Monday, July 30, 2012

ब्रह्माण्ड में ३ लोक होते हैं / व्याकरण में ३ काल और ३ पुरुष / तो फिर पैरोडी भी ३ क्यों न हो / एक और पेरोडी नाजायज़ बाप पर / मूल गीत है फिल्म " संगम" का "दोस्त दोस्त न रहा " / मैंने कल लिखा था अगर यह व्यक्ति आज कांग्रेस पार्टी के किसी जिम्मेदार पद पर होता तो शायद यह साफ़ बच निकलता / तो बेचारे का क्षोभ पढ़िए , कितना दर्द है पढ़िए ...दूध से निकली मक्खी का दर्द ---

मित्रों इस पैरोडी में मैंने तिवारी के दर्द के माध्यम से कांग्रेस वालों के मतलबी और स्वार्थी चरित्र को उजागर करने की कोशिश की है / आशा है आप इसे पसंद करेंगे 

अब वह पार्टी न रही , अब वह वक़्त न रहा 
अपने ही लोग बैठे चुप , मैं तमाशा बन गया --------
वह ग़लती एक हो गयी , किसने कहो किया नहीं
सभी ने की पार्टी में है, क्या तुम नहीं
ज़रा सी मौज मस्ती की, किसने कहो किया नहीं
सभी ने की पार्टी में है, क्या तुम नहीं
कुर्सी पर रहे जो नहीं, सबको मौका मिल गया
अपने ही लोग बैठे चुप, मैं तमाशा बन गया ----------
कभी तो शान थी अपनी, न जाने कितने चमचे थे
उन्ही में यह ही सब तो थे, क्या थे नहीं
थाली के बैंगन बन गए, तनहा हमें यह कर गए
उन्ही में यह ही सब तो थे, क्या थे नहीं
यह सोच के क्या फायदा, क्यों साथ इनका ही दिया
अपने ही लोग बैठे चुप, मैं तमाशा बन गया ----------

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