Monday, July 30, 2012

ज़रा ग़ौर करो
कौन है भिखारी (एक लघु कथा)

शहर की बढ़ती हुयी आबादी को देखते हुए सरकार ने राजमार्ग को शहर के दोनों छोर से मिलाने के लिए , बाई पास बनवा दिया / वहीं एक मंदिर भी बन चुका था और एक डिग्री कालेज भी स्थापित हो चुकी थी / मंदिर के बाहर एक बुढा अपाहिज भिखारी बैठा लोगों से दया की भीख मांग रहा था / कोई एक आध सिक्का उछल देता था उसकी तरफ तो कोई प्रसाद में लगाये गए केले या संतरे का एक हिस्सा दे देता था / कुछ ऐसे भी थे जो उसे हिकारत की नज़र से देख रहे थे, मानो वह इस धरती पर बोझ बनके जी रहा है /
अचानक एक जोर की आवाज़ से इलाका गूँज उठा / सभी ने देखा कि तेज़ी से जा रहा एक ट्रक पेड़ से टकराकर उलट चुका है / पास जा के देखा तो ट्रक का खलासी गाडी के नीचे दब कर दम तोड़ चुका है और ड्राइवर ज़ख़्मी हालत में छटपटा रहा है / एकी बुजुर्ग ने कहा अरे इसे अस्पताल ले चलो कोई /
तभी एक आवाज़ आयी , अरे भाइयों आओ आओ, यह ट्रक तो साबुन और चाय की पेटी से भरा पड़ा है / सभी भागे भागे गए / जिससे जितना बन पड़ा माल समेटने लगा / कोई उन्हें रोकनेवाला जो न था / पुलिस के आने से पहले हर कोई चाहता था कि अधिक से अधिक माल अपने कब्ज़े में कर ले / भगवन की पूजा करने आये धार्मिक लोग भी उस भेद में शामिल हो गए और कालेज के विद्यार्थी भी अपने क्लास छोड़ कर भाग आये मौके का फायदा उठाने / किसी को इतनी फुर्सत न थी कि तड़प रहे ड्राइवर को दो घूँट पानी का पीला दें /
दूर बैठा "धरती का बोझ" वह भिखारी सोच रहा था , कि जिनसे वह दया की भीख मांग रहा था वह भिखारी हैं या लूटेरे ? पर उसके पास कोई जवाब नहीं था / आपके पास है क्या ?

No comments:

Post a Comment