग्रेस पार्टी में बहुमत को अस्वीकार कर ज़हरलाल न हारूं को प्रधान मंत्री बनाया गया - देश ज़हर पी रहा और हर मोर्चे पर हारता रहा ( कोई एक सरकारी योजना बताइए जिस में वास्तविक मंगल हुआ हो जनता का - एक योजना आयोग एक होते हुए)
2. अँग्रेज़ों के शासन काल में जिन भारतीयों के हाथ में प्रशासन रहा वही 1947 के बाद भी वही डटे रहे जिससे न तो मानसिकता में परिवर्तन आया न ही व्यवस्था में
3. काला धन और काले धंधे वाले लोगों का सरकार के साथ शुरू से ही गहरा ताल्लुक रहा - और कोयले की ख़ान में सफेदी की सोचना पागलपन नहीं तो और क्या है ?
4. काले धंधे वालों को जब अपनी ताक़त का एहसास हुआ तो ऐसे लोग नेताओं की सहायता करने के स्थान पर खुद राजनीति में उतर आए और अब कितने अपराधी देश के क़ानून के रखवाले हैं सब को पता है
5. न्याय के नाम पर ढकोसला चल रहा है देश में - जिसकी जेबें भारी न्याय उसीके हक़ में- न्याय मूरती कहलाने वाले भी भ्रष्टाचार में फँसे हुए है इसका नमूना आए दिन देखने को मिलता है
6. हर पार्टी दूसरे की बुराई करके सिंहासन हथियाता है और फिर वही करता है जो औरों ने किया
7. बदलाव का झांसा देने वाले जैसे ही सत्ता पर क़ाबिज़ होते हैं अपने पुराने दुश्मनों को गले लगा कर जनता के विश्वास को तोड़ते हैं
तो हम कैसे मान लें कि यह नेता देश बदल सकते हैं- कुछ हैं यहाँ जो लूटने के लिए पैदा हुए हैं और कुछ और हैं जिनकी क़िस्मत में लूटे जाना ही लिखा है
अगर ईश्वर ही बचाए तो बचाए इस देश को

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